जिंदगी के रास्तों पर अकेले चलने की हिम्मत और हौसला रखें, कहती हैं दिव्या दत्ता
अभिनेत्री दिव्या दत्ता की फिल्म नजर अंदाज 7 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। वह मानती हैं कि छोटी-बड़ी हर भूमिका उनके लिए खास है। इस फिल्म कैरियर व जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर उनसे प्रियंका सिंह की बातचीत के अंश..
फिल्म जानकारों का कहना है कि महामारी के बाद जो कंटेंट बनेगा, वह नए तरीके का होगा। इस फिल्म के संदर्भ में यह बात कितनी सही है?
डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से यह बदलाव आया है। सब कुछ कहानी पर निर्भर करता है। लोग अच्छी कहानियां कहना चाह रहे हैं, दर्शक अच्छी कहानियां देखना चाह रहे हैं। किरदारों के साथ प्रयोग हो रहे हैं। हम इंसान हर वक्त अच्छे ही नहीं रह सकते हैं, हममें कमियां होती हैं, उन तमाम कमियों के साथ भूमिकाएं लिखी जा रही हैं, जो खूबसूरत बात है। मेकर्स के लिए अच्छा समय है, यह फिल्म उसी समय का अहम हिस्सा है।
जीवन के हल्के-फुल्के पलों को मिलाकर बनाई गई फिल्मों को करना क्या आसान होता है?
हम महामारी के जिस मुश्किल दौर से निकले हैं, वह आसान बात नहीं थी। सब कहीं न कहीं हर किसी के चेहरे पर एक मुस्कान देखना चाहते हैं। इस फिल्म की कहानी इसलिए आज के दौर से जुड़ती है। हम सभी अब अपने आसपास अच्छे लोग ढूंढऩे लगे हैं। जब ऐसी कहानी मिलती हैं, जो हंसाते हुए जरूरी बात कह जाती है, तो मैं ऐसे शोज या फिल्मों का हिस्सा बनती हूं।
फिल्म के ट्रेलर में एक संवाद है कि मदद के लिए इंतजार की आदत नहीं डालनी चाहिए...
मैंने यही सीखा है कि जिंदगी का सफर आपको खुद तय करना है। हर एक का रास्ता और अनुभव एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। उस रास्ते पर आपको ही अकेले चलना है। उस सफर में कोई मददगार मिलता है, तो ठीक है, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि उस मददगार का इंतजार करना चाहिए। जीवन जैसे आगे बढ़ता है, उसके साथ बढि़ए।
भूमिका चाहे बड़ी हो या छोटी, क्या हर भूमिका निभाने से पहले नर्वसनेस होती है?
हां, बिल्कुल जब तक एक्टर नर्वस नहीं होगा, तब तक वह अच्छे से परफार्म कर ही नहीं पाएगा। अगर मैं यह सोचूं कि मेरा तो इतने साल का अनुभव है, मुझे सब आता है, तो कुछ नहीं कर पाऊंगी। किरदार में जो परतें होती हैं, वह आपको खुद ही ढूंढऩी पड़ती हैं। जब सही कलाकार साथ हो तो काम आसान हो जाता है। इस फिल्म में कुमुद मिश्रा हैं, जो इतने अनुशासित और इंटेस कलाकार हैं कि सीन अच्छा ही निकलकर आया है। वह जितने स्वाभाविक तरीके से सीन कर रहे थे, मेरी प्रतिक्रिया भी उतनी ही स्वाभाविक तरीके से आ रही थी। इन अनुभवों की वजह से खुद को दोबारा डिस्कवर करते हैं। मुझे सब आता है, ऐसे नहीं सोच सकते हैं। हर फिल्म का सफर आपको नया कुछ सीखा जाता है।
इस फिल्म के जरिए बचपन को दोबारा जीने का मौका मिला?
मैं तो बचपन को जाने ही नहीं देती हूं। मैंने बचपन को कसकर पकड़कर रखा है। हमने बहुत सारा बचपन इस फिल्म में जीया है, जैसे कंचे खेलना, कीचड़ में कूदना। हमारे अभिनय के पेशे की यही खासियत है। आप एक ही जिंदगी में कितनी भूमिकाएं जी लेते हैं। मुझे तो पीरियड फिल्म बहुत खूबसूरत लगती हैं। उस दौर में जाने का मौका मिलता है, जिसको देखा नहीं है। मुझे ब्लैक एंड व्हाइट में शूट हुई फिल्में बड़ी पसंद हैं। मधुबाला, नूतन यह सब अभिनेत्रियां कितनी सुंदर लगती थीं। शौक था कि मैं भी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में करूं। एक प्रोजेक्ट के लिए ब्लैक एंड व्हाइट में भी शूट किया। मैं जिदंगी में वह सब कर पा रही हूं, जो करना चाहती थी, यह सिर्फ एक्टिंग की वजह से संभव हो पा रहा है।
वास्तविक जीवन में किन चीजों को हमेशा के लिए नजर अंदाज करना चाहेंगी?
बहुत सी चीजें हैं, पाखंड, कपट, दोगलापन, निगेटिविटी इन सब चीजों को अपने आसपास नहीं देखना चाहती हूं।