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अजमेर विधानसभा चुनाव -2018 भाजपा जमीन पर कांग्रेस जुबान

Rajasthan assembly elections 2018. भाजपा और कांग्रेस को एक दूसरे के वार का नहीं बल्कि अपने ही बागियों की मार का ज्यादा डर सताने लगा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 09:02 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 09:03 AM (IST)
अजमेर विधानसभा चुनाव -2018 भाजपा जमीन पर कांग्रेस जुबान
अजमेर विधानसभा चुनाव -2018 भाजपा जमीन पर कांग्रेस जुबान

अजमेर, सन्तोष गुप्ता। राजस्थान विधान सभा चुनाव 2018 के लिए नामांकन की सोमवार को अंतिम तिथि है। अभी तक अजमेर विधानसभा की आठ सीटों में से कांग्रेस ने अपने सभी आठ प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं भाजपा की ओर से केकड़ी विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशी की घोषणा होना शेष है, इस बीच भाजपा की जमीन पर तो कांग्रेस की जुबान पर फतह तैर रही है। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस को एक दूसरे के वार का नहीं बल्कि अपने ही बागियों की मार का ज्यादा डर सताने लगा है।

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आगामी 22 नवम्बर नाम वापसी होनी है। दोनों ही पार्टियों के अधिकृत उम्मीदवार अपने-अपने जातिय समीकरणों के आधार पर बागियों की हैसियत का तौल-मोल करने में जुट गए हैं। सच्चाई भी है प्रत्याशियों की चुनावी फतह का समीकरण चुनाव मैदान में अंत समय तक डटे रहने वाले बागियों के रास्ते से ही तय होना है।मौटे तौर पर देखा जाए तो अजमेर जिले की आठों सीट पर अंत समय भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला ही होना है।

संभाग में भाजपा की ओर से कट्टर हिन्दुत्व कार्ड खेले जाने से अभी तक एक भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा गया है किन्तु अब टोंक में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को घेरने के लिए भाजपा का यह कदम पीछे हट सकता है। कांग्रेस के प्रदेश प्रचार समिति के मुखिया एवं उपचुनाव जीते सांसद डाॅ. रघु शर्मा को घेरने के लिए भाजपा की ओर से शेष रही केकड़ी सीट से वैश्य समुदाय में से किसी को उम्मीदवार बनाकर मत घु्रवीकरण को रोका जा सकता है। गत चुनाव में मसूदा सीट बागियों के कारण खिचड़ी बन गई थी इस बार भी वहां ऐसे ही हालात बन रहे हैं। यह बात ओर है कि अजमेर की अन्य सीटों में किशनगढ़ और अजमेर की उत्तर व दक्षिण सीट पर भी भाजपा व कांग्रेस बागियों के कारण फिलहाल यही हालात दिखाई देते हैं।

हनुमान का किशनगढ़ में पड़ सकता है दांव-

भाजपा की ओर से मौजूदा विधायक एवं दो बार के विजेता जाट नेता भागीरथ चैधरी का किशनगढ़ से टिकट काट कर युवा चेहरे विकास चैधरी पर दांव खेले जाने से यहां शुरू हुई भाजपाइयों की खुली बगावत थमने का नाम नहीं ले रही। यहां से भाजपा के बागी बनकर किशनगढ़ नगर परिषद के पूर्व सभापति और मार्बल ऐसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश टांक तो कांग्रेस की अंतिम सूची में किशनगढ़ सीट से जाट प्रत्याशी के रूप में नंदाराम धाकण को उम्मीदवार बनाए जाने से कांग्रेस के बागी बनकर पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया अंत समय चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। बताते हैं कि सिनोदिया के समर्थक तीसरे मोर्चे के हनुमान बेनीवाल के भी सम्पर्क में हैं। सिनोदिया बेनीवाल की पार्टी के उम्मीदवार भी हो सकते हैं।

मसूदा में कय्यूम की चुनौतीः

अजमेर जिले के मसूदा विधानसभा क्षेत्र से कांगे्रस के पूर्व विधायक हाजी कय्यूम खान ने बागी रुख अपना लिया है। कय्यूम 19 नवम्बर को नामांकन दाखिल करेंगे। लेकिन कांग्रेस के लिए यह राहत की बात है कि चीता समाज के प्रमुख नेता वाजिद चीता ने कांग्रेस के उम्मीदवार राकेश पारीक को समर्थन देने की घोषणा की है। मसूदा से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर वर्तमान विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा मैदान में हैं। हालांकि पारीक ने केकड़ी से दावेदारी जताई थी, लेकिन उन्हें मसूदा से उम्मीदवार बनाया गया। पारीक कांग्रेस सेवाादल के प्रदेश अध्यक्ष हैं। यहां से पारीक को भी बिहारी बताकर स्वयं कांग्रेसी विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।

अजमेर दक्षिण में भाटी बने भाजपा की ढालः-

कांग्रेस के टिकट पर गत चुनाव हार चुके उद्योगपति हेमन्त भाटी को अजमेर दक्षिण से दोबारा टिकट दिए जाने से खफा तथा व्यक्तिगत संपत्ति विवाद से नाराज उनके ही बड़े भाई कद्दावर कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री ललित भाटी ने ताल ठोक दी है। उनका इस तरह चुनाव मैदान में उतरना भाजपा के लिए ढाल माना जा रहा है। दक्षिण विधान सभा क्षेत्र से ही रेगर समुदाय के डाॅ. राकेश सिवासिया के भी चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा को बड़ी राहत है। यहां से भाजपा ने लगातार चैथी बार अनिताभदेल पर भरोसा दर्शाया है। अनिता भदेल गत सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रही हैं। गत 15 सालों में मतदाताओं के किए व्यक्तिगत कार्य और सरकारी जनकल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार पर उन्होंने जीत के लिए अपेक्षित, स्वयं अपना वोटबैंक तैयार किया हुआ है।

किस्मत की हैं धनीः-

भाटी बंधुओं के आपसी झगड़े के चलते ही अनिता भदेल साल 2003 , 2008 और 2013 का चुनाव जीतने में सफल रही थीं और इस बार फिर साल 2018 में वही समीकरण बनते नजर आ रहे हंै । 2003 के चुनाव में जब ललित भाटी कांग्रेस के उम्मीदवार बने तब इनके पिता स्वर्गीय शंकर सिंह भाटी ने अनिता भदेल को आशीर्वाद देकर पहली बार विधायक बनाया था । उस वक्त ललित भाटी साढ़े छह हजार मतों से चुनाव हार गए थे । फिर साल 2008 में कांग्रेस ने डॉ राजकुमार जयपाल को अपना उम्मीदवार बनाया । तब ललित भाटी ने एनसीपी से चुनाव लड़कर ताल ठोकी थी और लगभग 20 हजार वोट हासिल किए । उस चुनाव में हेमंत भाटी के सहयोग से अनिता भदेल लगभग 19 हजार वोटों से विजयी रहीं । 2013 के चुनावों में कांग्रेस ने हेमंत भाटी को टिकिट देकर दावं खेला । हालांकि उस चुनाव में ललित भाटी ने बागी के रूप में चुनाव नहीं लड़ा लेकिन हेमंत को उनका उतना फायदा भी नहीं मिला । जिसके चलते मोदी लहर पर सवार होकर अनिता भदेल तीसरी बार ना सिर्फ विधायक बनी बल्कि वसुंधरा सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री भी बन गई।

अजमेर उत्तर में कांग्रेस जातियगणित पर:-

भापजा के अधिकृत प्रत्याशी कद्दावर नेता वासुदेव देवनानी यहां जातिय समीकरण के कारण भले दहशत में हैं किन्तु जमीनी हकीकत उन्हें मजबूत बनाए है। पार्टी की रीति और नीति के आधार पर जहां एकजुट सिंधी, रावत, जाट, एससी-एसटी व अन्य पिछड़ा वर्ग इस बार उनके साथ स्पष्ट दिखाई दे रहा है तो कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी महेन्द्रसिंह रलावता के पक्ष में राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर, माली, क्रिश्चियन, मुस्लिम, परम्परागत एससी तथा मौजूदा विधायक से व्यक्तिगत नाराज सिंधी एवं सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये से खफा वणिक व व्यापारी वर्ग, राज्यकर्मचारी और दिहाड़ी मजदूर वर्ग खड़ा नजर आ रहा है, लेकिन यह सब हवा में है। महेन्द्रसिंह रलावता की जमीन पर आंतरिक तैयारी भाजपा की तुलना में अपटूमार्क करने का समय कम है। ऐसे में कांग्रेस को भाजपा के इशारे पर खड़े निर्दलीय प्रत्याशियों का बड़ा खतरा है। नामांकन वापसी तक अजमेर उत्तर से संदीप तंवर, घीसू सिंह, अमद मौहम्मद शमीम (बीएसपी) तथा श्वेता शर्मा निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में हैं।

केकड़ी में क्या इस बार वैश्य पर भरोसा करेगी भाजपाः-

यूं तो केकड़ी से भी भाजपा ने मौजूदा संसदीय सचिव शत्रुध्न गौतम के बदले कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है किन्तु माना जा रहा है कि यहां से भाजपा के पास अब फिर से ब्राह्मण के इतर वैश्य समुदाय को टिकट देने के अलावा और कोई विकल्प बचा नहीं है। ऐसा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के टोंक से चुनाव मैदान में उतरने के कारण होगा। टोंक से भाजपा अपने प्रत्याशी अजीतसिंह मेहता को बदलने की मंशा रख रही है। मेहता को उम्मीदवार बनाए जाने से वहां स्वयं भाजपा में कलह हो रहा है तो पायलट के विरुद्ध मुस्लिम समाज एक जुट हो रहा है। इसका फायदा यदि भाजपा अपने एजेंडे से कदम पीछे लेकर उठाना चाहेगी तो यहां से किसी मुस्लिम के रूप में युनूस खान, अमीन पठान या पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन को मैदान में उतार कर सचिन पायलट को घेर सकती है। ऐसे में केकड़ी से कांग्रेस उम्मीदवार एवं सांसद डाॅ. रघु शर्मा को घेरने तथा समूचे जिले के वैश्य समुदाय की संतुष्टि और मतों के ध्रुवीकरण की दृष्टि से किसी कद्दावर वैश्य नेता को उम्मीदवार बनाया जा सकता है।


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