10th Jagran Film Festival: भाषाई बंधन तोड़ती फिल्में संवार रही सिनेमा का भविष्य
10th Jagran Film Festival फ्यूचर ऑफ सिनेमा सत्र में बाहुबली फिल्म के निर्माता शोबू यरलागड्डा व निर्देशक केतन मेहता ने रखे विचार।
हंस राज, नई दिल्ली। 10वें जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) के पहले दिन ‘फ्यूचर ऑफ सिनेमा- ब्रेकिंग लैंग्वेज बैरियर्स इन इंडियन सिनेमा’ विषय पर फिल्म निर्माता शोबू यरलागड्डा और निर्देशक केतन मेहता से फिल्म आलोचक राजीव मसंद की बातचीत में सिनेमा के अतीत से लेकर वर्तमान और भविष्य पर ऐसी ढेरों बातचीत की।
केतन मेहता ने कहा ‘बाहरी देश की तरह यहां की सरकार सिनेमा की शक्ति को अभी तक नहीं समझ सकी है। अगर उस स्तर से भी भारतीय सिनेमा को सपोर्ट मिले तो यह ग्लोबल इंडस्ट्री बन जाएगी। हमें स्वतंत्र हुए सात दशक बीत गए, लेकिन सिनेमा को लेकर हमारी सोच में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। भारतीय फिल्में आज भी परंपरागत दायरे तक सीमित है। एक भाषा की फिल्में दूसरी भाषा के दर्शकों तक न के बराबर पहुंच पाती है। हालांकि पिछले दो दशक में सिनेमा में काफी बदलाव आया है। भाषाई बंधन तोड़ती फिल्में अब सिनेमा का भविष्य संवार रही है।’
थिएटर से पॉकेट थिएटर तक पहुंचे चुके सिनेमा के दौर को लेकर केतन मेहता ने कहा कि बतौर दर्शक या निर्माता-निर्देशक, हम सिनेमा के सबसे खूबसूरत दौर से गुजर रहे हैं। विभिन्न माध्यमों से हर व्यक्ति तक आसानी से फिल्में पहुंच रही है। लोग एक सप्ताह में दस-दस फिल्में देख पा रहे हैं जो इस बात को साबित करती है कि सिनेमा की जरूरत और मांग दोनों में इजाफा हो रहा है।
वहीं, बाहुबली सरीखी फिल्म का निर्माण करने वाले शोबू यरलागड्डा ने भारतीय सिनेमा में तकनीक के बढ़ते दखल को सकारात्मक बताते हुए कहा कि वर्तमान में भारतीय फिल्में अगर वैश्विक पहचान बना रही है तो उसमें तकनीक की भूमिका महत्वपूर्ण है। सिनेमा और तकनीक को लेकर दर्शकों द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में केतन मेहता ने कहा कि सिनेमा में प्रयोग हो रहे तकनीक को खामखा का बदनाम किया जाता है। तकनीक सिनेमा को और प्रभावशाली बनाती है। बकौल मेहता, ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित होने के बावजूद फिल्म ‘मांझी द माउंटेनमैन’ के निर्माण के वक्त कई जगहों पर उन्होंने तकनीक का सहारा लिया। तकनीक कलाकारों के अभिनय पक्ष पर कोई प्रभाव नहीं डालती है। इसी सवाल का जवाब देते हुए शोबू यरलागड्डा ने माना कि वर्चुअल रिएलिटी (वीआर) या वर्चुअल इफैक्ट्स (वीएफएक्स) जैसी सुविधाएं सिनेमा को सिर्फ सपोर्ट करती है, लेकिन सफल अच्छी कहानी बनाती है।
दर्शकों के जिज्ञासा का भी किया समाधान : सत्र के आखिर में दर्शकों को भी निर्माता-निर्देशक से सवाल-जवाब का मौका मिला। एक सवाल के जवाब में शोबू ने कहा कि यह सिनेमा का सिल्वर-गोल्डन जुबली वाला दौर नहीं है। इस समय हम किसी फिल्म के लिए यह नहीं सोच सकते कि यह फिल्म पर्दे पर सौ दिन तक रहेगी। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पहले कम फिल्में बनती थी तो प्रदर्शन के लिए हर फिल्म को पर्याप्त पर्दा मिल जाता था। आज स्थिति अलग है। हर भाषा में फिल्में बन रही हैं और खूब बन रही हैं। साथ ही कई ऐसे अॉनलाइन प्लेटफार्म है जहां लोग फिल्म का इंतजार करते हैं।
जेएफएफ के रास्ते जनसामान्य तक पहुंचती है फिल्में जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) से करीब चार साल से जुड़े केतन मेहता कहते हैं, 'सिनेमा को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए दस वर्ष पहले शुरू हुआ जेएफएफ सिनेमा को सही दर्शक तक पहुंचाने में सफल रहा है। ये बातें मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि महोत्सव के पिछले चार आयोजनों का गवाह रहा हूं। जो चयनित सिनेमा यहां प्रदर्शित होता है वह सिनेमा प्रेमियों के लिए खास होता ही है, सिनेमा को लेकर अभिनेता, निर्माता और निर्देशक से सीधा संवाद का मौका भी इस क्षेत्र में भविष्य तलाशते युवाओं के लिए एक अच्छा मौका होता है। जेएफएफ ने एक दशक का सफर तय कर लिया है, इस लौ को जलते रहने देने की जरूरत है।'
आपको बता दें कि जागरण फिल्म फेस्टिवल की औपचारिक शुरुआत अपर्णा सेन की बांग्ला फिल्म घरे बायरे आज के वर्ल्ड प्रीमियम से हुई। ये फिल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर की अमर कृति घरे बायरे (घर और दुनिया) पर बनी है जो गुरुदेव ने 1916 में लिखी थी। इस कृति पर सबसे पहले महान फिल्मकार सत्यजित रे ने 1984 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी। रे की फिल्म भी बेहद सफल रही थी और इसको कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे। अब अपर्णा सेन ने इस फिल्म को नए सिरे से ‘घरे बायरे आज’ के नाम से बनाया है । इस फिल्म को देखने के लिए मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन समेत कई नामचीन लोग मौजूद थीं। इस फिल्म के प्रदर्शन से पहले इसकी निर्देशक अपर्णा सेन ने दर्शकों के साथ इस फिल्म को बनाने के अपने अनुभवों को साझा किया। इसके अलावा अपर्णा सेन फिल्म के प्रदर्शन के दौरान पूरे समय तक दर्शकों के साथ हॉल में बैठी रहीं। फिल्म के खत्म होने के बाद कई दर्शकों ने उनको अपनी प्रतिक्रिया से अवगत भी कराया। चितरंजन पार्क से आईं एक दर्शक मधुमिता घोष ने इस फिल्म को देखने के बाद खुशी जाहिर की और कहा कि अपर्णा ने इसको नए तरीके से इसको बनाया है।