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Exclusive: अगर एेसा हुआ तो लव स्टोरी फिल्मों का हिस्सा होंगे मनोज बाजपेयी

मनोज बाजपेयी की फिल्म गली गुलियां 7 सितंबर को सिनेमाघरों में दस्तक देगी।

By Rahul soniEdited By: Published: Wed, 29 Aug 2018 10:40 PM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 03:51 PM (IST)
Exclusive: अगर एेसा हुआ तो लव स्टोरी फिल्मों का हिस्सा होंगे मनोज बाजपेयी
Exclusive: अगर एेसा हुआ तो लव स्टोरी फिल्मों का हिस्सा होंगे मनोज बाजपेयी

राहुल सोनी, मुंबई। मनोज बायपेयी को अभी तक ज्यादातर सीरियस किरदार निभाते हुए देखा है। वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सफल अभिनता हैं। जागरण डॉट कॉम से एक्सक्सूसिव बातचीत में मनोज बाजपेयी ने इस बात का खुलासा किया कि वे कभी सीरियस रोल्स से हटकर लव स्टोरी बेस्ड फिल्मों में काम करेंगे या नहीं। 

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मनोज बाजपेयी ने बताया कि, लव स्टोरी पर बनने वाली फिल्म में वे जरूर काम करना चाहते हैं अगर वह कुछ हटकर होती हैं। मनोज कहते हैं कि, मेरे साथ भला लव स्टोरी कौन बनाएगा। इतने सीरियस किरदार निभा चुका हूं लेकिन मेरी इच्छा जरूर लव स्टोरी का हिस्सा बनने की। रोबर्ट डी नीरो और मेरिल स्ट्रीप की हॉलीवुड फिल्म है 'फॉलिंग इन लव' जिसमें पति-पत्नी को एक बार फिर शादी के बाद प्यार हो जाता है। दोनों के बीच कुछ भी बुरा नहीं है लेकिन उनके बीच की लव स्टोरी को बेहतरीन तरीके से पेश किया जाता है। अगर एेसी कुछ कहानी होती है तो दिलचस्प होगी। अगर कोई डायरेक्टर मुझे कहता है तो मैं जरूर करूंगा। 

व्यक्ति पर कहानी का प्रभाव देखना जरूरी

फिल्मों के चुनाव को लेकर मनोज बोले कि, मेरा मानना है फिल्म का चुनाव करते समय स्क्रिप्ट सबसे महत्वपूर्ण होती है। शुरुआत में यह कहना मुश्किल होता है कि फिल्म कितनी सफल होगी या कितनी दर्शकों को पसंद आएगी। लेकिन यह चुनाव हम कर सकते हैं कि हमें किस तरह की स्क्रिप्ट पसंद है और हम कैसी फिल्में करना चाहते हैं। मैं वही स्क्रिप्ट पर काम करता हूं जो मेरे दिल को छू जाती है। अगर कोई स्क्रिप्ट आपको खुद सोचने पर मजबूर नहीं कर रही है तो वो दर्शकों को भी सोचने पर मजबूर नहीं कर सकेगी। जब आप बैठकर किसी फिल्म की स्क्रिप्ट को सुनते हैं तो करोड़ों लोगों के बारे में नहीं सोचते, बल्कि आप यह सोच रहे होते हैं कि एक इंसान पर वह स्क्रिप्ट कितना असर डालेगी। इंसान के तौर पर वो स्क्रिप्ट कितने लोगों पर प्रभाव डाल सकेगी। 

गैंग्स अॉफ वासेपुर जैसी फिल्म बनते रहना चाहिए

मनोज बाजपेयी कहते हैं कि, गैंग्स अॉफ वासेपुर जैसी फिल्में बनते रहना चाहिए। जब यह फिल्म आई थी तब नहीं पता था कि एेसी फिल्म भी बनाई जा सकती है। लेकिन किसी ने यह रिस्क लिया और लोगों को यह फिल्म बहुत पसंद आई। फिल्म अलीगढ़ में एलजीबीटी कम्युनिटी की बात की गई जो अक्सर कोई नहीं करता था। इस फिल्म को भी दर्शकों ने अच्छे से लिया। मेरा मानना है कि हमें हमेशा उस तरह की कहानी को कहना चाहिए जो हमारे बीच की हो, लोगों की हो। चाहे गैंगस्टर हो या फिर कोई प्रोफेसर या गली में एेसे आदमी की हो जो मानसिक रूप से फंसा हुआ है। आसपास की गलियों और मोहल्लों की, सड़कों पर रहने वाले लोगों की कहानी हो। अच्छी तरह से एेसी फिल्में बनाई जाएं तो दर्शक जरूर सिनेमाघरों तक पहुंचेंगे।

रियल स्टोरीज अॉफ रियल पीपल

मनोज आगे बताते हैं कि, मैं रियल स्टोरीज पर ज्यादा फोकस करता हूं। यू कहें कि रियल स्टोरीज अॉफ रियल पीपल। हमें आम लोगों की कहानी उनको क्रेंद में रखकर कहना चाहिए। जिसमें उनकी जीवनयात्रा, खुशी या दुख की बात की जाए। और यह सिलसिला गली गुलिया से शुरू करने जा रहा हूं। इस फिल्म की कहानी दिमाग से डील करती है।इसमें आम आदमी की पीड़ा को दिखाया जाएगा जिसे अक्सर लोग समझ नहीं पाते। उसके पास शब्द नहीं है बोलने के लिए कि किस तरह की पीड़ा से वह व्यक्ति गुजर रहा है। दरअसल, एेसा सिनेमा देखने के लिए दर्शक बिल्कुल तैयार हैं। इस फिल्म के जरिए आदमी की मानसिक यात्रा या खामोशी की बात कर रहे हैं। इसी कड़ी में मेरी अगली फिल्म भोसले होगी।

यह परंपरा कायम है और कायम रहेगी

डिजीटल वर्ल्ड के बाद अब फिल्मों के अस्तित्व के सवाल पर मनोज बाजपेयी कहते हैं कि, मुझे नहीं लगा कि फिल्मों की जगह कोई और ले सकेगा। क्योंकि सबसे पहले थिएटर था जिसके बाद फिल्में आई। लेकिन थिएटर आज भी है और लोग खुशी से कर रहे हैं। वैसा ही टीवी सीरियल्स आए तो लोग कहने लगे थे कि फिल्म नहीं चलेंगी। लेकिन एेसा नहीं हुआ। और अब वेबसीरिज के आने के बाद फिर से वही बहस छिड़ गई है। वेब सीरिज के आने के बाद भी फिल्में वैसे ही चलती रहेंगी जैसे कि चली आ रही हैं। क्योंकि यह एक परंपरा है जो कभी खत्म नहीं हो सकती और न ही मर सकती है। हां, यह जरूर है कि डिजीटल प्लेटफॉर्म अलग है जो दुनिय भर की सारी चीजों को आपके पास लाकर दे देता है। जब जब जिसके लिए आपके पास समय हो तब तब मनोरंजन आपके पास हाजिर रहेगा। गौर करने वाली बात यह है कि, दर्शक बहुत सारे हैं जो कि मनोरंजन के भूखे हैं। हमार देश खास तौर पर कहानियों को देखना चाहता है। सबसे अच्छा उदाहरण न्यूटन और अलीगढ़ का है कि एेसी फिल्में भी दर्शक देखते हैं। इसलिए कोई भी मंच कभी नहीं मरेगा। 

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मनोज बाजपेयी की फिल्म गली गुलियां 7 सितंबर को सिनेमाघरों में दस्तक देगी। इस फिल्म के लिए मनोज वाजपेयी को अभी हाल ही में हुए मेलबर्न इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया थाl 

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