'पानीपत' के लिए एनडी स्टूडियो में बन रहा ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा
नितिन देसाई बताते हैं कि आशुतोष को उनके स्टूडियो का वातारण अच्छा लगता है, जहां सुकून है और पर्याप्त जगह होने की वजह से दृश्यों की डिटेल दिखाना आसान होता है।
मुंबई। 'पानीपत' के ज़रिए आशुतोष गोवारिकर एक बार फिर इतिहास को पर्दे पर लेकर आ रहे हैं। फ़िल्म के लिए ज़रूरी सेटों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है, जिसका जिम्मा भारतीय सिनेमा के जाने-माने आर्ट निर्देशक नितिन देसाई को सौंपा गया है। अक्षय तृतीया के अवसर पर पूजा-पाठ के साथ शनिवार वाड़ा के सेट निर्माण की बुनियाद रख दी गयी।
किसी भी ऐतिहासिक या पीरियड फ़िल्म को पर्दे पर साकार करने के लिए कलाकारों के लुक-गेटअप और भाषा के अलावा उस दौर का पुनर्निमाण करना सबसे अहम और जटिल काम होता है, जिसे विभिन्न सेटों के ज़रिए अंजाम दिया है। 'पानीपत' में शनिवार वाड़ा क़िला भी कहानी का अहम हिस्सा रहेगा, जो पुणे में स्थित है और मराठाओं की ऐतिहासिक क़िलेबंदी की शानदार मिसाल है।
बताया जाता है कि शनिवार वाड़ा मराठा साम्राज्य में पेशवाओं के अधीन एक सात मंजिला इमारत के रूप में बनाया गया था, जिसकी पहली मंजिल पत्थरों से बनायी गयी थी, जबकि ऊपर की छह मंजिलों का निर्माण ईंट और पत्थर से किया गया था। लगभग नब्बे साल बाद ब्रिटिश हमले में शनिवार वाड़ा की छह मंजिलें ध्वस्त हो गयीं, जबकि पत्थर से बनी पहली मंजिल महफ़ूज़ रही। 'पानीपत' के लिए शनिवार वाड़ा का निर्माण नितिन देसाई के करजत स्थित स्टूडियो में ही किया जा रहा है, जहां पहले से ही कई ऐतिहासिक इमारतों और क़िलों के सेट खड़े हैं। जोधा अकबर के लिए किया गया सेटों का निर्माण भी मौजूद है।
'पानीपत' के लिए ऐसे हो रहा है ऐतिहासिक सेट निर्माण
नितिन देसाई कुछ दिन पहले जागरण डॉट कॉम के दफ़्तर आये थे। तब उन्होंने 'पानीपत' के बारे में जानकारी देते हुए बताया था कि पानीपत के लिए आगरा फोर्ट को दिल्ली फोर्ट में कंवर्ट कर रहे हैं। जयपुर पैलेस की जगह शनिवार बाड़ा बना रहे हैं। ऐतिहासिक फ़िल्मों के लिए जब सेट निर्माण की बात आती है तो आशुतोष गोवारिकर नितिन देसाई से ही संपर्क करते हैं। नितिन देसाई बताते हैं कि आशुतोष को उनके स्टूडियो का वातारण अच्छा लगता है, जहां सुकून है और पर्याप्त जगह होने की वजह से दृश्यों की डिटेल दिखाना आसान होता है।
भव्य सेट उस ख़ास दौर को रिक्रिएट करने के लिए तो ज़रूरी होते ही हैं। साथ ही दर्शकों को विज़ुअल एंटरटेनमेंट भी देते हैं। नितिन कुछ फ़िल्मों की मिसाल देते हुए कहते हैं कि हम दिल दे चुके सनम हो, देवदास हो, जोधा अकबर हो या प्रेम रतन धन पायो हो, लोगों को आर्टिस्ट के काम के अलावा विज़ुअल्स भी देखने में मज़ा आता है।
ऐसे रखी गयी स्टूडियो की बुनियाद
नितिन देसाई ने करजत स्थित अपने स्टूडियो की नींव 2005 में रखी थी। लगभग 50 एकड़ में फैले इस विशाल स्टूडियो में ऐतिहासिक और पीरियड फ़िल्मों के लिए मुकम्मल सेट निर्माण के लिए जगह उपलब्ध है। स्टूडियो निर्माण का ख्याल कैसे आया, इसके पीछे भी नितिन देसाई एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते हैं। मशहूर हॉलीवुड निर्देशक ओलिवर स्टोन 650 करोड़ के बजट से अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट फ़िल्म बना रहे थे, जिसकी शूटिंग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जानी थी। नितिन बताते हैं, ''उन्हें (ओलिवर स्टोन) आगरा, उदयपुर, पंचगनी की लोकेशंस दिखाकर काम करना शुरू कर दिया। फ्लोर्स दिखाने के लिए जब चित्रनगरी (फ़िल्मसिटी) लेकर गया तो वो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से नहीं थे। टैलेंट होने के बावजूद फ़िल्म मोरक्को चली गयी।''
नितिन आगे कहते हैं, ''मुझे बतौर आर्टिस्ट बहुत धक्का लगा कि मुझे अपने देश में ही कुछ करना है और फिर स्टेट ऑफ़ आर्ट स्टूडियो बनाने की परिकल्पना की।'' इस स्टूडियो में उन्होंने आगरा फोर्ट बनाया, जिसमें जोधा अकबर की शूटिंग हुई। झांसी की रानी हों या छत्रपति शिवाजी महाराज, नितिन देसाई ने सभी के लिए काम किया है।
क्यों प्रसिद्ध है पानीपत की तीसरी लड़ाई
आशुतोष की फ़िल्म 18वीं शताब्दी में हुई 'पानीपत' की तीसरी लड़ाई पर आधारित है, जो मराठा साम्राज्य और अफ़गानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच हुई थी। पानीपत की तीसरी लड़ाई को इतिहास में काफ़ी अहम समझा जाता है। ये लड़ाई मराठों की शूर वीरता के लिए जानी जाती है। एक ही दिन में सबसे अधिक सैनिकों के बलिदान के लिए भी 'पानीपत' का तीसरा युद्ध इतिहास में प्रसिद्ध है। इस लड़ाई में मराठा सिपाहियों की बहादुरी ने अहमद शाह अब्दाली को भी प्रभावित किया था। 'पानीपत' में अर्जुन कपूर, कीर्ति सनोन और संजय दत्त मुख्य भूमिकाओं में हैं।