जानिए, राजस्थान में आधा प्रतिशत मतदान के अंतर ने कैसे बदल दी सरकार
कांग्रेस की और बड़ी जीत होती, अगर निर्दलीय और अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों ने रोड़ा न अटकाया होता।
मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में मात्र आधा प्रतिशत मतदान के अंतर ने राज्य में सत्ता परिवर्तन करवा दिया। कांग्रेस की और बड़ी जीत होती, अगर निर्दलीय और अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों ने रोड़ा न अटकाया होता। बसपा ने एक बार फिर अपना मौजूदगी का एहसास कराया। हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय दिखी भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
राजस्थान में सत्ता में लौटी कांग्रेस और भाजपा को मिले वोटों में सिर्फ आधा प्रतिशत का अंतर है। कांग्रेस को राज्य में 39.3 प्रतिशत और भाजपा को 38.8 प्रतिशत वोट मिले हैं। महज आधा फीसद के अंतर से भाजपा की 90 सीटें कम हो गईं। गौरतलब है कि 2013 के विस चुनाव में भाजपा को 163 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा की झोली में सिर्फ 73 सीटें ही आई हैं, जबकि कांग्रेस 99 सीटों पर विजय पाने में कामयाब रही है।
पिछली विधानसभा चुनाव (2013) की बात करें तो दोनों को मिले वोट प्रतिशत में करीब सात प्रतिशत का अंतर था। भाजपा को इस बार 6.75 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस को 6.59 प्रतिशत का फायदा हुआ है, लेकिन अन्य दलों को मिले वोट प्रतिशत को देखें तो लगता है कि कांग्रेस और भी बड़ी जीत हासिल कर सकती थी।
..तो कांग्रेस को और फायदा होता
पिछले चुनाव में बसपा, निर्दलीयों और अन्य दलों ने मिलकर 20.24 प्रतिशत वोट लिए थे और इन्हें कुल मिलाकर 16 सीटें मिली थीं। इसमें सात निर्दलीय थे। इस बार की बात करें तो बसपा, निर्दलीयों और अन्य दलों को कुल मिलाकर 21.9 प्रतिशत वोट मिले हैं और इनकी सीटों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है। यानी इनके वोट प्रतिशत में 1.66 की बढ़ोतरी की और 11 सीटें ज्यादा हो गई। जानकारों की मानें तो निर्दलीय और अन्य का वोट प्रतिशत नहीं बढ़ता तो इसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिलता, क्योंकि निर्दलीय और अन्य को मिली जीत भी एक तरह से सत्ता विरोधी वोट ही है।