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बर्थडे स्पेशल: 'शाह रूख़ ख़ान' बनने की कहानी उनके निर्देशकों की ज़ुबानी

समर खान के ज़हन में यह किताब लिखने का ख्याल उस वक़्त आया, जब वो शाह रुख़ ख़ान के साथ 'लिविंग विद सुपरस्टार' डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कर रहे थे।

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 01 Nov 2016 09:18 PM (IST)Updated: Wed, 02 Nov 2016 11:52 AM (IST)
बर्थडे स्पेशल: 'शाह रूख़ ख़ान' बनने की कहानी उनके निर्देशकों की ज़ुबानी

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। 2 नवंबर को शाह रुख़ ख़ान ने उम्र का 51वां पड़ाव छू लिया है। पचास के पार पहुंच चुके शाह रूख़ आज भी ताज़गी से भरे और उम्र से बेअसर दिखते हैं। दो दशक से ज़्यादा मायानगरी में गुज़ार चुके किंग ख़ान का सफ़र हैरान करने वाला तो है ही, साथ ही काफी इंस्पायरिंग भी।

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दिल्ली के एक कांफिडेंट और एंबिशस लड़के को 'शाह रूख़ ख़ान' बनाने में उनके निर्देशकों का अहम रोल रहा है। इस मामले में किंग ख़ान को ख़ुशक़िस्मत कहा जाएगा, कि सेल्यूलाइड के सफ़र में उन्हें ऐसे डायरेक्टर्स का साथ मिलता रहा, जिन्होंने उनकी एनर्जी को सही दिशा दी और सपनों को हक़ीक़त में बदलने के लायक़ बनाया। ख़ुद शाह रूख़ इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उनको गढ़ने में निर्देशकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

ये निर्देशकों की पारखी नज़र का ही तो कमाल है कि 'डर' का डरावना साइको लवर अगली ही फ़िल्म में रोमांटिक लवर बनकर सबका प्यारा बन जाता है। कुछ ऐसे ही फ़िल्ममेकर्स के हवाले से राइटर-डायरेक्टर समर ख़ान ने अपनी नयी किताब 'एसआरके- 25 इयर्स ऑफ़ ए लाइफ़' में शाह रूख़ के 25 साल के सफ़र को समटने की कोशिश की है। समर यह किताब 9 नवम्बर को रिलीज़ करने जा रहे हैं। समर ने इस किताब में शाह रुख़ ख़ान के उन 25 निर्देशकों को शामिल करने की कोशिश की है, जिन्होंने शाह रूख़ के करियर को गढ़ने और फलने-फूलने में मदद की है। ख़ास बात यह है कि शाह रुख़ ने ख़ुद इस किताब का फॉरवर्ड लिखा है।

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समर खान के ज़हन में यह किताब लिखने का ख्याल उस वक़्त आया, जब वो शाह रुख़ ख़ान के साथ 'लिविंग विद सुपरस्टार' डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कर रहे थे। उन्होंने जब शाह रुख़ की दुनिया को नज़दीक़ से देखा तब उन्होंने निर्णय लिया कि वे कुछ इस तरह की किताब का लेखन करेंगे। समर बताते हैं- ''शाह रुख़ ख़ान वास्तविक ज़िंदगी में भी अपने द्वारा निभाए गए सारे किरदारों का मिश्रण हैं। अगर आपने उनकी सारी फ़िल्में देखी हैं तो आप महसूस करेंगे कि निजी ज़िंदगी में वो अपने किरदारों से काफी मेल खाते हैं। यही वजह थी, जिससे मुझे लगा कि क्यों ना मैं कोई ऐसी किताब लिखूं , जिसमें उन सभी निर्देशकों को शामिल करूं, जिन्होंने शाह रुख़ ख़ान को 'शाह रुख़ ख़ान' बनाया और इसका इससे अच्छा मौक़ा और क्या हो सकता था कि हाल ही में उन्होंने इंडस्ट्री में अपने 25 साल पूरे किये हैं। मैंने निर्देशकों की नज़र में शाह रुख़ के बारे में जानने की कोशिश की है।'' पेश है किताब के कुछ अंश:

कर्नल कपूर के 'अभिमन्यु': कर्नल कपूर ने सबसे पहले शाह रुख़ ख़ान को अपने टीवी शो 'फौजी' से लांच किया था। ये पहली बार था, जब शाह रुख़ की अभिनय की दुनिया को एक सार्थक क़दम मिला। इस धारावाहिक में उनका नाम अभिमन्यु था और अभिमन्यु की तरह ही उन्होंने अभिनय की दुनिया का पहला चक्रव्यूह भेद लिया था। कर्नल कपूर के लिए शाह रुख़ उनके फौजी हैं। वो उस किरदार को याद करते हुए बताते हैं- ''मुझे आज भी वह गौतम नगर का दुबला-पतला सा लड़का याद है, जो मेरे घर पर आया था। उसको कहीं से यह जानकारी मिली थी कि मैं एक शो बनाने जा रहा हूं। उससे मैं इसलिए प्रभावित हुआ क्योंकि उसने आने के साथ कहा कि वह अभिनय करना चाहता है और उसे इसकी जानकारी मिली है कि मैं शो बना रहा हूं। मुझे उसका कॉन्फिडेंस कमाल का लगा था। मैंने उसे ऑडिशन के लिए बुलाया था। वह बाक़ी लड़कों के साथ पहुंचा। चूंकि शो कमांडो के ज़िंदगी पर आधारित था, तो मैंने ऑडिशन ही रखा था कि सभी को मेरे साथ दौड़ लगानी है।''

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कर्नल कपूर आगे कहते हैं- ''कई लड़के तो पहले दिन भाग खड़े हुए थे। सभी को लगा था कि उन्हें एसी रूम में ऑडिशन देने का मौक़ा मिलेगा, लेकिन यहां तो अलग ही नजारा था। पर मैंने देखा शाहरुख़ बाक़ी लड़कों की तरह भाग खड़ा नहीं हुआ था। जब मैंने उसके साथ दौड़ लगानी शुरू की तो वह ना सिर्फ़ लगातार भागता रहा, बल्कि उसने कई बार मुझे भी ओवरटेक किया। इस तरह उसने पहला टेस्ट पास कर लिया। फिर बारी आयी लुक टेस्ट की। जब मैं और मेरे सिनेमेटोग्राफर ने उन्हें कैमरे के सामने देखा। उसके पहले ही लुक से हमें यह बात समझ आ गयी थी, कि कैमरा उसके चेहरे को पसंद कर रहा है। वह टिपिकल गुड लुकिंग ब्वॉय नहीं था, लेकिन कैमरा उसके चेहरे को पसंद कर रहा था और इस तरह शाह रुख़ फौजी बना। एक दिलचस्प बात यह भी रही कि मैंने पहले शाह रुख़ को सेकेंड लीड में लेने का मन बनाया था, लेकिन बाद में मैंने स्क्रिप्ट बदल दी थी। मुझे लगा कि शाह रुख़ ही फ़र्स्ट लीड अच्छे से निभा सकता है और मैं गर्व से कहता हूं कि मैंने शाह रुख़ के साथ कोई फेवरिज्म में नहीं किया था, बल्कि अपने शो के हक़ में किया था।''

यश चोपड़ा के 'समर': यश चोपड़ा ने समर को अपनी बातचीत में यह बताया था कि शाह रुख़ कभी भी यश जी की लिखी स्क्रिप्ट में तब्दीली करने या नख़रे दिखाने में यक़ीन नहीं रखते थे। वो हमेशा कहते थे यश जी ने लिखा है ना तो ठीक ही होगा, चलो शूट करते हैं। यश जी ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि शाह रुख़ ने कभी उनसे किसी फ़िल्म की फीस की बात ही नहीं की। यश जी की आख़िरी डायरेक्टोरियल फ़िल्म जब तक है जान भी शाह रूख़ के साथ ही थी। इसके बाद 2012 में उनका देहांत हो गया था। समर से शाह रूख़ के बारे में बात करते हुए यश चोपड़ा कहते हैं- ''शाह रुख़ को मैसेज के जवाब देने की कभी आदत नहीं रही है। मुझे कभी कुछ जरूरी काम होता था तो मैं गौरी को फोन किया करता था। ऐसा नहीं है कि शाह रुख़ ऐसा किसी का फोन इग्नोर करने के लिए करता था, बल्कि यह उसकी आदत थी।''

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यश जी आगे बताते हैं- ''जब वह शूटिंग कर रहा होता है, उस वक़्त वह सिर्फ गौरी के ही कॉन्टेक्ट में रहता था। अब जबकि वह एक सुपरस्टार है, आज भी जब हमारी बातचीत होती है। वह मुझसे हमेशा कहता है कि यश जी चलो 'दीवार' बनाते हैं। मुझसे आज भी वह उसी तरह मिलता है, जैसा वह 20 सालों पहले मिला करता था। उसे 'त्रिशूल' और 'दीवार' जैसी फ़िल्में मेरे साथ करनी थीं, लेकिन मुझे इस बात का अफ़सोस रहेगा कि मैं उसके लिए वैसी फ़िल्म नहीं बना पाया। बात जब कभी काम की आती है और उसका उत्साह देखता हूं तो ऐसा लगता है कि आज भी वह न्यू कमर की तरह ही अपने काम को लेकर भूखा है और यही बात उसे औरों से ख़ास बनाती है।''

फ़रहान अख़्तर के 'डॉन': फ़रहान अख़्तर ने शाह रुख़ के साथ फ़िल्म 'डॉन' का निर्माण किया है। फ़रहान ने समर ख़ान से कहा- ''मैं सच बोलूं तो मैंने स्क्रिप्ट लिखने से पहले ही मन में शाह रुख़ की कास्टिंग कर ली थी। मुझे अच्छी तरह याद है स्कूल में लड़कियों ने किस तरह उन्हें फौजी में देखने के बाद तालियां बजायी थीं और किस तरह वह कई लड़कियों के क्रश थ। मैं पहली बार शाह रुख़ से 'डर' के सेट पर मिला था, लेकिन वहां हमारी अधिक बातचीत नहीं हुई थी, लेकिन मैं इतना समझ चुका था कि वह काफी कांफिडेट बंदा है। हमारे बीच अच्छे इक्वेशन फ़िल्म 'लक्ष्य' के दौरान बने। मैं दरअसल, दिल्ली में शूटिंग कर रहा था और शाह रुख़ भी वहीं थे। सो, हम उन दिनों काफी बार मिले और हमने उसके बाद कई पार्टियों में भी मिलना शुरू किया।''

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धीरे-धीरे फ़रहान को शाह रुख़ की पर्सनेलिटी समझ आने लगी कि वो कितना सहज हैं। फ़रहान कहते हैं- ''वहां से मैंने डॉन का केरेक्टर लिखना शुरू किया। जैसे-जैसे मैंने किरदार लिखा, मुझे यह बिलीव होता गया कि शाह रुख़ ही इस किरदार के लिए सबसे फिट हैं। मुझे 'डॉन' को निगेटिव हीरो के रूप में नहीं दर्शाना था। मैंने जब स्क्रिप्ट पूरी की और शाह रुख़ से मिला कि मैं चाहता हूं कि तुम यह फ़िल्म करो। शाह रुख़ ने सहजता से कहा आई एम इन। शूटिंग के दौरान मैंने महसूस किया कि वह रिहर्सल में काफी यक़ीन करते हैं। शाह रुख़ निर्देशकों का सपना हैं, लेकिन निर्देशकों से भी अधिक उन्हें सिनेमेटोग्राफर पसंद करते हैं, क्योंकि उनके चेहरे को कैमरा प्यार करता है।

करण जौहर के 'ख़ान': करण जौहर को इंडस्ट्री में शाह रूख़ का अच्छा दोस्त माना जाता है। करण के डायरेक्टोरियल करियर में शाह रूख़ का काफी कंट्रीब्यूशन भी है। करण कहते हैं- ''मुझे लगता है कि शाह रुख़ ख़ान उन सुपरस्टार्स में से हैं, जिन्होंने कभी अपने करियर को प्लान करके आगे नहीं बढ़ाया है। मुझे अच्छी तरह याद है कि उनकी वजह से ही मैंने 'कुछ कुछ होता है' जैसी फ़िल्म बनाने की हिम्मत जुटायी। यह मेरी डेब्यू फ़िल्म थी, लेकिन फिर भी मुझे यही महूसूस हो रहा था, जैसे मैं अब भी असिस्टेंट डायरेक्टर ही हूं क्योंकि उससे पहले मैंने 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे' जैसी फ़िल्म थी की। हम दोनों के बीच उसी तरह की बातें होती थीं। मैं उन्हें इंस्ट्रक्ट करता रहता था और शाह रुख़ भी मेरी सेंसिबिलिटीज़ को ध्यान में रखकर एक्टिंग किया करते थे। वह मुझे हर कट के बाद देखते थे और पूछते थे- यू वांट मोर टेक्स। वह जानते थे कि मैं किस सीन से खुश होता हूं और किससे नहीं। हमने एक साथ लगातार पांच साल काम किया है।''

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करण आगे कहते हैं- ''मैंने 'कुछ कुछ होता है' से लेकर ''माई नेम इज़ ख़ान' हमेशा शाह रुख] को ध्यान में रखकर लिखी है, लेकिन शाह रुख़ अपनी तरफ से मेरे लिए वह किरदार प्ले करता है। इसलिए मैंने भी हमेशा अपनी तरफ से वेरियेशन लाने की कोशिश की है। 'कल हो ना हो' में मैंने उसे कूल बंदा दिखाया है तो 'कभी अलविदा ना कहना' में ज़िंदगी से नाराज़ व्यक्ति का किरदार दिया है। आप उन्हें डायरेक्ट करते वक़्त साफ-साफ अनुमान लगा सकते हैं कि वे थियेटर से हैं, क्योंकि वह शूटिंग से पहले अपने किरदार की पूरी तैयारी करते हैं किसी थियेटर आर्टिस्ट की तरह ही।''

संजय लीला भंसाली के 'देवदास': संजय कहते हैं- ''मुझे कई लोगों ने यह सवाल किया था कि मैं 'देवदास' के लिए शाह रुख़ को क्यों चुन रहा हूं, लेकिन मैंने इसके बारे में कभी दो राय नहीं रखीं। शाह रुख़ हमेशा ही मेरी पहली पसंद रहे, लेकिन मुझे यह आश्चर्य ज़रूर हुआ था कि शाह रुख़ ने क्यों देवदास को हां कहा। उन्होंने अब तक जितनी भी फ़िल्में की थीं, सभी किरदार उन पर आधारित थे। 'देवदास' में उन्हें किसी और का किरदार निभाना था। वह उस वक्त तक मेगास्टार बन चुके थे, लेकिन सेट पर उन्हें देखकर कभी नहीं लगा कि उन्हें किसी भी तरह एडजस्ट होने में दिक्कत हो रही है। मुझे लगता है कि शाह रुख़ की आंखें सबसे ख़ूबसूरत हैं। इंडस्ट्री में शायद ही किसी हीरो के पास ऐसी आंखें होंगी। मुझे पता था कि यह किरदार जब कोई ऐसा नायक प्ले करेगा जो अपनी आंखों से पारो को चाहेगा तो दर्शक उनसे कनेक्ट होंगे ही। 'देवदास' के हाथों में बोतल हो, लेकिन नशा उसकी आंखों में छलकना चाहिए और यह शाह रुख़ ख़ान ही कर सकते थे।''

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भंसाली शूटिंग के दिनों को याद करते हुए कहते हैं- ''मुझे वह सीन याद है, जब एक सीन में हम नाव पर शूटिंग कर रहे थे। वहां हमें एक विंडो से पांच मिनट का सीन शूट करना था और वह मोनोलोग था। उसका हम दोबारा टेक नहीं ले सकते थे। उस वक्त शाह रुख़ लगातार ड्रिंक कर रहे थे और रिहर्सल कर रहे थे।मुझे ऐसा लग भी रहा था कि शाह रुख़ यह कर पायेंगे कि नहीं, लेकिन उन्होंने वाकई उस सीन को नेचुरली शूट होने दिया। मुझे लगता है कि शाह रुख़ सबसे अच्छी तरह से ट्रेजेडी रोल ही निभा जाते हैं।''

आदित्य चोपड़ा के राज: आदित्य चोपड़ा ने इस बारे में ईमानदारी से स्वीकारा कि जब यश चोपड़ा ने उन्हें 'डर' के लिए कास्ट किया था, उस वक़्त उन्हें या यश चोपड़ा दोनों को ही शाह रुख़ पसंद नहीं आये थे। आदित्य ने समर को बताया कि उस वक़्त शाह रुख़ राकेश रोशन की फिल्म 'किंग अंकल' की शूटिंग कर रहे थे। आदित्य और यश जी ने जब उस फ़िल्म के फुटेज देखे थे, उस वक़्त भी शाह रुख़ की एक्टिंग देखकर वो इंप्रेस नहीं हुए थे। आदित्य बताते हैं- ''शाह रुख़ को 'डर' के लिए कास्ट करने की वजह शाह रुख़ का टेलेंट नहीं था, बल्कि उन्हें इसलिए कास्ट कर लिया गया था क्योंकि बाकी एक्टर्स ने मना कर दिया था। शाह रुख़ के साथ फिल्म 'डर' में हमारा पहला ही सीन होली सांग था। मैंने जब वहां उन्हें देखा, उसी वक्त समझ लिया था कि यह आने वाले वक्त का सुपरस्टार होगा।वहीं हमारी दोस्ती हुई और हम लोगों ने साथ में वक्त गुजारना शुरू किया। जब मैंने तय किया कि मैं डीडीएलजे बनाऊंगा, तो तय कर लिया था कि शाह रुख़ को लेकर ही बनाऊंगा, क्योंकि उस वक्त लोगों ने उसे जो पर्दे पर देखा था वह कोई था और वास्तविक दुनिया में वह कोई और ही है।''

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डीडीएलजे ने शाह रूख़ की इमेज को बदलने में अहम भूमिका निभाई। आदित्य कहते हैं- ''उस वक्त तक उसने एरोगेंट, गुस्सैल जैसे किरदार अधिक निभाये थे, जबकि हक़ीक़त में वह एक गुड ब्वॉय हैं और इस वजह से मेरी चाहत थी कि लोगों के सामने उसका असली चेहरा 'डीडीएलजे' के किरदार के माध्यम से आये। पहले शाह रुख़ यह फिल्म नहीं करना चाहते थे, लेकिन यश चोपड़ा के बेटे होने का फ़ायदा मुझे यहां मिला। डैड का वह बहुत आदर करते थे और उनकी वजह से उन्होंने फिल्म को हां कह दिया था। एक दिन एक महिला सेट पर आयी और उसे कहा कि तुम इतने अच्छे दिखते हो, अच्छे रोल क्यों नहीं करते। मैं मानता हूं कि उस महिला की वजह से भी शाह रुख़ ने अपनी सोच बदली और अपनी इमेज बदली।''


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