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UP election: जसवंतनगर में नई सियासी इबारत लिखने वाला चुनाव

जसवंतनगर विधानसभा सीट पर शिवपाल यादव पांचवी बार मैदान में हैं। यह चुनाव उनके लिए नई सियासी इबारत लिखने वाला है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 12 Feb 2017 06:37 PM (IST)Updated: Sun, 12 Feb 2017 11:27 PM (IST)
UP election: जसवंतनगर में नई सियासी इबारत लिखने वाला चुनाव
UP election: जसवंतनगर में नई सियासी इबारत लिखने वाला चुनाव

लखनऊ (जेएनएन)। जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र मुलायम सिंह से विरासत में मिला शिवपाल यादव का क्षेत्र है। यादव बहुल इस क्षेत्र में हार जीत की चर्चा के बजाय जीत के अंतर पर बात करते लोग नजर आते हैं। इस सीट पर शिवपाल यादव पांचवी बार मैदान में हैं। यह चुनाव उनके लिए नई सियासी इबारत लिखने वाला है। वह यहां रिकार्ड मतों से जीतते रहे हैं। पौने चार लाख मतदाता वाली इस सीट पर डेढ़ लाख सिर्फ यादव है।

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शिवपाल यादव की चुनौती बढ़ी

समाजवादी कुनबे के अंदर से भितरघातियों को शह मिलने से इस बार शिवपाल यादव की चुनौती बढ़ी है। भाई शिवपाल उनके लिए क्या मायने रखता है, यह दो दिन पहले खुद मुलायम सिंह यादव आकर लोगों के बीच यह संदेश दे चुके हैं। दरअसल, इलाके के लोगों से मुलायम के भावनात्मक रिश्ते हैं जो हर मौके पर नजर भी आते हैं। भितरघात के चलते शिवपाल को सैफई में पूर्व की तरह वोटो की बारिश होने की उम्मीद कम है। भितरघात की जड़ें बसरेहर तहसील तक फैली दिखती है। शिवपाल समर्थक इस बार जीत एक लाख वोटो से ज्यादा की होने का दम भर रहे हैं। इसके पीछे पारिवारिक घटनाक्रम के बाद शिवपाल यादव के प्रति उपजी सहानुभूति और विकास कार्यों को माना जा रहा है। मगर ढेरों लोग सपा का भविष्य अखिलेश यादव में देख रहे है। परिवार के अंदर के जो लोग शिवपाल यादव से सियासी अदावत रखते है, उनके इशारे पर ऐसे ही नागरिकों को विद्रोही बनाने का दांव भी आजमाया जा रहा है।

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जीत के अंतर में गिरावट का खतरा

यह एक व्यावहारिक पहलू है कि सैफई और बसरेहर में घर कर चुके भितरघात को 19 फरवरी के पहले ही न समेटा गया तो जीत के अंतर में गिरावट देखने को मिलेगी। वैसे इटावा में मुलायम के कुनबे को कोई यादव टक्कर दे सकता है। यह मिथक बन चुका है भाजपा ने इस बार मनीष यादव को चुनावी मैदान में उतारा है जो कभी सपा के थिंकटैंक कहे जाने वाले नेता के करीबी रहे है। बसपा प्रत्याशी दुर्वेश शाक्य की ओर ज्यादा बढ़ी चुनौती नहीं है, क्योंकि जातीय समीकरण उनका प्रभावी साध देते नजर नहीं आते है, हालांकि राजनीति में कुछ भी संभव है। ऐसे में जीत का अंतर काम होना शिवपाल के लिए किसी धक्के से कम नहीं होगा।

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भाई और लड़के को संभाल नहीं पाये

भरतिया चौराहा के पास मौजूद रामशरण यादव हमारे संवाददाता के पूछने पर कहते है कि नेताजी ने क्षेत्र में बहुत काम कराया है, दूसरा कौन इतना करायेगा। मगर वह क्षेत्रीय भाषा में यह भी कहते है कि द्ददा (मुलायम सिंह यादव) अपने भाई और लड़के को संभाल नहीं पाये। अब कोई भैया के साथ है तो चाचा के साथ है। वहीं मौजूद युवा राकेश यादव कहते हैं कि घर की लड़ाई है, मगर असर तो हम सब पर भी है। कैसे? वह पलटकर सवाल करता है कि अब चाचा को इतना विकास कौन कराने देगा? लेकिन हम चाचा को नहीं छोड़ सकते है। ताखा मोड़ पर रामहेत शाक्य, लखन यादव कहते है कि नेताजी के परिवार ने लड़कर मुश्किल पूरे इटावा की बढ़ा दी है। एक साथ जाओ तो शाम को फोन आ जाता कि उसके साथ घूम रहे हो? ऐसे में हम सब क्या करें।

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समाजवादी पार्टी का अधिकार भले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथ में चला गया है मगर इटावा की राजनीतिक विरासत का मसला अभी शेष है। इटावा के लोग बखूबी जानते हैं कि नेता जी कहाँ हैं, शिवपाल का चुनावी द्वन्द्व असल में किससे है। मगर है कि इस बार जसवंतनगर की फिजा में मुलायम सिंह यादव के ट्रबल शूटर के सामने अपनों की ओर से ही ट्रबल खड़ा किया जा रहा है।


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