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10th Jagran Film Festival: प्रचारित नहीं, दर्शकों को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए फिल्में - ओनिर

10th Jagran Film Festival फिल्म फेस्ट के दूसरे दिन शार्ट फिल्म विडोज ऑफ वृंदावन के इंडियन प्रीमियर पर फिल्ममेकर ओनिर ने सिनेमा को लेकर अपने विचार व्यक्त किए।

By Rahul soniEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 06:55 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jul 2019 06:55 PM (IST)
10th Jagran Film Festival: प्रचारित नहीं, दर्शकों को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए फिल्में - ओनिर
10th Jagran Film Festival: प्रचारित नहीं, दर्शकों को प्रभावित करने वाली होनी चाहिए फिल्में - ओनिर

हंस राज, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित वृंदावन राधा और कृष्ण की नगरी के रूप में विख्यात है। भक्ति के अद्भुत समागम में श्रद्धा की डुबकी लगाने के लिए साल भर देश-विदेश के सैलानी पहुंचते हैं। वृंदावन की आभा को निगाहों में भरकर लौटते हैं, लेकिन शुक्रवार को जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) के दूसरे दिन बांग्ला शार्ट फिल्म ‘विडोज ऑफ वृंदावन’ एक अलग कहानी बयां कर रही थी। आश्रम की पांच महिलाओं की जीवन यात्रा से गुजरते हुए दर्शकों की पलकें गीली हो रही थी। लगभग 20 मिनट की फिल्म सिनेमा प्रेमियों पर जहां अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही वहीं, सवाल-जवाब सत्र में निर्देशक ओनिर ने फिल्म निर्माण की बारीकियों से भी अवगत करवाया। 

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ओनिर ने कहा कि हम सभी एक वैश्विक समुदाय का हिस्सा हैं। हमें एक दूसरे की समस्याओं के बारे में पता होना चाहिए ताकि समाधान की दिशा में कदम उठाए जा सकें। विधवाओं के साथ हमेशा से भेदभाव पूर्ण व्यवहार होता रहा है। एक ओर परंपरा के नाम पर इन्हें अधिकारों से वंचित रखा जाता है तो दूसरी ओर परिवार के अंदर उन्हें बोझ समझा जाता है। यह स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी है। वृंदावन के आश्रम में भी सैकड़ों विधवाएं हैं जिन्हें उनके बेटे या परिवार वाले कृष्ण दर्शन के नाम पर छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने तक नहीं आए। आश्रम के भीतर की दुनिया बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि मानवीय संवेदनाओं को उकेरती ऐसी फिल्में किसी विषय वस्तु को प्रचारित करने के लिए नहीं बल्कि एक बड़े तबके को प्रभावित करने के लिए बनाई जाती है।

ओनिर ने आगे कहा कि ‘जेएफएफ में स्वतंत्र रूप से बनी फिल्मों को जिस तरह से देश भर के दर्शकों तक पहुंचाया जाता है वो सराहनीय है। खास कर छोटे शहर जहां स्वतंत्र फिल्म निर्माता-निर्देशकों के लिए फिल्मों को पहुंचाना मुश्किल होता है, जेएफएफ ने वहां भी ऐसी फिल्मों के लिए टेस्ट डेवलप करने काम किया है। एक दशक में जेएफएफ अंतरराष्ट्रीय सिनेमा विशेष तौर पर स्वतंत्र रूप से बनी फिल्मों के लिए संजीवनी साबित हुआ है।'


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