राजस्थान में 16 हजार से अधिक ट्रांसजेंडर, लेकिन वोटर लिस्ट में मात्र 349
राजस्थान किन्नर अखाड़े की अध्यक्ष बताती हैं कि वोटर तो बहुत ज्यादा हैं। राजस्थान में ट्रांसजेंडर की संख्या एक लाख से अधिक है। लेकिन वोटिंग लिस्ट में 349 का ही आंकड़ा है।
जयपुर, जागरण संवाददाता। किन्नर को ट्रांसजेंडर कहा जाय या फिर थर्ड जेंडर और अगर वोटर आईडी में देखे तो तृतीय लिंग । इन्हे किसी भी नाम से पुकारो, लेकिन राजस्थान में इनके हाल बेहद बुरे है। इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलग पहचान के आदेश दिए गए है, इसके बावजूद राजस्थान में नहीं देश में यह तबका लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित है।
पूरे देश में इस तबके कि आबादी लगभग पांच लाख है, लेकिन मतदान के लिए इनकी गणना सिर्फ करीब 35 हजार ही है। राजस्थान में तो स्थिति और भी खराब है। पहली बार 2011 की जनगणना में इस वर्ग को अलग से गिना गया। राजस्थान में ट्रांसजेंडर्स की आबादी 16 हजार 512 आई, जबकि ट्रांसजेंडर दुवारा 2013 में किये गए सर्वे में 22 हजार से अधिक संख्या आंकी गई जो मतदाता की सूची में नाम जुड़वाने की उम्र में है।
लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार जनवरी 2018 में मात्र 349 ही वोटर राजस्थान में पंजीकृत है। राजस्थान में सर्वाधिक ट्रांसजेंडर मतदाता आबादी अलवर में 65 है। कई जिलों में तो इन्हें मतदाता सूची में जोड़ा ही नहीं गया।
राजस्थान में ट्रांसजेंडर मतदाताओं की स्थिति
अलवर-65, गंगानगर-60, पाली-46, नागौर-32, चित्तौड़गढ़-25, हनुमानगढ़-22, अजमेर-24, सीकर-23, प्रतापगढ़-18, जयपुर-13, सिरोही -12, जालोर-12, बीकानेर-11, बांसवाड़ा-10, जोधपुर-8, जैसलमेर-7, भीलवाड़ा-6, राजसमंद-5, बारां-1, चूरू-1, कोटा-1. इनके अलावा बाड़मेर, भरतपुर, दौसा, धौलपुर, डूंगरपुर, बूंदी, झालावाड़, झुंझुनूं, करौली, सवाई माधोपुर और उदयपुर में एक भी ट्रांसजेंडर मतदाता नहीं है।
लोग इनको जिताते भी है
ऐसा नहीं है कि ट्रांसजेंडर्स समाज द्वारा स्वीकार्य नहीं है। लोग इन्हें वोट देकर जिताते भी है। वर्ष 1998 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में सोहागपुर विधानसभा सीट से शबनम मौसी विधायक बनी। वहीं साल 2004 में राजस्थान में चित्तौड़गढ़ में निर्दलीय पार्षद बनी ममता बाई को लोगों ने इतना पसंद किया कि साल 2009 में उन्हें बेगूं का नगरपालिका चेयरमैन बना दिया। साल 2015 में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में मधु किन्नर महापौर पद पर जीती है। साल 2003 में तो देश में जेजेपी अर्थात जीती जिताई पार्टी नाम से किन्नरों का राजनीतिक दल भी बन चुका है। साल 2005 में शबनम मौसी के नाम से फिल्म भी बनी थी।
अलग पहचान नहीं
सर्वोच्च न्यायालय किन्नरों को पृथक पहचान के आदेश दे चुका है। 2012 में चुनाव आयोग ने ट्रांसजेंडर या अन्य वोटर के नाम से पहचान दिलाने के लिए कॉलम रखा। लेकिन यह पहचान अभी तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है।बेगूं से विधायक का चुनाव लडऩे वाली ट्रांसजेंडर ममता बाई को चुनाव आयोग ने ही महिला मान लिया। जबकि प्रत्याशी के कॉलम में अन्य का ऑप्शन हैं। बेगूं में वे पालिकाध्यक्ष रह चुकी हैं, लेकिन वहां ट्रांसजेंडर वोटर्स की संख्या 2013 में शून्य बताई गई। इतना ही नहीं हाल ही पुलिस में शामिल कांस्टेबल के पद पर नौकरी लगी गंगा को भी महिला कोटे शामिल किया गया है।
हक को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं
राजस्थान किन्नर अखाड़े की अध्यक्ष बताती हैं कि वोटर तो बहुत ज्यादा हैं। राजस्थान में ट्रांसजेंडर की संख्या एक लाख से अधिक है। लेकिन वोटिंग लिस्ट में 349 का ही आंकड़ा है। आंकड़ों से साफ है कि निर्वाचक नामावली बनाने वाले ट्रांसजेंडर्स के हक को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं।