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पूर्वोत्तर में अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है कांग्रेस, भाजपा के धारदार प्रचार का भी असर

त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। एक तरफ भाजपा जहां हमलावर है वहीं कांग्रेस के प्रचार में धार नहीं नजर आ रही है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 14 Feb 2018 02:35 PM (IST)Updated: Wed, 14 Feb 2018 06:37 PM (IST)
पूर्वोत्तर में अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है कांग्रेस, भाजपा के धारदार प्रचार का भी असर
पूर्वोत्तर में अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है कांग्रेस, भाजपा के धारदार प्रचार का भी असर

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा में जहां मतदान 18 फरवरी को होना है, वहीं मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को उम्मीदवारी की किस्मत इवीएम में कैद हो जाएगी। इन तीनों राज्यों में के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। भाजपा तीन में से दो राज्यों में मुख्य मुकाबले में है। पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खिसकता जनाधार बीजेपी के लिए वरदान बनता दिख रहा है। भाजपा 'मोदी मैजिक' की रणनीति के तहत काम कर रही है। त्रिपुरा में मानिक सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए भाजपा जीतोड़ कोशिश कर रही है। अंतिम चरण में पहुंच चुके प्रचार को और धारदार बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को दो चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे।

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पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के उभार के बाद अब कांग्रेस पर संकट के बादल अब इन राज्यों में मंडरा रहे हैं। सियासत ने ऐसी करवट ली कि कांग्रेस के हाथ से असम और मणिपुर निकल गया। अब पार्टी मेघालय में अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए कवायद कर रही है। इसके अलावा नागालैंड में कांग्रेस की सियासी हालत बहुत ही खराब नजर आ रही है।मेघालय में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शुक्रवार को जोवाई और मल्की ग्राउंड पर जनसभा को संबोधित करेंगे। 

पूर्वोत्तर में भाजपा तेजी से पैर पसार रही है। मणिपुर, असम और अरुणाचल में सरकार बनाने के बाद पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भाजपा आक्रामक अंदाज में लोगों का दिल जुटने में लगी हुई है। इन इलाकों में आरएसएस का जमीनी स्तर पर काम भाजपा के लिए वरदान साबित हो रहा है।

 त्रिपुरा में भाजपा-माकपा में सीधी टक्कर


त्रिपुरा में इस बार की सियासी लड़ाई पूरी तरह माकपा और भाजपा के बीच है । त्रिपुरा में भी कांग्रेस के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दस सीटों और 36 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर थी । लेकिन कई बार विभाजन के बाद पार्टी का सियासी भविष्य खतरे में नजर आ रहा है। कांग्रेस से जीते 7 विधायक भाजपा में शामिल होकर इस बार कमल के फूल को खिलाने में जुटे हैं। भाजपा ने 2013 चुनावों के 2 फीसद वोट शेयर को बढ़ाकर 2014 में 6 फीसदी कर लिया था। त्रिपुरा भले ही छोटा राज्य है लेकिन भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। त्रिपुरा की जीत न सिर्फ चुनावी जीत होगी बल्कि यह वैचारिक जीत भी साबित होगी।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि त्रिपुरा में भाजपा अगली सरकार बनाएगी। यह भाजपा द्वारा शासित 20 वां राज्य बनेगा। शाह ने मतदाताओं को भरोसा दिया कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए सभी वादे पूरे किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मणिपुर और असम में पार्टी का न तो एक भी विधायक था और न ही मजबूत सांगठनिक आधार था। लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और भाजपा के कार्यक्रमों ने पार्टी को पूवरेत्तर के इन दो राज्यों में सत्ता दिलाई।’ उन्होंने कहा कि इसी तरह त्रिपुरा भी भाजपा की झोली में आएगा। वाम मोर्चा पिछले करीब 25 सालों से लगातार त्रिपुरा में सत्तारूढ़ है। इसके बाद भी घरों में पेयजल वितरण, स्वास्थ्य सेवाओं, ऊर्जा आपूर्ति, आधारभूत संरचना और निवेश आकर्षित करने में त्रिपुरा काफी पीछे है।

किसी राज्य के विकास के लिए 10 वर्ष और 25 वर्ष लंबा समय होता है। लेकिन त्रिपुरा पिछड़ा रहा। कई भाजपा शासित राज्य हैं जिन्होंने कम समय में ही ज्यादा विकास किया हैं।शाह ने कहा कि विकास तभी हो सकता है जब भाजपा यहां अगली सरकार बनाएगी। भाजपा अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि दुष्कर्म और छेड़खानी सहित महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में त्रिपुरा देश में सबसे आगे है। ऐसे अपराध हर रोज होते हैं।

जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर के राज्यों में सिक्किम और त्रिपुरा को छोड़कर सभी इलाकों में दबदबा रहा है। लेकिन विकास का रथ जिस रफ्तार से उन इलाकों में दौड़ सकता था वो नहीं हुआ। पूर्वोत्तर में 90 के दशक से पहले शून्य थी, न ही पार्टी उस दिशा में गंभीरता से सोचती थी। लेकिन 21 वीं सदी की शुरुआत के साथ ही पहली बार एनडीए सरकार कुथ खास मसौदों के साथ आगे बढ़ी और ये सफर सफर जमीन पर आकार भी लेने लगा। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद जिस तरह से पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ने की पहल हुई उसे भाजपा और आरएसएस ने जमीन पर फैलाने की कोशिश की। आरएसएस और भाजपा के दूसरे संगठन लगातार उन इलाकों में संदेश दे रहे हैं कि पहली बार कोई सरकार है जो आप के बारे में सोचती है। हम जो वादे करते हैं उसे पूरी करने की कोशिश भी करते हैं। जबकि इसके विपरीत कांग्रेस पुराने विचारों के साथ चुनावी मैदान में है, उनके पास कुछ कहने के लिए नया नहीं है जिसका असर चुनावी अभियान में दिखाई भी दे रहा है। 


नागालैंड में कांग्रेस की हालत पतली

नागालैंड में 15 साल पहले तक कांग्रेस सत्ता में थी। लेकिन 2003 के बाद से लगातार कांग्रेस के प्रदर्शन में गिरावट आई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की सभी 60 सीटों पर उम्मीदवार तक नहीं मिले। कांग्रेस राज्य की 23 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए लेकिन 19 उम्मीदवार ही अपनी किस्मत आजमां रहे हैं। कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों को समर्थन का ऐलान किया है। नागालैंड में भाजपा ने एनडीपीपी से के साथ गठबंधन किया है। 60 सीटों में से एनडीपीपी 40 और 20 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए एनपीएफ को समर्थन दिया है।

मेघालय से कांग्रेस को उम्मीद

पूर्वोत्तर में कांग्रेस की आखिरी उम्मीद मेघालय से है। कांग्रेस को अगर उम्मीदों के मुताबिक मेघालय से नतीजे नहीं आते हैं, तो पूर्वोत्तर में पार्टी सिर्फ मिजोरम तक सीमित हो जाएगी। जबकि मिजोरम में भी इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं।

कांग्रेस की चिंता इस बार किसी भी तरह मेघालय में सरकार को बचाने की है। लेकिन भाजपा यहां भी कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी कोशिश में है। 2013 में मेघालय विधानसभा चुनावों की 60 सीटों में से कांग्रेस को 29 सीटें मिलीं थीं, जिनमें से पांच विधायकों ने भाजपा का दामन थामकर चुनावी मैदान में हैं।


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