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यूपी चुनाव 2017: मुद्दों के साथ दरकते रहे जातियों के समीकरण

सहारनपुर जिला बसपा का गढ़ माना जाता है। राममंदिर आंदोलन के चलते वर्ष 1993 में चुनाव में सात में से पांच सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया। वर्ष 1996 में दलित वोट बसपा के झंडे तले आ गया।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 02:39 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 03:48 PM (IST)
यूपी चुनाव 2017: मुद्दों के साथ दरकते रहे जातियों के समीकरण
यूपी चुनाव 2017: मुद्दों के साथ दरकते रहे जातियों के समीकरण

चुनाव डेस्क, मेरठ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहेे हैं, जिसके लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। कहते हैं कि सियासत का कोई मुकम्मल किरदार नहीं होता, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटर भी सियासी दुनियादारों की तर्ज पर अपना चाल-चरित्र बदलते रहे हैं। इतिहास गवाह है कि पश्चिम में जातियों की गोलबंदी के चलते खासकर कांग्रेस और लोकदल जैसे राजनैतिक दल लंबे अरसे तक दंभ भरते रहे, लेकिन बीते तीन दशक में वोटरों ने विषय और मुद्दों को लेकर पार्टियों के प्रति अपनी निष्ठाओं को कई बार तोड़ा भी।

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नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन में लोकदल का परंपरागत वोटर जाट समेत दीगर जातियां भाजपा के पक्ष में आ खड़ी हुई, जबकि मुस्लिम वर्ग ने मुलायम पर भरोसा जताया। इस दौरान कांग्रेस के पंजे से ब्राह्मण वोटर छिटककर भाजपाई बना। इसके बाद दलित वोटरों पर मायावती का जादू चला। 2014 के लोकसभा चुनाव में ज्यादातर गैरमुस्लिम मोदीमय हो गए। इससे इतर स्थानीय मुद्दों से भी प्रभावित होकर जातियां अपना मिजाज बदलती रही हैं। इस बार भी जातियों की गोलबंदी किसी एक पार्टी में पक्ष नहीं होने से पश्चिम का सियासी सीन साफ नजर नहीं आ रहा है।

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाति-बिरादरी और धर्म को लेकर सियासत पूरे उफान पर है। सियासी दलों ने जातीय समीकरण पर फोकस करते हुए प्रत्याशियों का ऐलान किया है। बात मेरठ से शुरू करते हैं। मेरठ की सभी सीटों पर मुस्लिम व गैर मुस्लिम मतों में बिखराव तकरीबन तय है। इस बार विधानसभा चुनाव में शहर विधानसभा पर बसपा ने पंकज जोली के रूप में पंजाबी चेहरा उतारकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जबकि पिछली बार बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेला था। सपा के रफीक अंसारी भाजपा से महज साढ़े छह हजार वोटों से हारे थे।

मेरठ दक्षिण में मुस्लिम वोटों के बिखराव से भाजपा को बिना कसरत नई सीट हासिल हो गई थी। इस बार सिवालखास में जाट वोटों का बंटना सपा के गुलाम मोहम्मद के लिए फायदेमंद हो सकता है। किठौर में मुस्लिम मतों पर सपा एवं रालोद के बीच घमासान है, जबकि बसपा गुर्जर कार्ड खेल चुकी है। हस्तिनापुर में दलित वोटों में बंटवारे से रालोद का गुर्जर कार्ड चल सकता है। सरधना में मुस्लिम वोटों पर सपा, बसपा एवं रालोद की तिकड़ी एक साथ दावा कर रही, जिसके बीच भाजपा ठाकुर एवं ओबीसी वोटों के दम पर जीत की राह देख रही है। कैंट पर जाट, बनिया एवं दलित वोटों में हल्के स्विंग से भी चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं।

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बुलंदशहर में लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ खड़ी कई जातियों का वोट विधानसभा चुनाव में तितर-बितर होता नजर आ रहा है। शिकारपुर सीट पर भाजपा, बसपा व सपा तीनों दलों से ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में होने से मतों में बिखराव तय है। सदर सीट पर भाजपा के पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह सिरोही व रालोद के गुड्डू पंडित के बीच गैरमुस्लिम मतों का बिखराव लगभग तय माना जा रहा है। सिकंदराबाद विधानसभा सीट पर दो यादव प्रत्याशी होने से यादव मतों में बिखराव की आशंका है। इसी सीट पर लालू यादव के दामाद व सपा एमएलसी जितेंद्र यादव के पुत्र राहुल यादव सपा से प्रत्याशी हैं।

बागपत में विधानसभा चुनाव में भी बागपत के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में जाट वोटों का बिखराव होने की संभावना है। दरअसल, यहां की तीनों सीटों पर बसपा के दो प्रत्याशियों व रालोद के एक प्रत्याशी को छोड़कर अन्य पार्टियों के सभी प्रत्याशी जाट बिरादरी से हैं। बागपत विधानसभा सीट से भाजपा व सपा के प्रत्याशी जाट हैं। बड़ौत विधानसभा सीट पर बसपा से ब्राह्मण बिरादरी के प्रत्याशी हैं, जबकि भाजपा, रालोद व सपा के प्रत्याशी जाट बिरादरी से हैं। छपरौली सीट पर चारों पार्टियों के प्रत्याशी जाट बिरादरी से हैं।

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शामली, थानाभवन व कैराना सीटों पर जातिगत आधार पर वोटों का बिखराव होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है। कैराना में भाजपा से सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह प्रत्याशी हैं। आरएलडी से हुकुम सिंह के पारिवारिक भतीजे अनिल चौहान प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। यहां भी जाट, गुर्जर व मुस्लिम मतों में बिखराव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

मुजफ्फरनगर में मौजूदा विधानसभा चुनाव में मतों के बिखराव की आशंका है। खतौली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा व बसपा ने सैनी समाज से तो सपा ने गुर्जर समाज का प्रत्याशी मैदान में उतारा है। सैनी समाज के मतों के बिखराव की आशंका है।

सदर सीट पर भाजपा, सपा व रालोद ने वैश्य समाज के उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। करीब 80 हजार वैश्य मतों में बिखराव की संभावना है। चरथावल सीट पर रालोद व बसपा ने मुस्लिम, सपा ने जाट व भाजपा ने कश्यप बिरादरी के उम्मीदवार को टिकट दिया है। दो मुस्लिम प्रत्याशी होने पर मुस्लिम मतों में बिखराव की उम्मीद है। मीरापुर सीट पर बसपा व सपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के बीच मत बंटने की संभावना है। भाजपा ने गुर्जर व रालोद ने पाल समाज के उम्मीदवार को टिकट दिया है। पुरकाजी सीट पर सपा व रालोद उम्मीदवार के बीच मुस्लिम मतों में बिखराव से इंकार नहीं किया जा सकता।

बिजनौर में जिले की आठों विधान सभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं। सभी सीटों पर मुस्लिमों के बाद दूसरे नंबर पर दलित वोट हैं। जनपद की सभी सीटों पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। मुस्लिम मतों में सपा व बसपा के बीच बिखराव की आशंका है। चांदपुर सीट पर भाजपा ने सैनी बिरादरी की कमलेश सैनी को टिकट दिया है तो जाट का बड़ा धड़ा भाजपा के खिलाफ खड़ा दिखाई दे रहा है। बिजनौर में भी टिकट वितरण को लेकर जाटों का एक धड़ा बगावत की राह पर है।

कल्याण ने बिगाड़ा था भाजपा का खेल

बुलंदशहर में वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने जनक्रांति पार्टी के बैनर तले ताल ठोंकी थी। जिले की लोध मतों में बड़ी संख्या वाली चार सीटों स्याना, डिबाई, अनूपशहर और बुलंदशहर से भाजपा प्रत्याशियों की हार का बड़ा कारण उनके उम्मीदवारों को माना गया।

शामली में खेला जाता रहा जात-पात का खेल

शामली में एक दो अपवाद को छोड़कर वोटरों ने अपनी जाति के प्रत्याशियों पर भरोसा जताने में कसर नहीं छोड़ी। बीते विधानसभा चुनाव में प्रदेश में वजूद के लिए तरसती कांग्रेस की झोली में जाटों ने शामली सीट डाल दी थी। कांग्रेस के पंकज मलिक को जाटों के साथ ही मुस्लिमों ने भी समर्थन दिया था।

सहारनपुर में बहुजन समाज पार्टी का रहा बोलबाला

सहारनपुर जिला बसपा का गढ़ माना जाता है। राममंदिर आंदोलन के चलते वर्ष 1993 में चुनाव में सात में से पांच सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया। वर्ष 1996 में दलित वोट बसपा के झंडे तले आ गया। वर्ष 2002 में बसपा को चार सीट, कांग्रेस, जद व सपा को एक-एक सीट मिली। वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा को पांच, भाजपा व निर्दलीय एक-एक सीट मिली। वर्ष 2012 में सहारनपुर में सपा को मात्र एक सीट मिली, जबकि बसपा को चार, कांग्रेस व भाजपा को एक-एक सीट मिली।


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