उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 : रूहेलखंड में हाथ मलती ही रह गई कांग्रेस
कांग्रेस ने रुहेलखंड में उसके पूर्व के रिकार्ड को मजबूत टक्कर दी। बरेली में पांच, पीलीभीत में चार, शाहजहांपुर में तीन, बदायूं में सात सीटें जीत लीं।
अंकित, बरेली। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दंभ, वर्षो तक दमदार प्रदर्शन और एक से बढ़कर एक लीडर..। कुछ शब्दों में कहें तो सियासत में कांग्रेस का रुतबा साफ हो जाता है। सिर्फ देश में ही नहीं, रुहेलखंड में भी। वक्त वो था, जब रुहेलखंड में सारी की सारी सीटें ‘हाथ’ के कब्जे में रहा करती थीं, लेकिन, 1975 में इमरजेंसी क्या लगी, पूरा इलाका ही जैसे ‘हाथ’ से निकल गया।
अर्से तक दूसरों का सफाया करने वाली कांग्रेस 90 का दशक आते-आते खुद पूरी तरह साफ हो गई। वजह तमाम थीं, मगर अहम सपा, बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ तो जनसंघ की मजबूत जड़ें। हां, नब्बे की दशक में बतौर मिसाल एक दो पुराने चेहरे नए बनते-बिगड़ते समीकरणों के बावजूद कांग्रेस का झंडा बुलंद किए रहे। वक्त जब शताब्दी बदलने का आया तो जैसे पार्टी के ताबूत में आखिरी कील ही ठुक गई। वर्ष था-2002। तब मात्र वीरेंद्र सिंह तिलहर से पार्टी के इकलौते विधायक बन पाए। वो दिन और आज का दिन। दमदार वापसी तो दूर, कांग्रेस रुहेलखंड में खाता खोलने तक की बाट जोह रही है।
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हालिया चुनाव में भी उसकी हालत किसी से छिपी नहीं है। जिस दल की कभी देश में तूती बोलती थी, वह सपा के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने को मजबूर है। रुहेलखंड में उसका हिस्सा क्या होगा, सीटों का बंटवारा तय करेगा। अलबत्ता, क्षेत्र में कांग्रेस के सियासी सरताज बनने से लेकर, रसातल में जाने तक के सफर पर एक नजर..।
कंग्रेस का रुहेलखंड ‘रिपोर्ट कार्ड’ ‘थिंकटैंक’ को हमेशा हैरान करता रहा। सियासी गुणाभाग करने वाले भी सोचने को मजबूर रहे क्योंकि लोकसभा चुनाव में जहां पार्टी की पूरे देश में तूती बोलती रही, वह यहां आकर बार-बार खामोश हो जाती। 1952 लोकसभा की करें तो कांग्रेस की आंधी बरेली भी छाई और यहां से सतीश चंद्र लगातार दो बार जीते। हालांकि, 1962 और 67 के चुनाव में जनसंघ ने तगड़ा झटका देते हुए उन्हें करारी मात दी। अन्य जिलों में भी जनसंघ सीधे जीता तो नहीं, कांग्रेस पर हावी जरूर रहा। इसके ठीक उलट, छोटे चुनाव यानी विधान सभा में कांग्रेस का शुरुआती दौर में कोई सानी नहीं रहा।
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रुहेलखंड में सत्ता की शानदार ‘सरताज’ रही। 1951 के पहले विस चुनाव में कोई उसके सामने टिक नहीं पाया। बरेली की नौ में से नौ सीटें झोली में डालीं। पीलीभीत, बदायूं, शाहजहांपुर में भी विरोधियों का सूपड़ा साफ किया। तब की सोशलिस्ट और भारतीय जनसंघ जरूर एक-दो सीट जीते। 1957 से कांग्रेस को विरोधी दल तो नहीं, निर्दल जरूर परेशान करते दिखे। वो भी शाहजहांपुर और बदायूं, पीलीभीत जैसे जिलों में। बरेली में उसका शानदार प्रदर्शन जारी रहा। बरेली की सात सीटों में छह अपनी झोली में डालीं। 1962 में कांग्रेस ने फिर गियर डाला। बरेली दो सीटें जरूर गंवाई मगर अन्य जिलों से भरपाई कर ली।
और मिली टक्कर
कांग्रेस में दिग्गजों की कमी नहीं थी। शाहजहांपुर में प्रसाद परिवार, बरेली में चौबे खानदान समेत तमाम नेता जान थे। हालांकि, तीन विस पूरे होने के बाद कांग्रेस को कड़ी टक्कर रुहेलखंड में मिलने लगी। इसके पीछे वजह थी, रुहेलखंड में जनसंघ की बढ़ती ताकत। यह वक्त था, 1967 के चुनाव का। तब बरेली में भारतीय जनसंघ ने पहली बार कांग्रेस को हराकर पांच सीटों पर कब्जा जमाया। पीलीभीत, शाहजहांपुर, बदायूं में भी दमदार प्रदर्शन किया।
70 का मुश्किल दशक
170 का दशक भारतीय राजनीति ही नहीं, रुहेलखंड में कांग्रेस के दमदार प्रदर्शन की नीव खोदने वाला रहा। 1974 के चुनाव में ‘हाथ’ से वोटर इस हद तक निराश हुआ, बरेली में पार्टी का पहली बार सूपड़ा साफ हो गया। पीलीभीत में एक, शाहजहांपुर में एक, बदायूं में दो सीटों पर उसे संतोष करना पड़ा। हालांकि, इमरजेंसी के बाद 1977 में उसने दोबारा दमदार वापसी की और बरेली में नौ में से चार सीटें जीतीं। हां, अन्य जिलों में वैसा प्रदर्शन नहीं रहा, जैसी उम्मीद थी।
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भाजपा को मजबूत टक्कर
1980 में जनसंघ के बाद भाजपा अस्तित्व में आई। उसी साल चुनाव हुआ। तब कांग्रेस ने रुहेलखंड में उसके पूर्व के रिकार्ड को मजबूत टक्कर दी। बरेली में पांच, पीलीभीत में चार, शाहजहांपुर में तीन, बदायूं में सात सीटें जीत लीं। 1985 में यह सिलसिला कुछ हद तक जारी रहा लेकिन, नब्बे का दशक आते-आते कांग्रेस की सियासत के स्वर्णिम इतिहास का ‘सूर्यास्त’ रुहेलखंड में होने लगा। सारी की सारी सीटें जीतने वाली पार्टी 1989 के चुनाव में बरेली से साफ हो गई। शाहजहांपुर में दो, बदायूं में तीन सीटें जीतकर किसी तरह इज्जत बचाई। 1991 में यह प्रदर्शन और खराब हुआ। 1993 में महज शाहजहांपुर में प्रसाद परिवार के दम पर तीन सीटें जीत सके। 1996 में यहां दो पर सिमेट और फिर पूरी तरह साफ हो गए..।
वोटों का लगातार बिखराव बना मुसीबत
कांग्रेस के लचर प्रदर्शन पर सभी के तर्क हैं। कोई आरएसएस और जनसंघ का प्रभाव बताता है। कोई संगठन को कमजोर कड़ी मानता है, जो काफी हद तक ठीक भी है। इलाके में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा लगभग ध्वस्त हो चुका है। जो हैं, वे आपसी गुटबाजी में जूझ रहे हैं। बसपा, सपा जैसे दलों के उदय ने भी उसके आधार वोट (मुस्लिम व दलित) को ‘चट’ कर लिया, जो बार-बार हार की वजह बनीं।
मुख्यमंत्री भी दिए रुहेलखंड ने
रुहेलखंड के वोट ने कांग्रेस को बढ़ाने में खाद पानी ही नहीं दिया। एनडी तिवारी और गोविंद बल्लभ पंत जैसे मजबूत नेताओं को भी जमीन दी। वे यहां से जीकर मुख्यमंत्री तक बने।
यूं फिसलती गई
वर्ष 1951 | वर्ष 1989 | वर्ष 1991 | वर्ष 1993 | |||||||
बरेली | बरेली | बरेली | बरेली | |||||||
कुल सीटें | 8 | कुल सीटें | 9 | कुल सीटें | 9 | कुल सीटें | 9 | |||
सभी सीटें | कांग्रेस | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 2 | कांग्रेस | 0 | |||
पीलीभीत | पीलीभीत | पीलीभीत | पीलीभीत | |||||||
कुल सीटें | 4 | कुल सीटें | 4 | कुल सीटें | 4 | कुल सीटें | 4 | |||
प्राप्त सीटे | 2 | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | |||
बदायूं | शाहजहांपुर | शाहजहांपुर | शाहजहांपुर | |||||||
कुल सीटें | 8 | कुल सीटें | 6 | कुल सीटें | 6 | कुल सीटें | 6 | |||
कांग्रेस | 5 | कांग्रेस | 4 | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 3 | |||
शाहजहांपुर | बदायूं | बदायूं | बदायूं | |||||||
कुल सीटें | 6 | कुल सीटें | 8 | कुल सीटें | 8 | कुल सीटें | 8 | |||
कांग्रेस | 5 | कांग्रेस | 3 | कांग्रेस | 1 | कांग्रेस | 0 |
वर्ष 1996 | वर्ष 2002 | वर्ष 2007 | वर्ष 2012 | |||||||
बरेली | बरेली | बरेली | बरेली | |||||||
कुल सीटें | 9 | कुल सीटें | 9 | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | |||
कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | |||||||
पीलीभीत | पीलीभीत | |||||||||
पीलीभीत | पीलीभीत | कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | |||||
कुल सीटें | 4 | कुल सीटें | 4 | |||||||
कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 | शाहजहांपुर | शाहजहांपुर | |||||
कांग्रेस | 0 | कुल सीटें | 6 | |||||||
शाहजहांपुर | शाहजहांपुर | कांग्रेस | 0 | |||||||
कुल सीटें | 6 | कुल सीटें | 6 | बदायूं | ||||||
कांग्रेस | 3 | कांग्रेस | 1 | कांग्रेस | 0 | बदायूं | ||||
कांग्रेस | 0 | |||||||||
बदायूं | बदायूं | |||||||||
कुल सीटें | 8 | कुल सीटें | 8 | |||||||
कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 0 |
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