किशोर दा: कभी अलविदा न कहना..
'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना..', लगता है जैसे किशोर कुमार ने यह गीत अपने लिए ही गाया था। कौन है, जो ऐसे महान कलाकार और उनके गीतों को भुला सकता है? किशोर दा अगर आज जीवित होते तो
मुंबई। 'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना..', लगता है जैसे किशोर कुमार ने यह गीत अपने लिए ही गाया था। कौन है, जो ऐसे महान कलाकार और उनके गीतों को भुला सकता है? किशोर दा अगर आज जीवित होते तो 84 बरस के हो जाते। बेशक आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आभास कुमार गांगुली की हमारे दिलों में मौजूदगी का 'आभास' उनके गीत और फिल्में हर पल कराते हैं।
अपने रोमांटिक और दर्दभरे गीतों के लिए आज भी याद किए जाने वाले आभास कुमार गांगुली यानी किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा के एक बंगाली परिवार में हुआ था। पिता पेशे से वकील थे, लेकिन बचपन से ही किशोर का मन तो सिर्फ गीत-संगीत और अभिनय में लगता था। सबसे बड़े भाई अशोक कुमार पहले ही मुंबई जाकर फिल्म इंडस्ट्री में पांव जमा चुके थे और दूसरे भाई अनूप कुमार भी वहां स्थापित होने की कोशिश कर रहे थे। किशोर ने भी भाइयों के नक्शे-कदम पर चलते हुए मायानगरी मुंबई को अपनी कर्मस्थली बनाने की ठान ली।
गायक से पहले अभिनेता
अभिनेता के तौर पर किशोर कुमार ने अपने भाई अशोक कुमार की फिल्म 'शिकारी' से की। लेकिन गाने का पहला मौका उन्हें दो साल बाद 'जिद्दी' फिल्म में मिला। केएल सहगल के इस फैन ने देवानंद के लिए पहला गीत गाया। जिद्दी को सफलता मिलने के बावजूद उन्हें कोई खास काम नहीं मिला। कुछ विफल फिल्मों के बाद एक्टर के तौर पर किशोर कुमार का जादू चलने लगा। उन्होंने 'आशा', 'झुमरू' और 'हाफ टिकट' समेत लगभग 81 फिल्में की, लेकिन 'पड़ोसन' के लिए उन्हें एक्टर के तौर पर सबसे ज्यादा याद किया जाता है।
एसडी बर्मन ने पहचानी काबिलियत
किशोर कुमार की काबिलियत सिर्फ एक्टिंग तक सीमित नहीं रही। उनके अंदर एक असाधारण गायक छिपा था, जिसे ठीक से पहचाने में अहम भूमिका निभाई एसडी बर्मन ने। बर्मन साहब ने उन्हें 'फंटूश', 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर' और 'गाइड' समेत कई यादगार फिल्मों में गाने का मौका दिया। फंटूश की सफलता के बाद किशोर दा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 500 से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज दी।
रफी साहब ने आवाज उधार दी
वैसे कम लोग जानते हैं कि कुछ शुरुआती फिल्मों में किशोर कुमार के लिए मोहम्मद रफी ने भी गाया था। रफी साहब ने फिल्म रागिनी और शरारत में किशोर कुमार को अपनी आवाज सिर्फ एक रुपए मेहनताना लेकर उधार दी थी।
चार शादियां
किशोर दा व्यवसायिक जीवन में जितने सफल रहे, उतने ही निजी जीवन में ठहराव के लिए शायद तरसते भी रहे। यही वजह है कि उन्होंने चार-चार शादियां कीं। उनकी पहली शादी बंगाली अदाकारा और गायक रूमा घोष से हुई, लेकिन यह शादी आठ साल ही चली। दूसरी शादी खूबसूरत मधुबाला से रचाई। किशोर कुमार ने जब मधुबाला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था, तब वह बीमार थीं और इलाज के लिए लंदन जाने वाली थीं। मधुबाला को तब पता नहीं था कि उनके दिल में छेद है। खैर, दोनों ने शादी तो की, लेकिन किशोर कुमार के परिवार ने बहू के तौर पर उनको पूरी तरह स्वीकारा नहीं। शादी के एक महीने के अंदर मधुबाला वापस अपने पुराने घर में रहने लगीं। किशोर कुमार और मधुबाला की शादी नौ साल तक चली और अपनी मौत तक मधुबाला उनकी पत्नी रहीं। योगिता बाली किशोर दा की तीसरी पत्नी थीं। लेकिन यह शादी मुश्किल से 2 साल ही चली। लीना चंदावरकर से शादी के बाद लगा कि किशोर कुमार की निजी जिंदगी में सब कुछ ठीक हो गया है, लेकिन 58 साल की उम्र में ही वह अपने पीछे अनगिनत सुरीली यादें छोड़कर चले गए।
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