यूपी चुनावः सभी दलों की लगीं निगाहें, किधर जाएंगे बढ़े हुये वोटर
सत्ता की चाबी इस बार मतदान में बढ़े एक करोड़ से अधिक लोगों पर टिकी है? यह सवाल इसलिए अहम हो गया है क्योंकि ये मत जिधर जाएंगे, उधर का पलड़ा भारी नजर आने लगेगा।
लखनऊ [अमित मिश्र]। क्या सत्ता की चाबी इस बार मतदान में बढ़े एक करोड़ से अधिक लोगों पर टिकी है? यह सवाल इसलिए अहम हो गया है क्योंकि ये मत जिधर जाएंगे, उधर का पलड़ा भारी नजर आने लगेगा। वैसे सभी राजनीतिक दल इन मतों पर अपना दावा जता रहे हैं। क्योंकि उनके बड़े नेता भीड़ खींचने में सफल रहे हैं।
मुलायम सिंह यादव और प्रियंका गांधी जैसे कुछ स्टार प्रचारकों के सीमित चुनावी दौरों को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो इस बार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और सांसद-विधायक से लेकर पार्षदों तक ने गली-गली जाकर दरवाजे खटखटाए और नतीजे में पिछली बार के मुकाबले करीब एक करोड़ अधिक वोटरों को मतदान केंद्र तक बुला भी लाए। इन वोटरों से वोट कराने में कहीं पार्टी की नीति तो कहीं नेता की रैली काम आई, जबकि बहुत से ऐसे भी थे जो ध्रुवीकरण की धारा में बहते हुए वोट डाल आए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुए चुनाव के पहले चरण में 73 सीटों के लिए 2012 के चुनाव में जहां 61.03 फीसद वोट पड़े थे, वहीं इस बार यह आंकड़ा बढ़ कर 64.22 प्रतिशत पहुंच गया। दंगों और जाट आरक्षण की आग में जल चुके इस क्षेत्र में ध्रुवीकरण की आशंका पहले से थी और अब वोटों का बढ़ा प्रतिशत भी राजनीतिक पंडितों की इस आशंका को सच साबित कर रहा है। पश्चिम से अवध और बुंदेलखंड की यात्रा तय करते हुए चुनाव प्रक्रिया सातवें चरण में पूर्वांचल पहुंची तो यहां भी 40 सीटों पर 2012 के 57.92 फीसद के मुकाबले इस बार 60.03 प्रतिशत वोट मिले। सपा व भाजपा नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों और खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के रोड शो और आक्रामक भाषणों ने भी लोगों को पोलिंग बूथ तक लाने में महती भूमिका निभाई।
यह पहली बार था, जब किसी प्रधानमंत्री ने प्रदेश की सरकार बनाने के लिए इतना जोर लगाया। चुनाव का अनुभव रखने वाले और जनता की नब्ज टटोलने में माहिर विशेषज्ञों का भी मानना है कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की लगातार मौजूदगी ने भी चुनाव का पारा चढ़ाने का काम किया है। यह भी मानने वालों की कमी नहीं है कि सेक्युलर-कम्यूनल, जाति-धर्म, कब्रिस्तान-श्मशान, गाय-गधा और अपराधीकरण व भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से भी ज्यादा असर बड़े नेताओं के एक-दूसरे पर किए हमलों का हुआ है। चुनाव भर लोगों ने इन चुटकियों पर खूब मजा लिया और इससे जो भी निष्कर्ष निकाला, उसे गुपचुप जाकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को बता आए।