45 Years Of Emergency: किशोर कुमार की आवाज़ पर जब लगा 'आपातकाल', दूरदर्शन पर हो गये थे बैन
45 Years Of Emergency किशोर पर बैन 4 मई 1976 से लगाया गया था जो आपातकाल के समाप्त होने तक जारी रहा। इमरजेंसी का असर फ़िल्मों पर भी पड़ा।
नई दिल्ली, जेएनएन। 25 जून 1975 को रात 12 बजे इंदिरा गांधी सरकार ने देश में आपातकाल का एलान कर दिया था। भारतीय राजनीति के इतिहास में इसे एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। आपातकाल की अवधि कई ऐसे किस्सों से भरी पड़ी है, जो आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा हैं और लोकतांत्रिक देश की परम्पराओं पर काले धब्बे की तरह हैं।
ऐसा ही एक किस्सा भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के लीजेंडरी गायक किशोर कुमार से जुड़ा है। इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस सरकार ने किशोर कुमार को दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर प्रतिबंधित कर दिया था और इसके पीछे की वजह जानकर चौंक जाएंगे।
इस किस्से का ज़िक्र 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के मुंबई में हुए एक कार्यक्रम में भी किया था। पीएम मोदी ने बताया था कि तात्कालिक सरकार ने वेटरन गायक को सिर्फ़ इसलिए दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर बैन कर दिया था, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस की एक रैली में गाना गाने से इंकार कर दिया था।
उस वक़्त सूचना प्रसारण मंत्रालय वीसी शुक्ला के पास था, जो इंदिरा के बेटे संजय गांधी के करीबी माने जाते थे। किशोर पर बैन 4 मई 1976 से लगाया गया था, जो आपातकाल के समाप्त होने तक जारी रहा। इमरजेंसी का असर फ़िल्मों पर भी पड़ा। कुछ फ़िल्मों को विभिन्न कारणों से बैन कर दिया गया।
इन फ़िल्मों पर पड़ा असर
शोले- हिंदी सिनेमा की कालजयी फ़िल्म शोले पर भी इमरजेंसी का असर पड़ा था। फ़िल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है कि ठाकुर गब्बर को मारने वाला होता है, मगर पुलिस पहुंचती है और एक्स पुलिस अफ़सर होने के नाते ठाकुर को कानून का वास्ता देकर मारने से रोक लेती है। मगर, फ़िल्म का यह क्लाइमैक्स नहीं था। निर्देशक रमेश सिप्पी ने फ़िल्म के क्लाइमैक्स में ठाकुर के हाथों गब्बर को मरवा दिया था, मगर इमरजेंसी के हालात देखते हुए सेंसर बोर्ड को यह ठीक नहीं लगा कि एक पूर्व पुलिस अफ़सर विजिलांटे बनकर कानून अपने हाथ में ले ले। लिहाज़ा क्लाइमैक्स बदला गया। शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई थी।
आंधी- गुलज़ार की क्लासिक फ़िल्म आंधी को इसलिए बैन कर दिया गया था, क्योंकि यह माना गया कि फ़िल्म इंदिरा गांधी की पर्सनल लाइफ़ से प्रेरित है।
किस्सा कुर्सी का- अमित नहाटा निर्देशित फ़िल्म इसलिए बैन की गयी, क्योंकि इसमें संजय गांधी के कुछ प्लांस का मज़ाक बनाया गया था। फ़िल्म को सेंसर बोर्ड के पास अप्रैल 1975 को भेजी गयी थी। बाद में संजय गांधी के समर्थकों ने सेंसर बोर्ड से इसका मास्टर प्रिंट और कॉपी हथिया लीं और उन्हें जला दिया था। फ़िल्म बाद में दूसरी स्टार कास्ट के साथ बनायी गयी।