Loksabha Election 2019 : कभी यूपी में पूर्वांचल राज्य भी हुआ करता था सियासी मुद्दा
याद करिए आपको अच्छे से याद होगा कि इस चुनावी रण के ठीक पहले तक के चुनावों में अक्सर ही छोटे राज्यों की मांग के क्रम में पूर्वांचल राज्य की चाह को लेकर आवाज बुलंद की जाती थी।
वाराणसी [अशोक सिंह]। याद करिए, आपको अच्छे से याद होगा कि इस चुनावी रण के ठीक पहले तक के चुनावों में अक्सर ही छोटे राज्यों की मांग के क्रम में पूर्वांचल राज्य की चाह को लेकर आवाज बुलंद की जाती थी। चुनाव के ठीक पहले तो यह बयार कुछ अधिक ही तेज हो जाती थी। इसी मांग को आधार बनाकर कुछ दल आकार पा गए तो चुनाव में ताल ठोंककर अपरिचित चेहरे भी जनता के दुलारे बन गए। लेकिन, अलग पूर्वांचल राज्य को लेकर लंबे समय से आंदोलन ही देखने को नहीं मिला। अब जबकि चुनाव रफ्तार पकड़ चुका है, कुछ के घोषणा पत्र भी आ चुके हैं फिर भी अब तक कहीं से पूर्वांचल की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही है। ढेरों राष्ट्रीय मुद्दों के बीच में आखिर पूर्वांचल राज्य का मुद्दा किन वजहों से खो गया।
पूर्वांचल राज्य की मांग का मुद्दा काफी पुराना है। इसके बावजूद यह उत्तराखंड व अन्य राज्यों के बनने के पूर्व हुए आंदोलन जैसा रूप नहीं ले सका। गाहे-बगाहे यहां की समस्याओं को लेकर कुछ नेताओं द्वारा इसे मुद्दा बनाया जाता रहा है। 1962 में गाजीपुर से सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में यहां के लोगों की समस्या और गरीबी को उठाया तो प्रधानमंत्री नेहरू को रुलाई आ गई। इसी के बाद इस मुद्दे पर बात शुरू हुई। इसमें अलग राज्य के लिए कारण गिनाए जाते थे बिजली, सड़क, रोजगार व गरीबी के कारण पलायन आदि। पूर्वांचल राज्य व इसे बनाने के आधार को लेकर निरंतर सभाएं व गोष्ठियां नहीं हुईं। इसकी मांग ने कभी भी वृहद स्तर पर बड़े आंदोलन का रूप नहीं लिया। यह जरूर है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव के पूर्व कुछ लोग और संगठन पूर्वांचल की आवाज बुलंद करते रहे। इस मुद्दे पर नजर रखने वाले बताते हैं कि पांच वर्ष पूर्व केंद्र में भाजपा और दो वर्ष पूर्व प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद से पूर्वांचल की मांग का आधार बनने वाले मुद्दों व समस्याओं पर कुछ काम हुए, इसके बाद से पूर्वांचल राज्य की लौ और मंद होती गई।
प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा पूर्वांचल बोर्ड का गठन |
गत दो वर्ष से बिजली की उपलब्धता में सुधार |
फोरलेन सड़कों के निर्माण से खुले विकास के द्वार |
शिक्षण संस्थानों, मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में वृद्धि |
गोरखपुर खाद कारखाना व चीनी मिलें चालू कराने का प्रयास |
वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के माध्यम से रोजगार व विकास का खाका |
पर्यटन की संभावना वाले स्थलों के विकास का प्रयास |
प्रदेश के बड़े राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन नहीं |
केवल चुनावों के समय उठने की वजह से जनता साथ नहीं |
बड़े समाजवादी नेताओं का आंदोलनों से दूर होना |
समाजवादी विचारधारा के लोगों ने बनाया था मुद्दा : डा. लोहिया कहते थे कि सुधरो या टूटो। आज जब उत्तर प्रदेश सुधर नहीं पाया है इसलिए लगता है कुछ नया करने का वक्त आ गया है। यूपी का पुनर्गठन करो। साथ ही कुछ लोगों का मानना है कि छोटे राज्य में तेजी से विकास होता है, वे इसकी धूरी बनते हैं। इसी सोच के साथ वर्ष 1995 में समाजवादी विचारधारा के लोग गोरखपुर में इकट्ठा हुए और पूर्वांचल राज्य बनाओ मंच का गठन किया। इसमें प्रभु नारायण सिंह, हरिकेवल प्रसाद, श्यामधर मिश्र, शतरूद्र प्रकाश, मधुकर दिघे, मोहन सिंह, रामधारी शास्त्री और राजबली तिवारी आदि विशेष रूप से शामिल रहे। कल्पनाथ राय व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे को उठाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह व एचडी देवगौड़ा के समर्थन के बाद मांग को कुछ बल मिला था। लालू यादव ने सारनाथ में पूर्वांचल राज्य का मुख्यालय बनारस में बनाने की बात कही थी, लेकिन गोरखपुर में भी मुख्यालय बनाने की बात कहकर बयान की गंभीरता खत्म कर दी।
जनपद स्तर पर भी उठती रही आवाज : लोकमंच पार्टी के बैनर तले गाजीपुर में अमर सिंह ने 2012 में पूरे जिले में भ्रमण करने के साथ ही जनसभा की। उनका यही कहना था कि पूर्वांचल का विकास तभी हो सकता है जब अलग राज्य बने। जनतादल यूनाइटेड पूर्वांचल की मांग को लेकर जिले में आंदोलन करती रही है, लेकिन वह भी सिर्फ सुर्खियों में रहने तक सीमित रहा।
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने मई 2018 में आजमगढ़ कलेक्ट्रेट के समक्ष आयोजित सम्मेलन में इसकी मांग दोहराई थी। जौनपुर के सामाजिक संगठन पूर्वांचल विकास आंदोलन के संयोजक प्रवीण सिंह और पूर्वांचल राज्य गठन मोर्चा संयोजक राजकुमार ओझा अभी प्रयासरत हैं। 1999 को मडिय़ाहूं में आंदोलन किया गया। इसमें पुलिस के लाठीचार्ज करने के साथ आंदोलनकारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया।
पूर्वांचल क्रांति दल भदोही से इसकी मांग उठाता रहा है। दल अध्यक्ष रामसखा त्रिपाठी मानते हैं कि यह अभी भी मुद्दा है। सोनांचल से चुनावी बयार में आवाज उठती रही है। यहां सामाजिक न्याय मोर्चा, पूर्वांचल नव निर्माण मंच और पूर्वांचल राज्य जनमोर्चा इसके प्रमुख हिमायती संगठन हैं। मोर्चा के सचिव फतेह मुहम्मद कहते हैं कि क्षेत्र का विकास ठीक से तभी होगा जब पूर्वांचल अलग राज्य होगा। वहीं मीरजापुर से भी पूर्वांचल राज्य की आवाज अमिताभ पांडेय के नेतृत्व में गाहे-बगाहे उठती रही है।
मायावती ने 2007 में फेंका था पासा : मायावती ने 2007 में उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटकर पूर्वांचल, बुंदेलखंड व हरित प्रदेश के गठन का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार चाहे तो इनका गठन हो सकता है। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस नए राज्यों के गठन के मुद्दे की पड़ताल कर रही थी जिसे मायावती ने भांप कर पासा फेंक दिया। समाजवादी पार्टी सूबे के बंटवारे के पक्ष में कभी नहीं रही।
फाइलों में दबी पटेल आयोग की रिपोर्ट : भारतीय जनता पार्टी छोटे राज्य की समर्थक तो रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पर चर्चा नहीं कर रही है। वैसे मोदी ने 2016 में पूर्वांचल की एक सभा में विश्वनाथ प्रसाद गहमरी का उल्लेख करते हुए कहा था कि पटेल आयोग की रिपोर्ट लागू की जाएगी। उल्लेखनीय है कि नेहरू के सामने गहमरी द्वारा मुद्दा उठाने के बाद पटेल आयोग का गठन किया गया था, लेकिन उसकी संस्तुतियां फाइलों में आज भी दबी हैं।
क्षेत्रफल | 85844 वर्ग किलोमीटर |
जिलों की संख्या | 27 |
विधानसभा क्षेत्र | 162 |
लोकसभा क्षेत्र | 32 |
जनसंख्या | लगभग 12 करोड़ |
शामिल प्रमुख जिले : इलाहाबाद (प्रयागराज), मऊ, कौशांबी, बलिया, आजमगढ़, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, संतकबीर नगर, प्रतापगढ़, सोनभद्र, मीरजापुर, वाराणसी, चंदौली, फैजाबाद (अयोध्या), अंबेडकर नगर, गोरखपुर और भदोही।
उत्तर प्रदेश का बंटवारा क्यों : उत्पादक होने के बावजूद बिजली की अनुपलब्धता, गोरखपुर खाद कारखाना बंद होना, कई चीनी मिलों की बंदी, बेरोजगारी से बड़े पैमाने पर पलायन, बाढ़ और सूखे से परेशानी, पर्यटन स्थलों का विकास न होना, आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे, मऊ, खलीलाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़ का हैंडलूम उद्योग बदहाल, 1990 में क्षेत्रीय विकास निधि का गठन मात्र दिखावा।