Loksabha Election 2019: हवा में उड़े हवा और पानी के मुद्दे, सभी पार्टियां मौन
Loksabha Election में पंजाब में गतिविधियां तेज हो गई हैं लेकिन जनता से जुड़े कई अहम मुद्दे गायब हैं। राज्य मेें प्रदूषित वायु और पानी बड़ा मुद्दा हैं लेकिन सभी दल इस पर मौन हैं।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। Loksabha Election 2019 के लिए पंजाब में चुनाव प्रचार जोर पकड़ने लगा है, लेकिन इसमें जनता से जुड़े अहम मुद्दे गायब हैं। प्रदेश और जनता से जुड़े अधिकतर मुद्दे पर सभी पार्टियां और शामिल हैं। किसी भी पार्टी या नेता की जुबान पर पर्यावरण का मुद्दा नहीं है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है। चुनाव में अकसर हवा-पानी के मुद्दे हवा में ही गायब ही रहते हैं।
50 करोड़ रुपये का जुर्माना पंजाब सरकार को लगा चुका है एनजीटी
इस बार ज्यादा हैरानी वाली बात इसलिए है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की टीम ने हाल ही में पराली के सीजन से पहले पंजाब का दौरा करके अपनी नाखुशी व्यक्त की है। इससे पहले कीड़ी अफगाना में शीरा बहाए जाने से ब्यास नदी में हजारों मछलियां मारे जाने के बाद पंजाब को हाईकोर्ट ने भी फटकार लगाई थी। एनजीटी ने भी अधिकारियों को अपना काम सुधारने की चेतावनी दी है। इससे पहले भी एनजीटी पंजाब सरकार को नदियों के पानी को प्रदूषित करने के मामले में 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुका है। इतना सब होने के बावजूद यह मुद्दे राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में नहीं हैं।
पंजाब में वायु और जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या के कारण लोगों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। पीजीआई से लेकर जिला स्तरीय अस्पतालों में मरीजों की गिनती को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग किस तरह उन बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं, जो सीधे रूप से वायु और जल प्रदूषण के कारण फैल रही हैं।
सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि यह मुद्दा न तो विधानसभा चुनाव के दौरान और न ही संसदीय चुनाव के कारण कभी पॉलिटिकल पार्टियों के एजेंडे में रहा है। कोई भी नेता अपनी एक भी रैली में इस बात बात नहीं करता। प्रचार का सिस्टम नेताओं और जनता के बीच में एकतरफा है, इसलिए लोग भी अपने नेताओं से यह सवाल नहीं कर पाते कि आखिर विकराल होती इस समस्या का हल क्या है?
प्रदूषित होती नदियां, हवा में घुलता जहर
सबसे बड़ी समस्या नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण की है। चाहे लुधियाना की डाइंग इंडस्ट्री हो या इलेक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री। इनसे निकलने वाले सारे रासायनिक पदार्थ पहले नालियों से होते हुए बुड्ढा दरिया में जाता है और उसके बाद यह सतलुज दरिया में गिरता है। इसी तरह जालंधर में कालासंघिया ड्रेन के जरिए सारा गंदा पानी काली बेईं में गिरता है। सतुलज दरिया से निकलने वाली दो बड़ी नहरें राजस्थान और मालवा में पीने का पानी मुहैया करवाती हैं।
6200 औद्योगिक इकाइयां प्रदूषित कर रहीं पंजाब का पानी व 3300 इकाइयां हवा में घोल रहीं जहर
मालवा का भूजल पीने योग्य नहीं है, लिहाजा यह इलाका पूरी तरह से नहरी पानी पर निर्भर है, लेकिन प्रदूषण के चलते आज यह पूरा इलाका कैंसर जोन बन चुका है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य की 6200 ऐसी औद्योगिक इकाइयां चिन्हित की हैं, जो पानी को प्रदूषित कर रही हैं। इसी तरह 3300 औद्योगिक इकाइयां हवा को प्रदूषित कर रही हैं।
पूरे पंजाब में सिर्फ तीन ट्रीटमेंट प्लांट
इसके अलावा पंजाब के शहरों से निकलने वाला सीवरेज का पानी का भी बिना ट्रीट किए नदियों में डाला जा रहा है। पूरे पंजाब में मात्र तीन ट्रीटमेंट प्लांट ही चल रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलता धुआं कंट्रोल से बाहर हो रहा है। जब धान का सीजन आता है तो पराली जलाते समय पूरा प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत का इलाका गैस चैंबर में तबदील हो जाता है। अस्पतालों में सांस, चमड़ी और आंखों की बीमारियों के केस बढ़ जाते हैं।
भूजल व भूमिगत जल: 80 फीसद पानी दूषित
भूजल व भूमिगत जल में नाइट्रोजन व फास्फोरस की मात्रा अधिक बढ़ रही है। इस वजह से 80 फीसद पानी दूषित हो चुका है। केवल 20 फीसद जल (केनाल वाटर) ही दूषित होने से बचा है। भूमिगत जल में केवल छह फीसद जल ही पीने लायक होता है। इसमें से भी 90 फीसद जल दूषित हो चुका है। इसके मुख्य कारणों में सीवरेज, इंडस्ट्री के निकलने वाले केमिकल, खेतों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल, घरों में प्रयुक्त होने वाले सिथेंटिक साबुन व अन्य सामान शामिल हैं। मालवा क्षेत्र के जल में फ्लोराइड व लेड भी अधिक है। इस वजह से यहां कैंसर की स्थिति भी भयावह बनती जा रही है।
हवा: मानकों से 12 गुना ज्यादा प्रदूषण
हवा में फाइन पार्टिकल्स मैटर (पीएम) की मात्र 2;5 निर्धारित है। डब्ल्यूएचओ किसी भी क्षेत्र में हवा में शामिल दूषित कणों में 10 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक से अधिक मात्रा नहीं होनी चाहिए। भारतीय मानकों के अनुसार यह मात्रा 40 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक से अधिक नहीं होनी चाहिए। लुधियाना में दूषित कणों की संख्या 112 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक है, जो भारतीय मानकों अनुसार तीन गुणा से अभी अधिक है। डब्ल्यूएचओ अनुसार यह मात्रा 12 गुणा से भी अधिक है। हवा में इस समय सल्फर डाईओक्साइड, नाइटट्रोजन आॉक्साइड के तत्व अधिक हैं।
उद्योगों और वाहनों ने बढ़ाई समस्या
पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार लुधियाना समेत अन्य शहरों में उद्योगों और वाहनों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। लुधियाना में इसके लिए नगर निगम व ट्रांसपोर्ट विभाग को जिम्मेवार माना गया है। इसके अलावा धान की पराली व गेहूं की नाड़ जलाने से भी प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो रही है। अक्टूबर, नवंबर में यदि बरसात हो जाए, तो प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। क्योंकि इस दौरान पटाखों के अलावा धान की कटाई के बाद पराली को आग लगाने के कारण प्रदूषण अधिक हो जाता है।
सभी पार्टियां मौन
इस बड़े मुद्दे पर सभी पार्टियां मौन हैं। न तो यह किसी पॉलिटिकल पार्टी का एजेंडा है और न ही इस समस्या का हल खोजने की कोई नीति और नीयत दिख रही है। सांसद और विधायक भी केवल उसी समय अपना मुंह खोलते हैं जब ब्यास में चड्ढा शुगर मिल की ओर से केमिकल बहाने जैसी कोई बड़ी घटना हो जाती है। सबसे बड़ी समस्या लुधियाना, जालंधर जैसी इंडस्ट्री की है, जहां से निकलता जहरीला पानी लोगों की नसों में पहुंच रहा है। इसी तरह शहरों के सीवरेज का भी हाल है।
स्थानीय निकाय विभाग के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का कहना है कि पूर्व सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रदेश में मात्र तीन ट्रीटमेंट प्लांट चल रहे हैं, जिनमें एक तो संत बलबीर सिंह सीचेवाल चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनका विभाग सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की ओर विशेष ध्यान दे रहा है।
पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने भी इंडस्ट्री के रासायनिक पानी को ट्रीट करके फिर से प्रयोग में लाने की योजना पर काम चलाया है। पंजाब की तीनों नदियों सतलुज, ब्यास और घग्गर में पड़ते इस जहरीले पानी को ट्रीट करने के लिए प्रोजेक्ट तो कई बार बनाए जा चुके हैं, लेकिन जिस तरह की सख्ती करने की जरूरत है, वह वोट बैंक की राजनीति की भेंट चढ़ जाती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एनजीटी ने नदियों को प्रदूषित करने को लेकर पंजाब सरकार पर जुर्माना लगाया है, लेकिन यह अभी तक नहीं भरा गया है और न ही अभी तक यह तय हुआ है कि यह कौन भरेगा?
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' पर्यावरण बचाना अभी मजबूरी नहीं, इसलिए पार्टियां खामोश'
'' पंजाब के लोग बेशक बिगड़ते पर्यावरण से त्रस्त हों, लेकिन अभी स्थिति ऐसी नहीं आई है कि लोगों को इस बात की तकलीफ हो रही हो कि उन्हें साफ पानी नहीं मिल रहा और हवा में गंदगी ज्यादा है। इसीलिए ये पॉलिटिकल पार्टियों के लिए मेनिफेस्टो में रखने के लिए तो मुद्दा है, लेकिन इस पर काम करने के लिए नहीं। अभी हाल ही में किसानों के लिए मोदी सरकार ने छह हजार रुपये सीधे उनके खाते में डालने का एलान किया है और पहली किश्त डाल भी दी है।
कांग्रेस ने भी गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना आमदनी सुनिश्चित करने का एलान किया है। यह इसलिए किया गया है क्योंकि मुंबई, मध्यप्रदेश, यूपी और पंजाब जैसे प्रदेशों में लोगों ने किसान आंदोलन खड़े किए हैं। राजनेताओं को पता है कि अगर इनके लिए कुछ नहीं किया गया, तो चुनाव में इनकी नाराजगी महंगी पड़ सकती है, लेकिन ऐसा आंदोलन अभी पर्यावरण के लिए खड़ा नहीं हो रहा है। जिस दिन लोगों के नलों में पानी आना बंद हो गया, सांस लेना मुश्किल हो गया तब ये जागेंगे।
आज की स्थिति राजनेताओं को बहुत सूट करती है। उन्हें पता है कि यदि पर्यावरण जैसे मुद्दे जनता के मुद्दे बन गए तो इन पर काफी पैसा खर्च करना पड़ेगा। इसीलिए किसी भी राजनीतिक पार्टी के एजेंडे में पर्यावरण नहीं है। केवल उनके मेनिफेस्टो में ही एक कोने में जगह के लिए यह काफी है।
- डॉ. मनजीत सिंह, समाजशास्त्री।
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पौधे लगाने तक ही सीमित रहे सांसद
पंजाब के सांसदों ने ससंद में पर्यावरण के मुद्दे खासकर जल और वायु प्रदूषण को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखाई। न नहीं कोई सवाल पूछा। संगरूर से आप सांसद भगवंत मान ने भूजल प्रदूषण का मुद्दा उठाया, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं ला पाए। ज्यादातर सांसद पौधे लगाने तक ही सीमित रहे।
बठिंडा से शिअद सांसद हरसिमरत कौर बादल ने पर्यावरण को बचाने के लिए नन्ही छांव कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके तहत लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर किया। इस मुहिम के तहत लाखों की संख्या में पौधे वितरित किए गए। गुरदासपुर से कांग्रेस सांसद सुनील जाखड़, फरीदकोट से आप सांसद प्रो. साधू सिंह, फिरोजपुर से शिअद सांसद शेर सिंह घुबाया, जालंधर से कांग्रेस सांसद चौधरी संतोख सिंह, अमृतसर से कांग्रेस सांसद गुरजीत औजला, पटियाला से आप सांसद धर्मवीर गांधी, होशियारपुर से भाजपा सांसद विजय सांपला, श्री आनंदपुर साहिब से शिअद सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, लुधियाना से कांग्रेस सासंद रवनीत सिंह बिट्टू, खूडर साहिब से शिअद सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा और फतेहगढ़ साहिब से आप सांसद हरिंदर सिंह खालसा ने संसद में पर्यावरण से संबंधित कोई सवाल नहीं पूछा। सांसद अपने हलके में भी पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कोई खास काम नहीं करवा पाए। पौधरोपण कार्यक्रमों से शामिल होने से ज्यादा कोई बड़ी सक्रियता नहीं दिखी।