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Loksabha Election2019 : बनारस पर्यटन का सरताज, पूर्वांचल में भी बहुत कुछ खास

पूर्वांचल के लिए यह एक बड़ा अवसर है कि उसके केंद्र बिंदू बनारस में पिछले चार-पांच वर्षों से सैलानियों के आने का सिलसिला रिकार्ड तौर पर बढ़ा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 09:25 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 09:45 AM (IST)
Loksabha Election2019 : बनारस पर्यटन का सरताज, पूर्वांचल में भी बहुत कुछ खास
Loksabha Election2019 : बनारस पर्यटन का सरताज, पूर्वांचल में भी बहुत कुछ खास

वाराणसी [राकेश पांडेय ]। असीम प्राकृतिक और ऐतिहासिक पर्यटक स्थलों से प्रचुर पूर्वांचल में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बड़े प्रयास किए जाने जरूरी है। यह जगजाहिर है कि पर्यटन बढ़ेगा तो उस क्षेत्र में रोजगार के तमाम अवसर बढ़ेंगे और क्षेत्र में समृद्धि आती है। पूर्वांचल के लिए यह एक बड़ा अवसर है कि उसके केंद्र बिंदू बनारस में पिछले चार-पांच वर्षों से सैलानियों के आने का सिलसिला रिकार्ड तौर पर बढ़ा है। पर्यटन के लिहाज से ब्रांड बनारस सरताज हो चुका है। बनारस में गंगा, पक्के घाट, सारनाथ और बाबा विश्वनाथ के बाद पर्यटकों को और भी रोकने के लिए और प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इसमें पूर्वांचल के अन्य जिलों में मौजूद पर्यटन स्थलों की भूमिका बड़ी हो सकती है। बशर्ते कि उन स्थलों को पर्यटकों के लिहाज से विकसित किया जाए। पर्यटन स्थलों की उपेक्षा अबकी चुनाव में बड़े मुद्दे के रूप में भी उभर सकती है।

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पूर्वांचल में पर्यटक स्थलों की उपेक्षा को विदेशी कद्रदानों की दृष्टि से समझा जा सकता है। कनाडा के प्रख्यात भूवैज्ञानिक एचजे हाफमैन कहते हैं कि अमेरिका के यलोस्टोन पार्क के जीवाश्म अभी निर्माण की प्रक्रिया में हैं फिर भी यलोस्टोन पार्क को अमेरिकी सरकार ने पर्यटन के नजरिए से इस कदर विकसित कर लिया है कि इससे सालाना करोड़ों डॉलर की कमाई की जा रही है, जबकि सलखन (सोनभद्र) का जीवाश्म पार्क तो पूरी तरह परिपक्व है और यकीनन 150 करोड़ वर्ष से ज्यादा पुराना है। 

आज की तारीख में उसी सलखन पार्क में जाएंगे तो उजाड़ सा नजारा दिखेगा। वहां मवेशी चरते मिलेंगे। जीवाश्मों को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है। सरकारों ने अपने देश की इस थाती को कायदे से पहचाना ही नहीं तो कद्र कहां से करती। ऐसे ही पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक महत्व की पर्यटन थाती मौजूद है जिन्हें सहेजने, संवारने के साथ ही उनकी ऐसी ब्रांडिंग करने की दरकार है कि पर्यटक वहां खींचे चले  आएं। अब सोचिए कि क्या गाजीपुर के गहमर गांव को पर्यटकों से नहीं जोड़ा जा सकता है क्या। एशिया के सबसे बड़ा ऐसा गांव जहां अपवाद छोड़ दें तो हर घर से जवान देश की सुरक्षा में सेना से जुड़कर सेवा कर रहा है। इस गांव में मतदाता ही सिर्फ करीब 25 हजार हैं जबकि गांव की कुल आबादी एक लाख पांच हजार है। कभी सुना है आपने इतनी आबादी वाले किसी गांव के बारे में। इस गांव में कई गलियां हैं, ढेरों दुकानें जहां जरूरत का सारा सामान मिलता है। क्या इस गांव को सैनिकों के गांव के रूप में विख्यात कर टूरिज्म से नहीं जोड़ा जा सकता है।

बलिया में करीब 3200 हेक्टेयर में फैले सुरहा ताल को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपने समय में पर्यटन के लिहाज से विकसित किया था। सर्दी के मौसम में यहां विदेशी परिंदों का ऐसा जमघट होता है कि देखते ही बने। चंद्रशेखर जी नहीं रहे तो इस मनोरम स्थल को ऐसा बिसराया गया कि अब यह भी उजाड़ सा दिखता है। आप तो जानते ही हैं कि उड़ीसा का कोणार्क मंदिर पर्यटकों की कितनी पसंदीदा जगह है। करीब-करीब ऐसा ही मंदिर मऊ के देवलास में है बालार्क सूर्य मंदिर। खंडहर में तब्दील हो चुके इस मंदिर में सात घोड़ों पर सवार सूर्य की बाल मूरत है। देवलास गांव भी अद्भुत है। यहां करीब दो किमी क्षेत्र में प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला मौजूद है लेकिन कोई पुरसाहाल नहीं। 

चंदौली, सोनभद्र और मीरजापुर की प्रकृति जल प्रपातों की लंबी श्रृंखला को खुद में तो सहेजे हुए लेकिन उन्हें सहेजने के लिए कोई खास प्रयास पर्यटन की दृष्टि से नहीं हो रहा है। राजदरी, देवदरी, मुक्खाफाल, लखनिया दरी, विंढमगंज, चूना दरी व सिद्धनाथ दरी ऐसी मनोरम जगहें हैं जहां पिकनिक मनाने आसपास के जिलों से लोग तो पहुंच जाते हैं लेकिन देश के अन्य क्षेत्रों से गाहे-बगाहे कोई पर्यटक पहुंचता है। उक्त तीनों जिलों में नौगढ़, विजयगढ़ व चुनार आदि किले भी हैं। चुनार के किले को कुछ हद तक सहेजने और पर्यटन से जोडऩे का काम हुआ लेकिन नौगढ़ व विजय गढ़ तो उपेक्षा के शिकार होकर खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। इन जिलों में कई गुफाएं और भित्ति चित्र भी मौजूद हैं लेकिन पर्यटन से कोसो दूर उन्हें रखा गया है। 

पर्यटन  को पंख का इंतजार

-बनारस में सलाना करीब 60 लाख पर्यटक आते हैं। 

-इस वर्ष जनवरी व फरवरी में 7.31 लाख देसी व 80 हजार विदेशी सैलानी आ चुके हैं। 

-जनवरी में रिकार्ड 22172 विदेशी सैलानी आए बनारस एयरपोर्ट, जनवरी 2018 में यह संख्या थी 12797

-आजमगढ़ में अवंतिकापुरी रानी की सराय, यहीं से हुई थी नागों की उत्पत्ति

-बलिया के जेपी नगर में मौजूद है जयप्रकाश नारायण पैतृक घर व स्मारक, अब यहां कोई सैलानी नहीं पहुंचता है। 

बनारस में ही 5000 कमरों की कमी : बनारस में सालाना 60 लाख सैलानियों का आगमन होना पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं को बौना साबित कर रहा है। होटल कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस तरह से सैलानियों की भीड़ उमडऩे लगी है शहर में करीब 5000 कमरों की कमी है। लो बजट होटलों के साथ ही तारांकित होटलों की कमी भी अखरने लगी है। खासकर दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तो धर्मशालाओं व सस्ते होटलों की अधिक आवश्यकता है।

पर्यटन पुलिस फाइलों में : ताज नगरी आगरा में पर्यटन का थाना स्थापित हो चुका है लेकिन बनारस में पर्यटन पुलिस अभी फाइलों से बाहर नहीं निकल सकी है। पर्यटन पुलिस के अभाव में सैलानियों के साथ होने वाली घटनाओं को लेकर सिविल पुलिस का रवैया ठीक नहीं होता है। पर्यटन पुलिस न होने से पर्यटकों को भी असहजता होती है। 

टूरिस्ट गाइड की कमी : बनारस ऐसा शहर है जहां दुनिया के सभी देशों से सैलानी आते हैं। टूरिस्ट गाइडों की कमी भी यहां एक बड़ी समस्या है। खासकर गाइडों द्वारा आरोप लगाए जाते हैं पर्यटन विभाग उनके लाइसेंस में अड़ंगे लगाता है और कई गाइडों को नियम की आड़ लेकर अवैध घोषित कर दिया जाता है। 

बोले होटल पद‍ाधिकारी : पिछले पांच वर्ष में बनारस का टूरिज्म काफी बढ़ा है। होटलों की कमी है। करीब 5000 कमरों की कमी महसूस की जा रही है। सीजन में काफी दिक्कत होती है।-गोकुल शर्मा, महामंत्री-बनारस होटल एसोसिएशन।

वाराणसी में पर्यटन की संभावनाएं : आधुनिक वाराणसी की भौगोलिक पहचान पक्के घाटों से रेखांकित असि-गंगा के संगम से वरुणा-गंगा के संगम तक का चंद्राकार सघन आवासीय क्षेत्र से है। ङ्क्षहदू, जैन व बौद्धों की पवित्र नगरी वाराणसी अपनी प्राचीनता व निरंतरता के लिए जानी जाती है। बौद्ध परंपराओं व जातक कथाओं में काशी व उसकी नगरीय राजधानी वाराणसी को एक-दूसरे का पर्याय बताया गया है। काशी को मुक्ति क्षेत्र भी कहा गया। माना जाता है कि भारशिवों ने यहां लगभग सत्रह सौ वर्ष पूर्व यज्ञ व शैव धार्मिक अनुष्ठान कर कई तीर्थों की स्थापना की। गाहड़वाल शासनकाल में यहां विभिन्न घाटों, कूपों, बगीचों, कुंजों, कुंडों का विकास हुआ।

विश्व की इस प्राचीन नगरी में धार्मिक व शास्त्रीय ज्ञान की निर्बाध परंपराओं का उद्भव व विकास देखा जा सकता है। कई प्रसिद्ध भारतीय चिंतक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ की यह जन्मस्थली है। चार जैन तीर्थंकरों सुपाश्र्वनाथ, चंद्रप्रभ नाथ, श्रेयांस नाथ व पाश्र्व नाथ के साथ-साथ संत कबीरदास, तुलसीदास, रविदास व मुंशी प्रेमचंद यहां जन्मे। बुद्ध ने यहीं प्रथम उपदेश दिया व यहीं बौद्ध संघ की स्थापना हुई। तुलसीदास ने यहीं रामचरित मानस की रचना की। भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध 'बनारस घराना' के लिए यह नगरी विशेष रूप से जानी जाती है। वाराणसी की मूर्त व अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए यहां पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं और यदि निकटवर्ती अन्य पर्यटक स्थलों को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो यह स्थल वर्ष भर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रह सकता है।

पर्यटन की सकल घरेलू उत्पाद में महती भूमिका है। विदेशी विनिमय आय की दृष्टि से यह तृतीय स्थान रखता है। पर्यटन विकास गरीबी निवारण में भी विशेष कारगर साबित हो सकता है। विगत वर्षों में वाराणसी की पर्यटन क्षमता को देखते हुए भारत व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं लागू की गईं। साथ ही आधारभूत संरचना जैसे कि सड़क, रेलवे व हवाई मार्ग को भी दुरुस्त व विकसित किया गया। स्वदेश दर्शन योजना द्वारा जहां बौद्ध पर्यटक स्थल सारनाथ का समग्र विकास किया जा रहा है वहीं हृदय योजना अंतर्गत नगर के विरासत क्षेत्रों के विकास, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, कुंडों, दीवारों आदि के सुधार पर कार्य हुए व जारी हैं।

यूनेस्को सूची में आने से वाराणसी की ओर संगीत प्रेमियों व पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकेगा। बनारस घराने की शैली विशेषकर होरी, चैती, टप्पा, दादरा को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है। 22 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीनदयाल हस्तकला संकुल को देश को समर्पित किया। काशी विश्वनाथ मंदिर कारिडोर निर्माण का शिलान्यास हाल ही में प्रधानमंत्री ने 8 मार्च को किया। पर्यटन की दृष्टि से इसकी महत्ता इसलिए भी है कि जहां एक ओर श्रद्धालुओं को मणिकर्णिका व ललिता घाट से मंदिर तक 25 हजार वर्ग मीटर में फैले 40-40 फीट के दो कारिडोर होते हुए आवागमन की सुविधा होगी वहीं दूसरी ओर इससे घाटों का विकास भी संभावित है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व 1780 में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर व आसपास क्षेत्र का पुनरुद्धार कराया था, जबकि 1853 में सिख नरेश रंजीत सिंह ने स्वर्ण चादर मंदिर को भेंट की थी। -प्रो. अतुल त्रिपाठी, कला-इतिहास विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय।


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