Sangrur Lok Sabha constituency: मुद्दों के बीच फंसेे वोटर, मान के लिए आसान नहीं राह
संगरूर में आप के लिए सीट बचाने की चुनौती है। इस सीट पर आप कांग्रेस व शिअद में तिकोना मुकाबला है।
संगरूर [नितिन उपमन्यु]। लखबीर सिंह 22 साल के हैं। उन्होंने मेडिकल साइंस (लैब) में डिप्लोमा किया। दो साल से नौकरी की तलाश में हैं, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। उनके दोस्त परगट सिंह और सरबजीत सिंह का भी यही हाल है। अब दिहाड़ी लगाकर परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। संगरूर से करीब 18 किलोमीटर दूर गांव लिदड़ां की एक चौपाल पर बैठ कर सियासी माहौल पर चर्चा कर रहे हैं। पूछने पर कहते हैं, 'यहां पूरे इलाके में सैकड़ों युवा ऐसे ही हमारी तरह बेरोजगार मिल जाएंगे। चुनाव के दौरान नेता आते हैं और भाषण देकर चले जाते हैं। अब तो वोट देने को भी मन नहीं करता।'
गांव भम्मावद्दी के जसविंदर सिंह और 23 वर्षीय सतपाल सिंह भी बेरोजगार हैं। जसविंदर को मनरेगा में कुछ दिन काम मिला, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से फंड में कटौती के कारण तीन महीने का भुगतान अटका पड़ा है। संगरूर शहर के अश्वनी शर्मा कहते हैं कि बेरोजगारों के पास घेराव के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। संगरूर लोकसभा सीट का सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी ही है।
यह साफ है कि इस बार जनता मुद्दों व विकास पर ही परखेगी। आप के लिए सीट बचाने की चुनौती है, जबकि कांग्रेस व शिअद में कड़ी टक्कर है। पीडीए के जस्सी जसराज पिछली बार बठिंडा से हार चुके हैं। कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं। शिअद (अ) के सिमरनजीत सिंह मान का फिक्स वोट बैंक है। इसमें इस बार बढ़ोतरी हो सकती है।
विरोधी दल के नेता भाषणों में बेरोजगारी के मुद्दे को खूब भुना रहे हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार केवल ढिल्लों जगह-जगह अपने भाषणों में कैप्टन सरकार की 'घर-घर नौकरी योजना' का बखान कर रहे हैं। दूसरी तरफ शिअद के उम्मीदवार परमिंदर सिंह ढींडसा और आप के भगवंत मान बेरोजगारी के आंकड़े पेश कर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। गांवों में मान से बेरोजगार पर हिसाब मांग रहे हैं। सरकार में होने के कारण ढिल्लों को विरोध भी झेलना पड़ रहा है।
संगरूर-बरनाला मार्ग पर गांव चंगाल में गन्ना काश्तकारों ने उन्हें घेर लिया और जल्द भुगतान का मुद्दा उठाया। 85 साल के हरदयाल सिंह बताते हैं, 'यहां बहुत से किसानों के 10-12 लाख रुपये शुगर मिलों के पास फंसे हैं। वे आवाज उठाते हैं तो उन पर झूठे पर्चे दर्ज किए जाते हैं।' इसी गांव के शमशेर सिंह और हरजीत सिंह पर केस दर्ज हुआ है।
ढिल्लों की दूसरी बड़ी परेशानी पार्टी की ही वरिष्ठ नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्ठल ने खड़ी कर दी है। एक जनसभा में उन्होंने सवाल पूछने पर युवक को थप्पड़ जड़ दिया। युवक का दावा है कि उनका परिवार वर्षों से कांग्रेसी है। उन्होंने सिर्फ इतना पूछा था कि आप 25 साल विधायक रहीं, तो इलाके के लिए क्या किया। अब इस थप्पड़ की गूंज पूरे संसदीय हलके में है। गली-मोहल्लों और चौराहों में आम चर्चा है। शिअद के परमिंदर सिंह ढींडसा और आप के भगवंत मान हर सभा में इसे मुद्दा बना रहे हैं। मान तो यहां तक कह रहे हैं कि यह थप्पड़ युवक को नहीं, बल्कि ढिल्लों को पड़ा है।
बेअदबी का मुद्दा भी यहां चुनाव पर खासा असर डालेगा। शिअद और कांग्रेस दोनों ही इस आरोप से घिरे हैं। कांग्रेस जहां बहिबल कलां गोलीकांड का मुद्दा उठा रही है, तो शिअद गुटका साहिब की झूठी कसम खाने को मुद्दा बना पलटवार कर रही है। आम आदमी पार्टी दोनों ही पार्टियों को घेर रही है।
जीएसटी और नोटबंदी भी लोगों की जुबान पर हैं। परचून कारोबारी कमलकांत कहते हैं, 'राजा का काम जनता की सेवा करना होता है, लेकिन नोटबंदी कर राजा ने जनता को रुलाया है।' होटल कारोबारी मनीष गोयल भी ऐसा ही मानते हैं। हालांकि जीएसटी पर इतना गुस्सा नहीं है। रेस्टोरेंट चलाने वाले राहुल गर्ग मानते हैं कि जीएसटी से काम आसान हुआ है, लेकिन नोटबंदी ने बहुत नुकसान पहुंचाया।
अगर किसी मुद्दे की यहां चर्चा नहीं है, तो वो राष्ट्रवाद और एयर स्ट्राइक। 66 साल के नंदलाल रिटायर्ड कर्मचारी हैं। कहते हैं, 'राष्ट्रवाद की बात करने वाली भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर क्या संदेश देने की कोशिश की है?' दूसरी तरफ विजय गोयल और 67 वर्षीय गुरबचन सिंह की राय है कि दल-बदल के कारण जनता का नेताओं से विश्वास उठ रहा है।
सियासी समीकरण
नौ विधानसभा हलकों में से पांच पर आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। इस लिहाज से आप यहां मजबूत है। बरनाला जिले की तीनों सीटें आप के पास हैं, जबकि संगरूर की तीन सीटें कांग्रेस व एक शिअद के पास है। संगरूर और लहरागागा में शिअद की स्थिति ठीक है। मालेरकोटला व धूरी में कांग्रेस हावी है। ग्रामीण इलाकों में आप के भगवंत मान की पकड़ मजबूत है, जबकि शहरी इलाकों में शिअद के परमिंदर सिंह ढींडसा और कांग्रेस के केवल सिंह ढिल्लों की स्थिति मिली-जुली है।
विधानसभा हलकों का हाल
मालेरकोटला
यह सीट कांग्रेस के पास है। रजिया सुल्ताना विधायक हैं। कैप्टन ने उन्हें मंत्री बनाया है। मुस्लिम बहुल इलाका है। मालेरकोटला को अलग जिला बनाने और मेडिकल कॉलेज का मुद्दा यहां काफी गर्म है। कांग्रेस यहां मजबूत है।
धूरी
कांग्रेस के दलबीर गोल्डी विधायक हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रदेश में जिसकी सरकार है, उसका विधायक है। पिछड़ा इलाका होने के कारण रोजगार के साधन कम हैं।
संगरूर
इस सीट पर कांग्रेस को गुटबंदी भारी पड़ सकती है। इसका फायदा शिअद को मिलता दिख रहा है। हालांकि दोनों पार्टियों की पकड़ बराबर ही लग रही है। कांग्रेस के विजय इंद्र सिंगला विधायक हैं।
सुनाम
आप के अमन अरोड़ा विधायक हैं। बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा है। आप की स्थिति यहां ठीक है, लेकिन ढींडसा यहां से चार बार विधायक रह चुके हैं। लिहाजा उनका भी खासा आधार है।
दिड़बा
विधानसभा में नेता विपक्ष आप के हरपाल सिंह चीमा यहां से विधायक हैं। पूरा इलाका पिछड़ेपन का शिकार है। कोई बड़ा उद्योग न होने के कारण बेरोजगारी ज्यादा है। विकास कार्य धीमे हैं।
लहरागागा
यहां से शिअद के परमिंदर सिंह ढींडसा विधायक हैं। वही शिअद के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस नेत्री राजिंदर कौर भट्ठल के थप्पड़ की सबसे ज्यादा गूंज यहीं है।
बरनाला
यह सीट भी आप के पास है। यहां से मीत हेयर विधायक हैं। सेहत, शिक्षा व बेरोजगारी अहम मुद्दे हैं। उद्योगों का विस्तार नहीं हुआ है। गांवों में कांग्रेस की स्थिति ठीक है।
भदौड़
आप के पिरमल सिंह खालसा विधायक हैं। खैहरा गुट के साथ हैं, लेकिन खुलकर नहीं चल रहे। आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि तपा से ही आप का सोशल मीडिया ऑपरेट हो रहा है।
महलकलां
यहां से आप के कुलवंत सिंह पिंडोरी विधायक हैं, लेकिन आप की स्थिति कमजोर हुई है। शिअद मजबूत हो रहा है। कांग्रेस का विरोध है।
जातीय समीकरण
- सिख 65.10 फीसद
- हिंंदू 23.53 फीसद
- मुस्लिम 10.82 फीसद
- अन्य 0.60 फीसद
मतदाता
- कुल 15,01,950
- पुरुष 7,98,237
- महिला 7,03,686
- फर्स्ट टाइम वोटर- 4615
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