दीपिका अपना नब्बे प्रतिशत फिल्मों को देती हैं
मुंबई। दीपिका पादुकोण इन दिनों बेहद खुश हैं। वजह 'चेन्नई एक्सप्रेस' की अपार सफलता और 'राम-लीला' को मिला इनिशियल रेस्पॉन्स है। इसके अलावा वे अपनी ग्लोबल फैन बेस बढ़ाने पर भी खूब वर्क कर रही हैं। क्या फिल्मों का चुनाव करते समय अपने देश के दर्शकों की मानसिकता का ख
मुंबई। दीपिका पादुकोण इन दिनों बेहद खुश हैं। वजह 'चेन्नई एक्सप्रेस' की अपार सफलता और 'राम-लीला' को मिला इनिशियल रेस्पॉन्स है। इसके अलावा वे अपनी ग्लोबल फैन बेस बढ़ाने पर भी खूब वर्क कर रही हैं। क्या फिल्मों का चुनाव करते समय अपने देश के दर्शकों की मानसिकता का खयाल रहता है। चूंकि आप लोगों का एक्सपोजर विश्व सिनेमा से है और उस मानक पर हिंदी फिल्मों का स्तर थोड़ा कम है। देश के दर्शक कितना मायने रखते हैं। दीपिका कहती हैं, 'बहुत मायने रखते हैं। कहानी में क्या चाहिए? सिर्फ मारधाड़, ऐक्शन, खून-खराबे से फिल्म हमारे यहां नहीं बनती। लोगों को तो भूल जाइए, मुझे भी पसंद नहीं आती। कहानी होना जरूरी है। इमोशनल लोग हैं हमलोग।
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हमें अच्छा लगता है कि एक कहानी दिल को छुए। ऐक्शन फिल्म हो, तो भी थोड़ा इमोशन होना बहुत जरूरी है हमारे फिल्मों में। यह बिल्कुल डायरेक्टर पर डिपेंड करता है कि वह ऐक्शन या हॉरर फिल्म में इमोशनल टच कैसे डालता है, लेकिन इतना सब होने के बावजूद क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपकी चर्चा उस अनुपात में नहीं हो पाती, जैसे बाकी कुछ अभिनेत्रियां छोटी उपलब्धियों के बावजूद मीडिया में छाई रहती हैं? अगर किसी ने छींका या कोई कहीं गिर गया हो, तो वह मीडिया में आ जाता है। मैं नहीं मानती कि इन सब चीजों के लिए मुझे मीडिया में आना जरूरी है। लोग मेरी फिल्में देखें और कहें कि ओह माइ गॉड, क्या काम किया है? या फिर यही कहें कि कितना बुरा काम किया है। मतलब मेरे काम को लेकर बातें हों। मैं अपनी प्राइवेसी को बहुत प्रोटेक्ट करती हूं। जी हां, मैं जानती हूं कि पब्लिक पर्सन हूं, सेलिब्रीटी हूं, मुझे आपको समय देना जरूरी है। अपना नब्बे प्रतिशत तो आपको दे ही रही हूं। बस दस मुझे दे दें। बस इतना ही मांगती हूं और कुछ नहीं।'
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