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राजस्थान में अपने खास लोगों को टिकट दिलाने में सफल रहीं वसुंधरा राजे

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा के 131 प्रत्याशियों की सूची में से 85 मौजूदा विधायकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहीं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 04:47 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 04:47 PM (IST)
राजस्थान में अपने खास लोगों को टिकट दिलाने में सफल रहीं वसुंधरा राजे
राजस्थान में अपने खास लोगों को टिकट दिलाने में सफल रहीं वसुंधरा राजे

जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान में सात दिसंबर को होने वाले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों की पहली सूची के नामों से सारे कयास धरे रह गए और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 131 प्रत्याशियों की सूची में से 85 मौजूदा विधायकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहीं। हालांकि पार्टी ने टिकट वितरण में पूरा संतुलन कायम करने की कोशिश् की है, क्योंकि राजे की सरकार के नौ मंत्रियों के टिकट पहली सूची में नहीं आए है वहीं संघ पृष्ठभूमि के नेताओ को भी पर्याप्त मौका दिया है। पार्टी ने हालांकि एक भी मुस्लिम चेहरे को अभी तक मैदान में नहीं उतारा है, लेकिन विवादित बयानबाजी करने वालों को भी अभी तक टिकट नहीं दिए है।

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टिकट वितरण में वंशवाद खूब चला और न सिर्फ दिवगंत नेताओं के रिश्तेदाारों को टिकट दिए गए, बल्कि जिन नेताओं के टिकट काटे गए, उनमें से भी कुछ बड़े चेहरों के परिजनों को टिकट दे दिया गया। जातिगत समीकरण साधने की भी पूरी कोशिश की गई है। पार्टी से नाराज चल रहे राजपूत समुदाय के 17 नेताओं को टिकट दिए गए हैं।

धरे रह गए 50 प्रतिशत विधायकों के टिकट कटने के अनुमान

भाजपा की ओर से रविवार देर रात जारी सूची ने 160 में से आधे विधायकों के टिकट काटे जाने के अनुमान खारिज कर दिए। पार्टी ने 85 मौजूदा विधायकों को टिकट दिए है, वहीं पिछला चुनाव हारने वाले सात लोगों को भी फिर से मौका दिया गया है। इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है, क्योंकि टिकट वितरण से पहले यह कहा जा रहा था कि टिकटों में जो कुछ करेगा आलाकमान करेगा, लेकिन प्रत्याशियों के नाम देख कर यह लग रहा है कि आलाकमान ने संगठन की तो सुनी, लेकिन राजे पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को यह समझाने मे कामयाब रही कि बहुत ज्यादा टिकट काटे जाने से उनकी सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठेंगे और बड़े पैमाने पर बगावत भी हो सकती है, जो चुनाव के समय ठीक नहीं रहेगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बाकी बचे 69 टिकटों में अभी ज्यादा से ज्यादा 15 टिकट और कट सकते हैं। इस तरह यह आंकडा 40 से ऊपर जाने की संभावना नहीं है।

दो के टिकट कटे, नौ मंत्रियों पर तलवार

भाजपा प्रत्याशियों की जारी की गई सूची में सकार के दो मंत्रियों नंदलाल मीणा और सुरेन्द्र गोयल के टिकट काट दिए गए हैं, हालांकि नंदलाल मीणा स्वयं चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर चुके थे और उनकी जगह उनके बेटे हेमंत मीणा को टिकट दे दिया गया, जबकि गोयल की जगह नया प्रत्याशी उतारा गया है। वहीं, नौ मंत्रियो के नाम पहली सूची मे नहीं आए हैं। इनमें छह कैबिनेट और तीन राज्य मंत्री हैं। जिनके नाम पहली सूची में नहीं हैं, उनमें राजे के खास माने जाने वाले परिवहन मंत्री युनूस खान का नाम भी है। इनके अलावा चिकित्सा मंत्री कालीचरण, उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत, सामान्य प्रशासन मंत्री हेम सिंह भड़ाना, श्रम मंत्री डॉ. जसवंत यादव, खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री बाबूलाल वर्मा, खान मंत्री सुरेंद्र पाल टीटी, देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवा, ग्रामीण विकास पंचायती राज्य मंत्री धन सिंह रावत को अपने टिकट के लिए अब भाजपा की दूसरी लिस्ट का इंतजार करना होगा।

साधे जातिगत समीकरण

राजस्थान के चुनाव में जातिगत समीकरण खासे अहमियत रखते हैं और भाजपा की सूची में इनका खास ध्यान रखा गया है। सरकार से नाराजगी दिखा रहे राजपूत समाज के 17 नेताओं को टिकट दिए गए हैं, वहीं जाट समुदाय को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए 26 जाट नेताओ को भी टिकट दिए गए हैं। इनके अलावा गुर्जरों को 6 तथा अनुसूचित जाति व जनजाति को 36 सीटें दी है।

मुस्लिम चेहरे व विवादित बयान देने वाले भी गायब

इस सूची में एक भी मुसिलम चेहरा नहीं है, उल्टे नागौर से मुस्लिम विधायक हबीबुर्रहमान का टिकट काट दिया गया है, जो दो बार से पार्टी के विधायक थे और अब वापस कांग्रेस में जाने की तैयारी कर रहे है। इसके अलावा एक मंत्री युनूस खान को अभी तक टिकट दिया नहीं गया है। हालांकि इसके साथ ही एक बात यह भी है कि समुदाय विशेष के खिलाफ विवादित बयानबाजी करने वाले अलवर के दो विधायकों में से बनवारी लाल सिंघल का टिकट काट दिया गया है, वहीं ज्ञानदेव आहूजा की सीट का नाम अभी घोषित नहीं किया गया है।

खूब चला परिवारवाद

कांग्रेस के वंशवाद का विरोध करती रही भाजपा ने मध्य प्रदेश के बाद यहां भी नेता रिश्तेदारों को खूब टिकट दिए हैं। तीन दिवंगत नेताओं सांवरलाल जाट, दिगम्बर सिंह और धर्मपाल चैधरी के बेटो को टिकट दिया गया है, वहीं जो मंत्री या विधयक उम्र के कारण राजनीति से दूर होना चाहते थे, उनमें पूर्व मंत्री देवीं सिंह भाटी, मंत्री नंदलाल मीणा, राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त सुंदरलाल, विधायक गुरजंट सिंह, कैलाश भंसाली के बेटो को भी टिकट दिया गया है।

इन रिश्तेदारो को मिले टिकट

- प्रतापगढ से मंत्री नंदलाल मीणा के बेटे हेमंत मीणा

- पिलानी से विधायक सुन्दरलाल की जगह उनके पुत्र कैलाश मेघवाल को मिला टिकट

- चूरू से मौजूदा विधायक राहुल कस्वां के पिता रामसिंह कस्वां को सादुलपुर से टिकट, हालांकि रामसिंह कस्वां पहले भी रह चुके हैं सांसद

- कोलायत सीट से देवीसिंह भाटी की पुत्रवधु पूनम कंवर को मिला टिकट

- सादुलशहर से विधायक गुरजंट सिंह की जगह उनके पौत्र गुरवीर सिंह बराड़ को टिकट

- जोधपुर से विधायक कैलाश भंसाली की जगह भतीजे अतुल भंसाली को टिकट

- बामनवास से कुंजीलाल की जगह उनके पुत्र राजेन्द्र मीणा को टिकट

- बयाना से ऋषि बंसल की पत्नी ऋतु बनावत को टिकट

- नसीराबाद सीट दिवंगत सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लाम्बा को मिला टिकट

- डीग-कुम्हेर सीट से दिवंगत डॉ. दिगम्बर सिंह के पुत्र डॉ. शैलेष सिंह को मिला टिकट

- मुण्डावर से दिवंगत धर्मपाल चैधरी के पुत्र मंजीत चैधरी को टिकट

- सपोटरा से राज्यसभा सांसद किरोडी लाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी जो पहले मंत्री भी रह चुकी है।

संघ परिवार को भी संतुष्ट करने का प्रयास 

इस सूची में जहां एक तरफ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राय को पूरी अहमियत दी गई, वहीं संध परिवार को भी संतुष्ट करने का प्रयास भी हुआ। संघ पृष्ठभूमि वाले दो नेताओं मदन दिलावर और जोगेश्वर गर्ग की दस वर्ष बाद वापसी हुई, वहीं सतीश पूनिय को पिछला चुनाव हारने के बावजूद फिर मौका दिया गया, हालांकि वे सिर्फ 300 वोट से हारे थे। इनके अलावा अरूण चतुर्वेदी, वासुदेव देवनानी फूलचंद भिण्डा सहित कई नाम ऐसे है जो सीधे तौर पर संघ परिवार से जुडे माने जाते हैं।  


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