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Happy Birthday Bimal Roy: 'देवदास' ने कर दिया था बर्बाद, इस फ़िल्म ने दिया 'पुनर्जन्म'

Happy Birthday Bimal Roy बिमल रॉय के करियर में मधुमती की काफ़ी अहम भूमिका है। अगर यह फ़िल्म ना होती तो हम बिमल रॉय जैसा फ़िल्मकार खो देते।

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 12:50 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jul 2019 02:18 PM (IST)
Happy Birthday Bimal Roy: 'देवदास' ने कर दिया था बर्बाद, इस फ़िल्म ने दिया 'पुनर्जन्म'
Happy Birthday Bimal Roy: 'देवदास' ने कर दिया था बर्बाद, इस फ़िल्म ने दिया 'पुनर्जन्म'

नई दिल्ली, जेएनएन। बिमल रॉय हिंदी सिनेमा के ऐसे फ़िल्मकारों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी फ़िल्मों से सिनेमा को दिशा दिखाने का काम किया। बिमल रॉय को वास्तविक सिनेमा का जनक भी कहा जा सकता है। दो बीघा ज़मीन, परिणीता, सुजाता और बंदिनी जैसी फ़िल्मों के ज़रिए बिमल रॉय ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाया। यह फ़िल्में आज भी क्लासिक मानी जाती हैं और सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए एक इंस्टीट्यूट की तरह  हैं। आज (12 जुलाई) को बिमल रॉय की 110वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 

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बिमल रॉय की तमाम फ़िल्में वैसे तो अपने आप में लीजेंडरी हैं, मगर एक फ़िल्म का यहां हम विशेष रूप से उल्लेख कर रहे हैं, क्योंकि यह फ़िल्म ना होती तो हम बिमल रॉय जैसा फ़िल्मकार वक़्त से पहले खो देते। यह फ़िल्म है 'मधुमती', जिसने बिमल रॉय के मरणासन्न करियर में जान फूंक दी थी और उन्हें वक़्त की गर्द में खोने से बचा लिया।

मधुमती 1958 में रिलीज़ हुई थी। 'मधुमती' से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जो इसे भारतीय सिनेमा की फ्लैगबेयरर फ़िल्म बनाते हैं। इसका प्रीमियर मुंबई के ओपेरा हाउस में हुआ था। दिलीप कुमार, वैजयंती माला और प्राण ने मुख्य किरदार निभाये थे।

बिमल रॉय का हुआ था 'पुनर्जन्म'

मधुमती से पहले बिमल रॉय ने दिलीप कुमार और वैजयंती माला के साथ 'देवदास' बनायी थी, जो 1955 में रिलीज़ हुई थी। शराब में बर्बाद आशिक़ देवदास की इस कहानी ने बिमल दा को भी बर्बाद कर दिया था। 'देवदास' भले ही आज भारतीय सिनेमा की क्लासिक फ़िल्म मानी जाती है, मगर बॉक्स ऑफ़िस पर फ्लॉप रही थी और बिमल दा की प्रोडक्शन कंपनी सड़क पर आ गयी थी। फ़िल्म इंडस्ट्री में बने रहने के लिए बिमल रॉय को एक सफलता की बेहद ज़रूरत थी।

रित्विक घटक ने जब यह कहानी बिमल दा को सुनाई तो उन्हें यह ख़ूब पसंद आयी और इस पर काम शुरू कर दिया गया। राजिंदर सिंह बेदी ने फ़िल्म के डायलॉग उर्दू लिपि में लिखे थे। दिलीप कुमार पहले ही फ़िल्म में काम करने को राज़ी थी। प्राण के आने के बाद वैजयंतीमाला भी तैयार हो गयीं और इस तरह मधुमती का सफ़र शुरू हुआ। फ़िल्म की बेतहाशा कामयाबी ने बिमल रॉय के लिए ऑक्सीजन का काम किया। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मधुमती की वजह से हिंदी सिनेमा के एक दिग्गज निर्देशक का पुनर्जन्म हुआ।

शुरू हुआ पुनर्जन्म का कॉन्सेप्ट

हिंदी सिनेमा में पुनर्जन्म पर आधारित कई फ़िल्में बनायी जा चुकी हैं। ऐसी तमाम फ़िल्में दर्शकों ने देखी होंगी और पसंद भी की जाती हैं। इन सभी फ़िल्मों की जड़ें मधुमती तक जाती हैं, क्योंकि पुनर्जन्म या रीइनकार्नेशन पर बनी यह पहली फ़िल्म मानी जाती है। 

1958 की सबसे बड़ी हिट

मधुमती अपने समय की बेहद कामयाब फ़िल्म है, जिसने उस ज़माने में 4 करोड़ का ग्रॉस कलेक्शन किया था, जिसमें से 2 करोड़ नेट कलेक्शन है। बॉक्स ऑफ़िस विश्लेशक बताते हैं कि 2016 में जब मधुमती के बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन को मुद्रास्फीति के साथ एडजस्ट किया गया था तो यह रक़म 478 करोड़ आयी थी।


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