रिटायर हो रहे चुनाव आयुक्तों के सरकारी पद लेने पर रोक लगे, माकपा ने लगाए आरोप
माकपा ने गुरुवार को आरोप लगाया कि विधानसभा चुनावों में भाजपा निर्वाचन आयुक्तों को अपने वश में कर रही है। वाम दल ने सेवानिवृत्त हो रहे मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को सरकार की ओर से प्रायोजित कोई पद स्वीकार करने से रोकने की मांग की है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। माकपा ने गुरुवार को आरोप लगाया कि चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा निर्वाचन आयुक्तों को अपने वश में कर रही है। वाम दल ने इसे ध्यान में रखते हुए सेवानिवृत्त हो रहे मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को सरकार की ओर से प्रायोजित कोई पद स्वीकार करने से रोकने की मांग की है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली के ताजा अंक में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग का निष्पक्ष होना एक पूर्व शर्त है, जो सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर प्रदान कर सकता है, नियमों का उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपट सकता है और सभी स्तरों पर सरकार के हस्तक्षेप का प्रतिरोध कर सकता है।
माकपा ने भाजपा पर लगाया चुनाव आयुक्तों को वश में करने का आरोप
इसमें कहा गया है, आयोग, जिसने दशकों में इस मामले में एक विश्वसनीय रिकार्ड बनाया है, अब उस प्रतिष्ठा को गंवाने के खतरे का सामना कर रहा है। मोदी सरकार के सर्वविदित तौर-तरीके के द्वारा आयोग को वश में किया जा रहा है। संपादकीय में कहा गया है, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने स्वतंत्र सोच प्रदर्शित की।
उन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में दोषमुक्त करने के संबंध में आयोग द्वारा लिए गए फैसलों पर कम से कम पांच बार अपनी असहमति दर्ज कराई थी। इसके शीघ्र बाद लवासा की पत्नी, बेटे और बहन को आयकर विभाग की जांच का सामना करना पड़ा था। इस बारे में मीडिया में भी खबरें आई थी। माकपा ने राज्य विधानसभा चुनावों, खासतौर पर पश्चिम बंगाल में आयोग की भूमिका पर सवाल उठाया और इसे विवादास्पद करार दिया।