देव साहब: 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे'
हिन्दी सिनेमा की फिल्म 'पगला कहीं का' का मशहूर गीत 'तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे' कहीं ना कहीं देव आनंद साहब पर सटीक बैठता है क्योंकि उन्होंने हिन्दी सिनेमा को अपनी जिंदगी ही बना लिया। देव साहब ना केवल एक अच्छे अभिनेता बने बल्कि एक फिल्म निर्माता और निर्देशक भी बने। वास्तव में देव आनंद को चाहने वाले उन्हें कभी भी भुला ना पाएंगे। आज
हिन्दी सिनेमा की फिल्म 'पगला कहीं का' का मशहूर गीत 'तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे' कहीं ना कहीं देव आनंद साहब पर सटीक बैठता है क्योंकि उन्होंने हिन्दी सिनेमा को अपनी जिंदगी ही बना लिया। देव साहब ना केवल एक अच्छे अभिनेता बने बल्कि एक फिल्म निर्माता और निर्देशक भी बने। वास्तव में देव आनंद को चाहने वाले उन्हें कभी भी भुला ना पाएंगे। आज ही के दिन देव साहब का जन्म हुआ था इसलिए हम उनसे जुड़ी खास बातों का जिक्त्र करेंगे।
आज भी रहस्यमय है देवानंद की कहानी
देव आनंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर जिले में 26 सितंबर साल 1923 को हुआ था। उनके बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था और उनका बचपन से ही झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था। देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की थी।
देव आनंद को पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में मिली थी जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था।
देव आनंद और दिलीप कुमार के बीच क्यों थी तकरार?
देव आनंद की एक मुख्य अभिनेता के रूप में पहली फिल्म 'हम एक हैं' थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरुदत्त से हुई और वहीं से दोनों की मित्रता की शुरुआत हो गई। दोनों एक-दूसरे के काफी करीबी दोस्त बने जिस कारण हमेशा एक-दूसरे के मुश्किल समय में साथ खड़े रहे।
साल 1947 में देव आनंद चर्चगेट पर लोकल ट्रेन में बैठे थे। इतने में शाहिद लतीफ उनके पास आकर बैठे और पूछा कि इन दिनों क्या कर रहे हो? देव ने जवाब दिया कुछ खास नहीं। इसके बाद ही उन्हें दूसरे दिन बॉम्बे टॉकीज बुलाया गया। अशोक कुमार ने देव आनंद को फिल्म जिद्दी में कामिनी कौशल का हीरो बना दिया।
बॉलीवुड के सुपरस्टार्स की अफेयर की खबरें हर रोज आती रहती हैं पर कभी भी किसी स्टार की हिम्मत नहीं होती है कि वो अपने प्यार का इजहार सरेआम कर सके। देव आनंद ने सुरैया से मोहब्बत करने का इजहार सरेआम किया और जब उन्हें इस प्यार में दर्द मिला तो भी उन्होंने पूरी मीडिया के सामने कहा कि 'उन्हें सुरैया से आज भी मोहब्बत है और यह बात पूरे समाज के सामने कहने में उन्हें किसी भी प्रकार की झिझक नहीं है'।
किशोर कुमार की आवाज के जादू से तीन अभिनेता शिखर पर पहुंचे उनमें देव आनंद का नाम पहले नंबर पर है और दूसरे राजेश खन्ना तथा तीसरे अमिताभ बच्चन हैं।
देव आनंद भारतीय सिनेमा के बहुत ही सफल कलाकार, निर्देशक और फिल्म निर्माता थे। देव आनंद जिंदगी में सीखने के लिए उत्साहित रहते थे इसलिए उन्होंने अभिनय के साथ-साथ फिल्मों का निर्देशन भी सीख लिया।
देव आनंद ने राज कपूर के साथ कभी भी कोई फिल्म नहीं की। देव आनंद की दोस्ती दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान से थी इसलिए वो दिलीप साहब को अपने दोस्त का बड़ा भाई मानकर आदर देते थे।
देव आनंद की निजी और उनकी हिन्दी सिनेमा से जुड़ी तमाम बातों को लेकर उनके बेटे सुनील आंनद 'वैगेटर मिक्सर' नाम की फिल्म बनाने जा रहे हैं। बॉलीवुड सूत्रों के अनुसार, फिल्म 'वैगेटर मिक्सर' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनायी जाएगी और इस फिल्म की शुरुआत देवानंद की जयंती की तारीख 26 सितंबर से होगी।
देव आनंद ने 'गाइड', 'पेइंग गेस्ट', 'बाजी', 'ज्वैल थीफ', 'सीआइडी', 'जॉनी मेरा नाम', 'अमीर गरीब', 'वारंट', 'हरे रामा हरे कृष्णा' और 'देस परदेस' जैसी सुपर हिट फिल्में दीं। साल 1965 में देव आनंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। साल 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। साल 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
देव आनंद की मुख्य अभिनेता के रूप में आखिरी फिल्म 'चार्जशीट' थी और इस दौरान उनकी उम्र 88 साल की थी। 4 दिसंबर, 2011 को लंदन में हिन्दी सिनेमा ने अपना सबसे कीमती तोहफा देव आनंद को खो दिया। कहते हैं ना व्यक्ति चले जाते हैं पर यादें हमेशा रह जाती हैं कुछ इसी तरह देव आनंद से जुड़ी खास बातों को उनके चाहने वाले हमेशा अपने दिलों में यादों के रूप में सहेज कर रखेंगे।
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