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पुण्यतिथि पर याद आये बलराज साहनी, दी हैं कई यादगार फ़िल्में

दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। वह उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 13 Apr 2018 11:01 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 11:12 AM (IST)
पुण्यतिथि पर याद आये बलराज साहनी, दी हैं कई यादगार फ़िल्में
पुण्यतिथि पर याद आये बलराज साहनी, दी हैं कई यादगार फ़िल्में

मुंबई। अपनी दौर के बेहद प्रतिभाशाली और प्रतिष्ठित अभिनेता युद्धिष्टिर साहनी उर्फ बलराज साहनी की आज पुण्यतिथि है। बलराज साहनी न सिर्फ अपनी फ़िल्मों बल्कि अपनी सामाजिक सरोकारों और साहित्य के प्रति अपने समर्पण के लिए भी याद किये जाते हैं!

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बलराज साहनी का जन्म 1 मई 1913 में ब्रिटशि इंडिया के पंजाब प्रांत के रावलपिण्‍डी में हुआ था। उन्‍होंने इंग्लिश लिट्रेचर में अपनी मास्‍टर डिग्री लाहौर यूनिवर्सिटी से की। इसके बाद वो अपने परिवार के व्‍यापार को संभालने के लिये रावलपिण्‍डी आ गये। उन्‍होंने हिन्‍दी में बैचलर डिग्री भी ले रखी थी। 1938 में उन्‍होंने महात्‍मा गांधी के साथ मिलकर काम किया। गांधी जी से मिलने के बाद वो बीबीसी लंदन हिंदी को ज्‍वाइन करने इंग्‍लैंड चले गये। बाद में फ़िल्म ‘वक्‍त’ में उन्‍होंने एक डायलॉग भी लिखा था कि- ‘किस्मत हथेली में नहीं, इंसान के बाजुओं में होती है।’ और वाकई बलराज साहनी ने अपनी मेहनत से अपनी किस्मत संवारी!

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साहनी को शुरुआत से ही एक्टिंग का शौक था। उन्‍होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत इंडियन पीपुल थियेटर के साथ की। 1946 में फ़िल्म ‘इंसाफ’ के साथ उन्‍होंने बॉलीवुड पारी की शुरुआत की। इसके बाद उन्‍होंने एक से बढ़कर एक फ़िल्मों में काम किया। साहनी ने पद्मिनी, नूतन, मीरा कुमारी, वैजंतीमाला, नर्गिस जैसी सभी टॉप एक्‍ट्रेस के साथ काम किया। साहनी को लिखने का भी बेहद शौक था। उन्‍होंने हिंदी, अग्रेजी और पंजाबी में भी बहुत कुछ लिखा। 1960 में पाकिस्‍तान दौरे के बाद उन्‍होंने ‘मेरा पाकिस्‍तानी सफर’ नामक एक किताब की भी रचना की। उन्‍होंने कई देशों की यात्रायें की और उन पर किताबें भी लिखी। बलराज साहनी के छोटे भाई भीष्म साहनी हिंदी के एक जाने-माने लेखक रहे हैं! नीचे की तस्वीर उन्हीं दोनों की है- 

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जब पर्दे पर बलराज अपनी ‘दो बीघा जमीन’ फ़िल्म में जमीन गंवा चुके मज़दूर, रिक्शा चालक की भूमिका में नजर आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। यह ‘काबुली वाला’, ‘लाजवंती’, ‘हकीकत’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘धरती के लाल’, ‘गर्म हवा’, ‘वक़्त’, ‘दो रास्ते’ सहित उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।


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