Move to Jagran APP

रहते थे कभी जिनके दिल में हम

'ममता' फिल्म का गीत 'रहते थे कभी जिनके दिल में हम' लता मंगेशकर ने गाया और इस गीत के कारण यह फिल्म चर्चाओं में आई पर इस फिल्म को हिन्दी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में शामिल करवाने के पीछे सुचित्रा सेन का हाथ था।

By Edited By: Published: Fri, 17 Jan 2014 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2014 12:05 PM (IST)
रहते थे कभी जिनके दिल में हम

साल 1966 में आई 'ममता' फिल्म का गीत 'रहते थे कभी जिनके दिल में हम' लता मंगेशकर ने गाया और इस गीत के कारण यह फिल्म चर्चाओं में आई पर इस फिल्म को हिन्दी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में शामिल करवाने के पीछे सुचित्रा सेन का हाथ था। सुचित्रा सेन ने बड़ी सादगी के साथ इस फिल्म में अभिनय किया था। केवल 'ममता' फिल्म ही नहीं बल्कि वो जिस किसी फिल्म में अभिनय करती थीं उस किरदार को निभाने में जी जान लगा देती थीं।

loksabha election banner

जब राजकपूर को ना कह दिया था सुचित्रा ने

आज सुचित्रा सेन हमारे बीच नहीं रहीं पर आज भी उनकी सादगी, कला, और अंदाज उनके चाहने वालों को याद है। पारम्परिक मूल्यों को मानने वाले शिक्षक करुनामोय दासगुप्ता की बेटी अभिनेत्री सुचित्रा सेन सादगी में विश्वास रखती थीं। मात्र 16 वर्ष की उम्र में साल 1947 में सुचित्रा सेन का विवाह दिबानाथ सेन से हुआ। सुचित्रा सेन ने दीप ज्वेले जाई और उत्तर फाल्गुनी जैसी मशहूर बांग्ला फिल्में कीं और हिंदी फिल्मों में देवदास, बंबई का बाबू ममता तथा आंधी जैसी बेहतरीन फिल्में हिन्दी सिनेमा को दीं। साल 1972 में सुचित्रा सेन को पद्मश्री अवॉर्ड से भी नवाजा गया। सुचित्रा सेन फिल्मी दुनिया में मुकाम हासिल कर रही थीं पर साल 1978 के बाद उन्होंने गुमनामी को अपना साथी बना लिया।

यह कारनामा करने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन

सुचित्रा सेन की निजी जिंदगी के बारे में शायद ही कोई कुछ खास बातें जानता हो। हिन्दी सिनेमा में जिस तरह दिलीप कुमार-मधुबाला और देव आनंद-सुरैया की जोड़ी को पसंद किया जाता था उसी तरह बंगाली फिल्मों में सुचित्रा-उत्तम कुमार की जोड़ी मशहूर थी। यहां तक कि बहुत बार ऐसा भी कहा गया कि सुचित्रा सेन और उत्तम कुमार एक-दूसरे को बेहद पसंद करते हैं और इन दोनों के बीच दोस्ती से बढ़कर भी कुछ है।

तस्वीरों में देखें, सुचित्रा सेन का सफरनामा

सुचित्रा सेन की सादगी में भी एक नशा था जिस कारण उनके चाहने वाले आज भी उन्हें 'पारो' के नाम से याद करते हैं और उन्हें हिन्दी सिनेमा की पहली 'पारो' कहा जाता है। कभी विमल राय की फिल्म देवदास में दिलीप कुमार पारो को देखकर कहते हैं 'तुम चांद से ज्यादा सुंदर हो, उसमें दाग लगा देता हूं' और उसके माथे पर छड़ी मारकर जख्म बना देते हैं। सचमुच सुचित्रा सेन जैसा बेदाग सौंदर्य शायद ही पर्दे पर देखा गया हो।

फिल्मों का चुनाव, कहानी की गंभीरता और पर्दे पर अभिनय की कला को प्रदर्शित करने का तरीका इन तीनों गुणों का सम्मिलन शायद ही किसी अभिनेत्री में हो। कभी 'देवदास' जैसी फिल्म में 'पारो' का किरदार निभाया और कभी 'आंधी' फिल्म में महिला को राजनीति करते हुए दिखाया। इसी तरह 'ममता' और उसके बंगाली मूल 'सात पाके बाधा' जैसी फिल्मों में सुचित्रा सेन ने मां और बेटी की दोहरी भूमिकाएं निभाई थी। ऐसा नहीं था कि सुचित्रा सेन कम ही समय में अपने लिए सही फिल्म का चुनाव कर लेती थीं पर हां, यह जरूर था कि वो किरदार की गंभीरता को देखते हुए फिल्मों को अपने लिए चुनती थीं। यही कारण था कि उन दिनों सुचित्रा सेन ने 25 से भी ज्यादा फिल्में करने से मना कर दिया था। वास्तव में ऐसी अभिनेत्री को भुला पाना फिल्म जगत के लिए मुश्किल है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.