राजस्थान में अपने ही गढ़ में मुश्किल में घिरी भाजपा, जानें-कहां-कैसी है मौजूदा स्थिति
अलवर, अजमेर, जयपुर, कोटा जैसे जिलों में भाजपा अलग-अलग कारणों से मुश्किल में दिख रही है। इन जिलों के टिकट तय करना भी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है।
जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान में इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को उन जिलों में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिन्हें पार्टी का गढ़ माना जाता है। अलवर, अजमेर, जयपुर, कोटा जैसे जिलों में भाजपा अलग-अलग कारणों से मुश्किल में दिख रही है। इन जिलों के टिकट तय करना भी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है।
राजस्थान में पिछले चुनाव में मोदी लहर के कारण वैसे तो भाजपा पूरे राज्य में छाई हुई थी और 200 में से 163 सीट जीती थी, लेकिन कोई लहर नहीं हो तो भी जयपुर, अलवर, अजमेर, कोटा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। ये वह जिले हैं, जहां भाजपा लहर में तो क्लीन स्वीप करती ही रही है, जब लहर न हो तो भी पार्टी यहां से अच्छी संख्या में जीतती रही है। मसलन, 2008 के चुनाव में राज्य में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी और उस समय कोई लहर नहीं थी, तब जयपुर जिले की 19 में से 10, अजमेर की आठ में से तीन, अलवर की 11 में से आठ और कोटा की छह में से तीन सीटें भाजपा ने जीती थीं। हालांकि, जोधपुर, नागौर, भरतपुर, धौलपुर जिलों में भी भाजपा का अच्छा प्रदर्शन रहा था, लेकिन इन्हें भाजपा का गढ़ नहीं माना जाता है, क्योंकि पहले इन जिलों में कांग्रेस का ही दबदबा रहा है।
इस बार भाजपा अपने इन मजबूत जिलों में ही अलग-अलग कारणों से मुश्किल में दिख रही है। इनमें बड़ा कारण गुटबाजी भी है, जिसके चलते टिकट तय करने में भी पार्टी को काफी दिक्कत आ रही है।
कहां-कैसी है मौजूदा स्थिति
जयपुर- यहां 19 सीटें हैं और जयपुर शहर में ही पार्टी गायों की मौत, मंदिर हटाए जाने जैसे मुद्दों के कारण जनता की नाराजगी का सामना कर रही है। जयपुर शहर में इस बार खुद पार्टी कार्यकर्ता ज्यादातर सीटों को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं। इसके अलावा जयपुर में ज्यादातर सीटों पर कुछ नेताओं को पिछले कुछ चुनावों से लगातार टिकट मिल रहे हैं। ऐसे में उन्हें बदलने की मांग भी जोर पकड़ रही है और कार्यकर्ता नए लोगों को टिकट देने की मांग कर रहे हैं।
इस बार पार्टी के मौजूदा विधायकों की आपसी खींचतान चर्चा का विषय है। कई मौकों पर तो इनके बीच सार्वजनिक तौर पर विवाद हुए हैं। ऐसे में पार्टी यहां गुटबाजी की शिकार दिख रही है।
अलवर- यहां भी पार्टी गुटबाजी की शिकार है। जिले में 11 सीटे हैं। यहां उन्मादी हिंसा (मॉब लिंचिंग) , गोतस्करी जैसे मामले तो हुए ही हैं, यहां के कुछ विधायक अपने बयानों या कार्यकलापों के कारण विवाद का शिकार होते रहे हैं। फरवरी में हुए लोकसभा उपचुनाव में अलवर की सीट भाजपा हार गई थी और लोकसभा क्षेत्र में आने वाले आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा कांग्रेस से पीछे रही थी।
अजमेर-यहां मौजूदा विधायकों की खींचतान परेशानी का कारण है। लोकसभा उपचुनाव में पार्टी अजमेर सीट भी हार गई थी और सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस से पीछे रही थी। यहां के जातिगत समीकरण भी पार्टी के अनुकूल नहीं हैं। रावणा राजपूतों और गुर्जरों के प्रभाव वाली सीटों पर भाजपा से नाराजगी सामने आ रही है। यहां भी नए चेहरों को उतारने की मांग जोर पकड़ रही है।