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बनने आए थे हीरो बन गए 'मोगैंबो'

नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमरीश पूरी अमर खलनायकों में से एक हैं। बड़ा कद और घूमती आंखों के साथ उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपने दम पर सफलता का वो मुकाम हासिल किया जिसे आज भी लोग याद करते हैं। क्या आपको पता है कि वे मुंबई हीरो बनने के सपने के साथ आए थे, लेकिन निराश होकर रंगमंच की दुनिया से चले गए थे। महान हि

By Edited By: Published: Sat, 22 Jun 2013 11:31 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jun 2013 01:05 PM (IST)
बनने आए थे हीरो बन गए 'मोगैंबो'

नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमरीश पूरी अमर खलनायकों में से एक हैं। बड़ा कद और घूमती आंखों के साथ उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपने दम पर सफलता का वो मुकाम हासिल किया जिसे आज भी लोग याद करते हैं। क्या आपको पता है कि वे मुंबई हीरो बनने के सपने के साथ आए थे, लेकिन निराश होकर रंगमंच की दुनिया से चले गए थे। महान हस्तियां उनका नाटक देखने के लिए आतीं थीं। पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए। गब्बर के बाद मोगैंबो को ही फिल्मी दुनिया का खलनायक बना दिया गया। उनकी संवेदनशील कहानी उनकी पूरी आत्मकथा बयां करती है।

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अमरीश पुरी का जन्म 22 जून, 1932 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। शिमला के बीएम कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। रंगमंच से बहुत लगाव होने के कारण शुरुआत में वह इससे जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया। फिल्म मि.इंडिया में अमरीश पुरी का ये डॉयलॉग 'मोगैंबो खुश हुआ' इतना लोकप्रिय हुआ कि इस डॉयलॉग ने उन्हें रातों रात स्टार बना दिया।

रंगमंच से नाता

1960 के दशक में अमरीश पुरी ने रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियां दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कॅरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था।

आगे चलकर अमरीश पुरी ने अपने बड़े भाई मदन पुरी का अनुसरण करते हुए फिल्मों में काम करने मुंबई पहुंच गए। लेकिन पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर पृथ्वी थियेटर में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टीवी विज्ञापनों तक पहुंचाया, जहां से वह फिल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुंचे।

फिल्मी सफर

अमरीश पुरी ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत 1971 की प्रेम पुजारी से की। उनका सफर 1980 के दशक में यादगार साबित हुआ। इस पूरे दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। 1987 में शेखर कपूर की फिल्म मिस्टर इंडिया में मोगैंबो की भूमिका के जरिए वे सभी के जेहन में छा गए। 1990 के दशक में उन्होंने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, घायल और विरासत में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता।

अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल फिल्मों तथा हॉलीवुड फिल्म में भी काम किया। उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया।

व्यक्तिगत जीवन

पर्दे पर अकसर निगेटिव रोल करने वाले अमरीश पुरी व्यक्तिगत जीवन में धार्मिक और दयालु व्यक्ति थे। 12 जनवरी, 2005 को अमरीश पुरी का निधन हो गया। आज अमरीश पुरी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी फिल्मों के माध्यम से हमारे दिल में बसी हैं। पर्दे पर अमरीश पुरी को गब्बर सिंह (अमजद खान) के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध और कामयाब विलेन माना जाता था। अमरीश पुरी के अंदर ऐसी अद्भुत क्षमता थी कि वह जिस रोल को करते थे वह सार्थक हो उठता था।

अगर आपने उन्हें मिस्टर इंडिया के मोगैंबो के रोल में देख कर उनसे नफरत की थी तो उन्होंने ही दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में सिमरन का पिता बन सबके दिल को छू लिया था। अमरीश पुरी हर किरदार में फिट होने वाले एक आदर्श अभिनेता थे। एक पिता, दोस्त और विलेन तीनों ही किरदार पर उनकी पकड़ उन्हें एक महान कलाकार बनाती थी। हिंदी सिनेमा इस महान अभिनेता के बिना शायद अधूरी ही रहती।

मुख्य फिल्में

निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मि. इंडिया, नगीना, लोहा, घायल, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला, कुर्बानी 1980 नसीब 1981 विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाकानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, और सल्तनत 1986, और जंगबाज 1986 जैसी कई सफल फिल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई।

'मोगैंबो' का यादगार किरदार

वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म मासूम की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केंद्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो इनविजबल मैन पर आधारित थी। इस फिल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था,जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ।

इस फिल्म में उनके किरदार का नाम था मोगेम्बो और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फिल्म के बाद उनकी तुलना फिल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फिल्म में उनका संवाद मोगैंबो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं।

भारतीय मूल के कलाकारों को विदेशी फिल्मों में काम करने का मौका नहीं मिल पाता है लेकिन अमरीश पुरी ने जुरैसिक पार्क जैसी ब्लाकबास्टर फिल्म निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ डूम में खलनायक के रूप में मां काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

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