हैप्पी बर्थडे यश जी: जब दिवालिया हो चुके बच्चन को मिला था इनका सहारा
कई रातों से नहीं सोये बच्चन एक दिन अचानक सुबह जल्दी उठे और पास ही यश चोपड़ा के घर पहुंचे। बुझे मन से यश चोपड़ा से हाथ जोड़ कर कहा...
मुंबई। अमिताभ बच्चन ने भले ही फिल्म ' कुली ' के सेट पर लगी शारीरिक चोट को जैसे तैसे अपने भीतर समां लिया हो , लेकिन बच्चन के जीवन के कुछ दर्द उनके लिए कभी भूलने वाले नहीं हो सकते...राजनीति, लांछन और कर्ज़ का बोझ।
सत्तर और अस्सी के दशक में जब बॉलीवुड के इस 'एंग्री यंग मैन' के रुतबे के चलते इंडस्ट्री के दूसरे स्टार्स पिछड़ गए थे, अमिताभ कुछ दर्द से भी रु-ब रु हुए । ये सिर्फ कुली की चोट का नहीं था। किस्मत ने उनके पिटारे में कुछ और ही लिख कर छोड़ा हुआ था। साल 1984 में अमिताभ ने फिल्मों से छोटा सा ब्रेक ले लिया। अपने मित्र राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ ने राजनीति में हाथ आजमाने का फैसला किया।बच्चन ने अपने शहर इलाहबाद से चुनाव लड़ा। सामने थे राजनीति के कद्दावर हेमवतीनंदन बहुगुणा था। बच्चन चुनाव जीत गए लेकिन 'राजनीती' से हार गए। अमिताभ के दामन पर बोफोर्स के छींटे पड़े और उन्होंने हमेशा के लिए पॉलिटिक्स को अलविदा कह दिया। माना - " ये मेरे बस की बात नहीं है।" लेकिन बच्चन के नसीब में उससे भी बड़ा एक दर्द और लिखा था। राजनीति से तौबा करने के बाद फिल्मों में फ्लॉप हो रहे बच्चन को 'शहंशाह' और 'गंगा जमुना सरस्वती' ने सहारा दिया लेकिन 'तूफ़ान' ने उम्मीद फिर धूमिल कर दी। एक तरफ 'अग्निपथ' के लिए मिले राष्ट्रीय पुरस्कार की ख़ुशी थी तो दूसरी तरफ आर्थिक संकट बेहद गहराता जा रहा था। और फिर वो दौर आया जिसने बिग बी की माली हालत को पूरी तरह खराब कर दी।
साल 1996 में बच्चन ने "अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड" की स्थापना की थी। सपना ढेर सारी फ़िल्में बनाने का और साथ ही एंटरटेनमेंट से जुड़े बड़े इवेंट की जिम्मेदारी भी। लक्ष्य 1000 करोड़ रूपये की कंपनी बनाने का था। इस बैनर से पहली फिल्म बनी " तेरे मेरे सपने" और फिर ' मृत्युदाता ' लेकिन सिनेमा के इस सिकंदर के सपने फिल्म के फ्लॉप होने से होते ही धूल में मिल गए। पर ये तो कुछ भी नहीं था। इसी दौरान बच्चन की कंपनी ने बेंगलोर में हुए मिस इंडिया ब्यूटी कंटेस्ट के इवेंट मैनेजमेंट का जिम्मा लिया.. बच्चन के लिए ये नई दुनिया थी लेकिन जस्बा मजबूत.. हाइली पेड़ लोग रखे गए और करोडो रूपये खर्च हुए लेकिन कमाई तो छोडिये बच्चन को इसी इवेंट ने दिवालिया बना दिया...साथ में कंपनी पर कई लीगल केस भी दर्ज हो गए.. बच्चन क़र्ज़ के बोझ से दब गए। 1999 में बाम्बे हाईकोर्ट ने बच्चन को प्रतीक्षा सहित उनके दो बंगलो को बेचने पर रोक लगा दी। बिग बी का आशियाना कनारा बैंक के पास गिरवी चला गया। इसके बाद करीब १४ मिलियन डालर के कर्ज में डूबी ए बी सी एल को " बीमार" घोषित कर दिया गया।
एक ऑटोग्राफ के लिए आधे घंटे होटल के बाहर खड़े थे अमिताभ
बच्चन के करीबी अक्सर उनसे कहते रहे कि लोग उन्हें आर्थिक रूप से खोखला कर रहे हैं। धोखा दे रहे हैं। गलत सलाह दी जा रही है, लेकिन बच्चन ने इसे एक चुनौती समझ कर इसका सामना करने की ठानी थी। उस दौरान एक इंटरव्यू में बिग बी बहुत भावुक हो गए थे - " आज जब पूरी दुनिया नई सदी के आगमन की खुशियां मना रही है ..मैं अपने बिखरे भविष्य को सेलेब्रेट कर रहा हूँ.. फ़िल्में नहीं हैं..पैसा नहीं है ..कंपनी नहीं है और टैक्स वालों ने घर के बाहर बकाये के लिए नोटिस लगा दी है .." संकट से घिरे बच्चन को तब साउथ ने भी सहारा भी दिया था लेकिन 'सूर्यवंशम' और 'लाल बादशाह' जैसी फ़िल्में काम नहीं आईं। हालत ये थी कि बच्चन को अपने घर में लगे बल्ब भी खुद ही बदलने पड़ते थे और वो भी हर समय घर के बाहर खड़ी मीडिया से बच कर। पर कहते है बच्चन वो नाम है जो टूटता नहीं , बिखरता नहीं। कई रातों से नहीं सोये बच्चन एक दिन अचानक सुबह जल्दी उठे और पास ही यश चोपड़ा के घर पहुंचे। बुझे मन से यश चोपड़ा से हाथ जोड़ कर कहा कि वो पूरी तरह से दिवालिया हो चुके है। फ़िल्में नहीं है और घर भी गिरवी पड़ा है, इसलिए कुछ काम दीजिये। यश चोपड़ा कुछ देर तक खामोश रहे और बच्चन के साथ अगले ही पल "मोहब्बतें" बनाने की घोषणा कर दी।
अमिताभ का 'अग्निपथ' : जब मौत को भी मात दे गया महानायक
शहंशाह को सिर्फ संजीवनी चाहिए थी। इस दूसरी पारी के बाद बच्चन अपने दर पर आने वाले किसी काम को नहीं ठुकराया। और फिर एक और करिश्मा भी हुआ। इंडियन टेलीविजन पर अमरीका की देखा देखी एक गेम शो प्लान किया गया। " कौन बनेगा करोडपति" .. अमिताभ ने घरवालों की नाराजगी की परवाह किये बगैर शो का होस्ट बनने का फैसला किया। बताते हैं कि बच्चन को पहले 'के बी सी' के 85 एपिसोड के लिए करीब 15 करोड़ रूपये मिले..यही नहीं एक नामी इंटरनेशनल बैंक ने बच्चन के साथ १० करोड़ रूपये का करार किया था। संकट धीरे धीरे ख़त्म हो गए। बच्चन को अपने बाबूजी की एक बात फिर याद आती है -" जो मन का हो अच्छा , और ना हो तो और अच्छा। "