JFF में बोले विनय पाठक- आने वाले समय में कॉमेडी का विस्तार होगा
विनय पाठक, जागरण फिल्म फेस्टिवल की तारीफ करते हुए कहते हैं कि इससे उनका पुराना नाता रहा है। इस फेस्टिवल से कुछ बेहतरीन फिल्में उन लोगों तक पहुंचती हैं जो आमतौर पर मयस्सर नहीं होती है।
स्मिता श्रीवास्तव, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा में हास्य कलाकारों को हमेशा से सम्मान मिलता रहा है। अब फर्क सिर्फ इतना आ गया है कि पहले हास्य कलाकारों को केंद्र में रखकर कहानी नहीं लिखी जाती थी। हास्य कलाकार फिल्म का छोटा हिस्सा होता था, उसका किरदार फिलर की तरह होता था। अब उसी किरदार को केंद्रीय भूमिकाएं मिलनी शुरू हो गई हैं। इसको इस तरह से भी कह सकते हैं कि अब अच्छी कहानी पर बहुत ज़्यादा जोर दिया जाने लगा है। हर तरह के किरदारों को अहमियत देने की जो परंपरा शुरू हुई है, उसको हिंदी फिल्मों में बड़े बदलाव के तौर पर रेखांकित किया जा सकता है।
ये बातें अभिनेता विनय पाठक ने बुधवार को जागरण फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन मिस्टर कबाड़ी फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद कही। वो इस फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए विशेष तौर से मुंबई से दिल्ली आए थे। विनय पाठक का कहना था कि हर कलाकार अच्छी फिल्म चाहता है। वो अपने बारे मे कहते हैं कि चूंकि उनकी 'भेजा फ्राई' या 'खोसला का घोंसला' हिट रही लिहाजा लोग उनको इसी तरह के किरदार में देखना पसंद करने लगे हैं। वो जोर देकर कहते हैं कि वो हास्य के अलावा भी दूसरी तरह के रोल करने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं। जागरण फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन फिल्म ‘मिस्टर कबाड़ी’ के बारे में बात करते हुए विनय पाठक संजीदगी से कहते हैं कि इंसान की इंसानियत उसकी सबसे बड़ी पहचान होती है ना कि कृत्रिम वैभव जिसे पैसे से खरीदा जा सके। दरअसल मिस्टर कबाड़ी में कुछ इसी तरह की कहानी है।
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विनय पाठक, जागरण फिल्म फेस्टिवल की तारीफ करते हुए कहते हैं कि इससे उनका पुराना नाता रहा है। वो कहते हैं कि ‘इस फेस्टिवल से कुछ बेहतरीन फिल्में उन लोगों तक पहुंचती हैं जो आमतौर पर मयस्सर नहीं होती है। छोटी फिल्में मल्टीप्लैक्स में रिलीज़ हो जाती हैं पर छोटे शहरों में उनको स्क्रीन नहीं मिल पाती है। जागरण फिल्म फेस्टिवल की इस मुहिम का मैं आभारी हूं।‘
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विनय कहते हैं कि फेस्टिवल से कलाकार भी लाभान्वित होते हैं, वो इस बारे में एक किस्सा सुनाते हैं- ‘एक पंजाबी फिल्म आई थी, ‘अंधे घोड़े दा दान’ जिसको उस साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था। इस फिल्म की काफी चर्चा हुई थी लेकिन वो मुंबई में रिलीज़ होने के एक हफ्ते के बाद ही गायब हो गई। मैं जब जेएफएफ में जमशेदपुर गया था तो उसको देख पाया। वो बेहतरीन फिल्म थी। उसको देखने के बाद मैं उसके डारेक्टर से भी मिला था और बाद में हम दोस्त हो गए थे ।