उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: नारे जो करते रहे पार्टियों के वारे-न्यारे
विकास की आंधी, मेनका गांधी नारे ने 90 के दशक में दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मेनका गांधी को संसद पहुंचाने में मदद की। 89 के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह के लिए गढ़ा गया नारा 'राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है', तराई में भी खूब गूंजा।
जागरण संवाददाता, पीलीभीत। गन्ना के हैं तीन दलाल..., यह पीलीभीत का ऐसा नारा रहा, जिसने दो विधानसभा क्षेत्र के चुनावों के लिए मुसीबत बन गया था। नारे में नामजद एक प्रत्याशी बरखेड़ा तो दूसरे शहर सीट से चुनाव लड़ रहे थे। खा गए शक्कर पी गए तेल, यह देखो.. का खेल, नारा भी कई विधायकों के लिए मुसीबत बनता रहा। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जहां राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर गढ़े गए नारे हवा का रुख बदलने के कामयाब हथियार रहे, वहीं स्थानीय स्तर पर भी नारे से लेकर देसज भाषा में गाए जाने वाले लोकगीतों ने भी खूब कमाल दिखाया।
बात जनसंघ के जमाने की है, उस वक्त कांग्रेस खेमे से नारा लगता था 'दीये में तेरे तेल नहीं, कांग्रेस को हराना खेल नहीं'। जनसंघ की ओर से जबाब भी उसी भाषा में आता था, गली गली में शोर है, इंदिरा गांधी.. है। पूरनपुर के चुनाव में हरी बाबू आए हैं, नई रोशनी लाए हैं, नारे ने कई बार हार के बाद हरी बाबू को कामयाबी दिला दी थी।
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विकास की आंधी, मेनका गांधी नारे ने 90 के दशक में दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मेनका गांधी को संसद पहुंचाने में मदद की। 89 के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह के लिए गढ़ा गया नारा 'राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है', तराई में भी खूब गूंजा। भाजपा गठन के बाद जहां अंधियारे में एक चिंगारी, अटल बिहारी-अटल बिहारी नारा पार्टीजनों के बीच खूब लोकप्रिय हुआ। वहीं राम मंदिर आंदोलन के दौरान 90 के दशक की शुरुआत में बंदऊ लाल कृष्ण अडवाणी, राष्ट्र जगावत जाकर वाणी..भी लोगों के जुबां तक आया।
इसी नारे का असर रहा कि यहां 1991 के आम चुनाव में लोकसभा से लेकर विधानसभा की चारों सीटों तक भाजपा का परचम फहरा गया। यह कुछ ऐसे नारे रहे जो आज भी चुनावी दुंदुभि बजते ही लोगों की जुबां पर आने लगते हैं।
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