इस बार एकतरफा नहीं रह पाएगी राजस्थान की विधानसभा
जस्थान में इस बार के चुनाव परिणाम ने विधानसभा में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच रोचक मुकाबले और बहस होना तय कर दिया है।
जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान में इस बार के चुनाव परिणाम ने विधानसभा में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच रोचक मुकाबले और बहस होना तय कर दिया है। इस बार की विधानसभा की पिछली बार की तरह एकतरफा नहीं रहेगी। जीत कर आने वाले नेताओं में भी कई ऐसे नेता है जो तर्कसंगत और करारी बहस के लिए जाने जाते है।
राजस्थान में पिछले चुनाव में भाजपा ने 200 में से 163 और सीटेंजीती थी और कांग्रेस 21 पर सिमट गई थी।अन्य दलों और निर्दलियों को मिला कर सिर्फ 16 सीटें मिली थी। इन 16 में से भी आधे भाजपा के समर्थन में थे, ऐसे में विधानसभा बहुत हद तक एकतरफा हो गई थी। कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में रामेश्वर डूडी को जिम्मेदारी दी थी जो पहली बार विधानसभा में आए थे।
अन्य नेताओं में भी गोविंद सिंह डोटासरा, रमेश मीणा, धीरज गुर्जर जैसे दो-तीन ही थे जो विपक्ष की ओर से मोर्चा सम्भालते थे। वरिष्ठ नेताओं में अशोक गहलोत सदन में किसी भी मुददे पर नहीं बोले, वहीं नारायण सिंह, विश्वेन्द्र सिंह, भंवरलाल शर्मा आदि ने भी चुप्पी ही साधे रखी। यही कारण रहा कि संख्या बलही नहीं नेताओं की कमजोरी के कारण भी भाजपा को विधानसभा में ज्यादा बडी चुनौती नहीं मिल पाई और सरकार बडे आराम से न सिर्फ सारे विधेयक पारित करा पाई, बल्कि अपने हिसाब से ही सदन भी चलाया। सरकार को चुनौती मिली तोअपने ही विधायकों या घनश्याम तिवाडी जैसे बागी विधायकों से।
इस बार तस्वीर बहुत अलग दिख रही है। कांग्रेस सत्ता में आई तोहै, लेकिन इसके पास खुद के 99 ही विधायक है। गठबंधन की एक सीट मिला कर इसके सौ विधायक हुए है। हालांकि बसपा और निर्दलियों मेंसे कुछ का समर्थन कांग्रेस को मिल चुका है,ऐेसे में संख्या बल के हिसाब से तो ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन भाजपा के 73 सदस्य जीत कर आए है जोसदन में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते दिखेंगे। इनके अलावा बसपा के छह और सात-आठ निर्दलियों को भी सरकार के समर्थन में गिन लिया जाए तो भी करीब 13 विधायक विपक्ष की भूमिका में दिखेंगे। यानी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संख्या बल के हिसाब से ज्यादा अंतर नहीं रहेगा।
जीत कर आने वाले विधायकों में भी इस बार कुछ ऐसे नेता है जो विधानसभा के कामकाज के हिसाब से काफी अनुभवी है और कई बार जीत कर आ चुके है। इनमें निवर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा के ही गुलाब चंद कटारिया, राजेन्द्र राठौड, सूर्यकांता व्यास, कैलाश मेघवाल, कालीचरण सराफ, वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, किरण माहेश्वरी जो औसतन तीन से चार बार चुनाव जीत चुके है और अच्छे डिबेटर माने जाते है। निर्दलियों में संयम लोढा और अपनी पार्टी बना कर आए हनुमान बेनीवाल सहित माकपा के भी दो विधायक हैं।
उधर सत्ता पक्ष की बात करें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, सी.पी.जोशी, शांति धारीवाल, महेश जोशी, रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास, बी.डी.कल्ला, राजेन्द्र पारीक, गोविंद सिंह डोटासरा जैसे नेता है, जो अनुभवी भी है और विपक्ष का डट कर मुकाबला कर सकते है। यही कारण है कि इस बार विधानसभा खासी हंगामेदार और मुकाबले वाली होने की सम्भावना बताई जा रही है।
इस बार टूटा मेवाड का मिथक
राजस्थान में इस बार मेवाड यानी उदयपुर सम्भाग के सत्ता की चाबी होने का मिथक टूट गया। पिछले चार चुनाव में यह पहली बार है कि जब मेवाड में ज्यादा सीटें हासिल करने वाली पार्टी विपक्ष में बैठेगी।
राजस्थान मे उदयपुर सम्भाग मे आने वाले उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ, बासंवाडा, डूंगरपुर और चित्तौडगढ जिलों की 28 सीटों को सत्ता की चाबी माना जाता रहा है। ये सभी जिले आदिवासी बहुल जिले है और राजस्थान की ज्यादातर अनुसूचित जनजाति की सीटें इसी सम्भाग में है। दोनों प्रमुख दल हमेशा अपने प्रचार अभियान की शुरूआत भी इसी सम्भाग से करते है। इस बार भी वसुंधरा राजे ने राजसमंद के चारभुजा से गौरव यात्रा की शुरूआत की और राहुल गांधी ने उदयपुर से प्रचार अभियान शुरू किया। प्रधानमंत्री ने भी बेणेश्वर धाम में बडी चुनाव सभा की। माना जाता है कि आदिवासी बहुल जिला होने के कारण यहां का मतदाता एकमुश्त एक पार्टी के पक्ष में वोट डालता है। यही कारण है कि 2013 में भाजपा ने यहां 28 में से 25 सीटें ली और सरकार बनाई। इससे पहले 2008 में कांग्रेस ने 28 में से 20 सीटें जीती और सरकार बनाई। इससे पहले 2003 में भाजपा ने 28 में से 21 सीटें जीती और सराकर बनाई।
लेकिन इस बार यह मिथक टूट गया। इस बार यहां से भाजपा ने 28 मे से 15 और कांग्रेस ने दस सीट हासिल की है। ऐसे में ज्यादा सीटे भाजपा के पास है, लेकिन यह पार्टी इस बार विपक्ष में बैठेंगी। यहां बाकी बची तीन मे से दो सीटें एक नई पार्टी भारत ट्राइबल पार्टी ने जीती है। एक अन्य निर्दलीर्य के खाते में गई है। भाजपा के यहां से गुलाबचदं कटारिया और किरण माहेश्वरी जैसे बडे नेता जीत कर पहुंचे है। जबकि कांग्रेस की ओर से सी.पी.जोशी और रघुवीर मीणा जैसे नेता जीत कर आए है।