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अशोक गहलोत इन सात कारणों से बन सकते हैं राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री!

ख़बर है कि कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को सीएम बनाने के फैसले को हरी झंडी दे दी है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 05:41 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 05:56 PM (IST)
अशोक गहलोत इन सात कारणों से बन सकते हैं राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री!
अशोक गहलोत इन सात कारणों से बन सकते हैं राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री!

नई दिल्ली, जेएनएन। अभी तक मिले रुझानों और नतीजों से राजस्‍थान में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने निर्णायक बढ़त हासिल कर ली है और 100 का आंकड़ा पार करते हुए उसकी सरकार बननी भी तय है। इन सबके बीच खबर यह है कि कांग्रेस आलाकमान ने मुख्‍यमंत्री पद के लिए पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत के नाम को हरी झंडी दे दी है। लेकिन इससे उसकी मुश्किल कम होने के बदले बढ़ ही गई है। इस पद के दूसरे बड़े दावेदार और राज्‍य कांग्रेस इकाई के अध्‍यक्ष सचिन पायलट इस पूरी कवायद से नाराज बताए जा रहे हैं। इसीलिए सोनिया गांधी के विश्‍वस्‍त अहमद पटेल समेत कई नेताओं को उन्‍हें मनाने के लिए लगाए जाने की खबर है।  

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जबकि अभी तक कहा जा रहा था कि चूंकि पायलट राहुल गांधी की स्‍कीम में फिट बैठते हैं, इसलिए मुहर उन्‍हीं के नाम पर लगेगी। इस बात पर अधिकांश एक्‍सपर्ट्स इसलिए भी एकमत थे, क्‍योंकि वे मानकर चल रहे थे कि इस मरुस्‍थलीय राज्‍य में इस बार कांग्रेस की फसल लहलहाएगी और वह 150 के आंकड़ों के आसपास पहुंच जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरी राहुल गांधी के चहेते पायलट पर गहलोत को वरीयता क्‍यों दी गई और कांग्रेस सरकार और पार्टी के प्रदर्शन पर इसका क्‍या असर होगा? 

पहला कारण- राज्‍य में कांग्रेस को उम्‍मीद के अनुरूप सीटें नहीं मिलीं। माना जा रहा था कि उसे 150 के करीब में सीटें मिलेंगी। अगर ऐसा होता तो कम अनुभवी सचिन पायलट के लिए राज्‍य प्रशासन चलाना आसान होता, क्‍योंकि उनके समक्ष किसी भी सूरत में बहुमत हिलने की चुनौती नहीं होती। लेकिन सीटें 100 के करीब में आने के कारण अब सरकार चलाने से अधिक महत्‍वपूर्ण राजनीतिक प्रबंधन हो गया है, जिसमें गहलोत का सानी नहीं है। उन्‍होंने कई मौकों पर इसका पर्याप्‍त मुजाहिरा पेश किया है। 

दूसरा कारण- राजस्‍थान में इस बार करीब 20 स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार आगे चल रहे हैं या जीत के करीब हैं। इनमें अधिकांश बागी उम्‍मीदवार हैं। इनमें सात ऐसे उम्‍मीदवार हैं जिन्‍हें टिकट देने की अशोक गहलोत ने जोरदार वकालत की थी, लेकिन उनकी दलील अनसुनी कर दी गई थी। माना जा रहा है कि अब वे इसी शर्त पर कांग्रेस को समर्थन दे सकते हैं, जब गहलोत मुख्‍यमंत्री बनें। ऐसे में कांग्रेस के लिए गहलोत को मुख्‍यमंत्री बनाना एक तरह से मजबूरी है। ख़बर के अनुसार, गहलोत इन सात के अलावा दो और उन निर्दलीय प्रत्याशियों के संपर्क में हैं, जो जीतने के करीब हैं। 

Ashok Gehlot Sachin Pilot and Rahul Gandhi
तीसरा कारण- लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस गठबंधन की राह पर मजबूती के साथ आगे बढ़ना चाहती है। इसीलिए संभव है कि वह मायावती की बसपा के साथ ही राजस्‍थान के अन्‍य छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने की पहल करे। इससे विपक्षों दलों में उसके प्रति बेहतर छवि और तस्‍वीर जाएगी। ऐसे में गठबंधन चलाने के लिए उसे गहलोत के रूप में एक अनुभवी और स्‍वीकार्य नेता की जरूरत है।  

चौथा कारण-
जानकारों की जानें तो गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान को साफ कह दिया था कि यह उनका आखिरी मौका है और उन्‍हें यह अवसर दिया जाए। युवा होने के कारण सचिन के पास अभी पर्याप्‍त अवसर हैं। 

पांचवां कारण- 
सोनिया गांधी का करीबी और बेहद विश्‍वस्‍त होना भी उनके पक्ष में गया है। इसमें शायद ही किसी को कोई शक हो कि अभी भी पर्दे के पीछे से सोनिया गांधी कांग्रेस चलाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। इसके अलावा, सीनियर कांग्रेसी राहुल के साथ ही सोनिया से लगातार सम्‍पर्क में रहते हैं। इसीलिए गहलोत के लिए यह जंग जीतना आसान हो गया। 

छठा कारण-
लगभग 10 साल तक मुख्‍यमंत्री रहे गहलोत को राज्‍य के चप्‍पे-चप्‍पे की जानकारी है और पार्टी के स्‍थानीय और राष्‍ट्रीय नेताओं से उनके करीबी व्‍यक्तिगत संबंध हैं। उनकी जीत में इस संबंध की भी अहम भूमिका है। 

सातवां कारण-
इन सबके अलावा जो बात उनके पक्ष में जाती है, वह है उनका माली जाति से आना और ऊंची जातियों के लिए भी स्‍वीकार्य होना। चूंकि माली जाति राजनीति के लिहाज से राज्‍य में अहम नहीं है, ऐसे में परंपरागत रूप से राज्‍य की प्रभा‍वशाली जातियों जैसे- राजपूत, जाट, ब्राहृमण, गुर्जर जातियों के सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्‍व की राह में वे चुनौती नहीं हैं। जबकि राजपूत और जाट में परंपरागत रूप से दुश्‍मनी रही है।


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