राजस्थान चुनावः मारवाड़ में दांव पर वसुंधरा की प्रतिष्ठा, इन दिग्गजों की भी कड़ी परीक्षा
Rajasthan Election 2018. इस बार के महासंग्राम में महारानी को पिछला रिकार्ड हासिल कर पाना यहां के लाल चट़टानों को हाथ से तोड़ने जैसा है।
जोधपुर, आनन्द राय। मारवाड़ के थार मरुस्थल में भी 2013 के चुनाव में भाजपा की फसल लहलहा उठी थी। तब इस अंचल के सात जिलों की 43 सीटों में 39 भाजपा के कब्जे में आई और महारानी वसुंधरा राजे की ताजपोशी का सबसे बड़ा सबब बनी। इस बार के महासंग्राम में 'महारानी' को पिछला रिकार्ड हासिल कर पाना यहां के लाल चट्टानों को हाथ से तोड़ने जैसा है। कांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गढ़ होने के बावजूद कांग्रेस के लिए भी यह डगर आसान नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई को हाल में उभरी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत वाहिनी के अलावा बसपा व आप ने भी त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बना दिया है। ऊपर से भाजपा और कांग्रेस के बागियों की मोर्चेबंदी से भी दिग्गजों के पसीन छूट रहे हैं।
जोधपुर संभाग के जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर, सिरोही और जोधपुर जिले की कुल 33 तथा नागौर जिले की दस सीटों का दायरा ही मारवाड़ का भूगोल है। कभी यह कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन, पिछली बार वसुंधरा राजे की सक्रियता ने यहां की सियासी बाजी पलट दी और सरदारपुरा से चुनाव जीतने के बावजूद अशोक गहलोत की कमर टूट गई। तब गहलोत के अलावा कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली। नागौर जिले के खींवसर क्षेत्र में हनुमान बेनीवाल निर्दल चुनाव जीते जो इस बार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर राजस्थान की 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार लड़ा रहे हैं।
जाहिर है कि लड़खड़ाई कांग्रेस यहां अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है जबकि भाजपा के लिए अपना रिकार्ड तोड़ पाना बड़ी चुनौती है। वजह, भाजपा सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवाड़ी की पार्टी भारत वाहिनी भी मैदान में है। बसपा के उम्मीदवार तो करीब हर सीट पर हैं और उनकी मौजूदगी विशेष रूप से अनुसूचित जाति के मतों में सेंधमारी की वजह बन रही है। यकीनन, मारवाड़ अपने सियासी पुरोधाओं का इम्तिहान ले रहा है।
बागियों, असंतुष्टों और भितरघातियों की जमात इस इम्तिहान को और कठिन बना रही है। मारवाड़ की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां न तो माफिया कल्चर आया और न ही बंदूक का जोर। जर, जोरू और जमीन के किसी अपराध में पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा या पूर्व विधायक मलखान सिंह की तरह कोई नेता फंसा तो जनता ने उसे सबक भी सिखा दिया। इसे लालाओं की नगरी और शेयर मार्केट की धुरी कहा जाता है। इसलिए सियासी दांव-पेंच में परदे के पीछे से कारोबारियों का खेल सबसे अनोखा होता है। इस बार भी कारोबारियों पर नजरें टिकी हैं।
कसौटी पर वसुंधरा के वजीर
वसुंधरा सरकार के लोकनिर्माण और परिवहन मंत्री युनूस खान पिछली बार नागौर की डीडवाना सीट से जीते थे लेकिन, इस बार उन्हें टोंक में कांग्रेस के सचिन पायलट के खिलाफ खड़ा किया गया है। एक और मंत्री अजय सिंह डेगाना सीट पर मुकाबिल हैं और कांग्रेस के विजयपाल मिर्धा उन्हें टक्कर दे रहे हैं। लड़ाई को बेनीवाल की पार्टी रोमांचक कर रही है। सर्वाधिक दिलचस्प मुकाबला जोधपुर जिले की लोहावट सीट पर है जहां वसुंधरा के खेल मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की प्रतिष्ठा लगी है। इस बार खींवसर के सामने कांग्रेस ने किसनाराम विश्नोई को खड़ा कर राजपूत बनाम विश्नोई की लड़ाई शुरू कर दी है। हालांकि खींवसर के धुर विरोधी हनुमान बेनीवाल ने यहां से अपना कोई उम्मीदवार न उतारकर उन्हें सहूलियत दी है।
बाड़मेर जिले में स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री अमरा राम चौधरी पचपदरा से किस्मत आजमा रहे हैं और कांग्रेस के मदन प्रजापति ने उन्हें घेर दिया है। पचपदरा में भारत वाहिनी के नाथूराम भी मैदान में हैं। सिरोही में राज्यमंत्री ओटाराम के सामने कांग्रेस के जीवन राम आर्य और पाली की बाली सीट पर राज्यमंत्री पुष्पेंद्र सिंह राणावत किस्मत आजमा रहे हैं। कभी इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे। राणावत कई बार से चुनाव जीत रहे हैं लेकिन कांग्रेस ने यह सीट एनसीपी को समझौते में देकर मुश्किल खड़ी की है। बाली में भारत वाहिनी से राजू गिरी मैदान में हैं। जोधपुर की सुरक्षित सीट भोपालगढ़ में राज्यमंत्री कमसा मेघवाल चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस ने उनके सामने भंवर बलई पर दांव लगाया है।
मंत्री के विद्रोह की गूंज
पाली जिले के जैतारण में वसुंधरा सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र गोयल का टिकट कट गया है और वह निर्दलीय मैदान में ताल ठोंक चुके हैं। भाजपा ने उनके सामने अविनाश गहलोत को उतारा है। गोयल टिकट कटने से खफा हैं और वसुंधरा पर मारवाड़ की उपेक्षा समेत तमाम गंभीर आरोप लगा रहे हैं। उनकी गूंज मारवाड़ में सुनाई दे रही है। मारवाड़ जंक्शन में पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण दवे के विद्रोह से भी भाजपा मुश्किल में दिख रही है। ऐसा नहीं कि सिर्फ भाजपा ही बगावत से जूझ रही है। कांग्रेस में भी बागियों की कतार छोटी नहीं है। जोधपुर जिले की ओसियां में कांग्रेस ने पूर्व मंत्री परसराम मदेरणा की पौत्री और पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की बेटी दिव्या मदेरणा को टिकट दिया है।
यहां पर कांग्रेस से बगावत कर पूर्व मंत्री और ओसियां के चार बार विधायक रहे नरेंद्र सिंह की बेटी ज्योतिका सिंह ने बसपा का टिकट लेकर बिगुल बजा दिया है। कांग्रेस के महेंद्र सिंह भाटी भी बागी हो गए हैं। ओसियां में भाजपा के त्रिभुवन सिंह भाटी ने भी बगावत की है। पाली में कांग्रेस से महावीर सिंह राजपुरोहित को टिकट मिलने से पूर्व विधायक भीमराज भाटी, मारवाड़ जंक्शन में खुशवीर सिंह, सिरोही में कांग्रेस से पूर्व विधायक संयम लोढ़ा, जालोर के आहोर में कांग्रेस के जगदीश चौधरी, बाड़मेर के सिवाना में कांग्रेस से बालाराम चौधरी की बगावत ने चुनावी समीकरण उलट-पलट दिए हैं।
इन दिग्गजों की भी कड़ी परीक्षा
बाडमेर के सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी को भाजपा ने बाड़मेर की विधायक डॉ प्रियंका का टिकट काटकर मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस के पूर्व सांसद हरीश चौधरी बाड़मेर के बायतु सीट पर किस्मत आजमा रहे हैं। हरीश के मुकाबले भाजपा के कैलाश चौधरी मैदान में हैं। पाली में भाजपा के ज्ञानचंद पारख और जोधपुर की सूरसागर विधानसभा सीट पर सूर्यकांता व्यास अपनी परंपरागत सीट बचाने के लिए जूझ रही हैं। इन सभी को कड़ी परीक्षा देनी है। खींवसर विधानसभा क्षे्त्र में 2008 में भाजपा और 2013 में निर्दलीय चुनाव जीते राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संस्थापक हनुमान बेनीवाल भी इस बार मुकाबले में फंसे हैं।