जानिए, ओडिशा के उस भाजपा नायक के बारे में जिसने कभी 'अटल सरकार' को गिरा दिया था
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग और उनके बेटे शिशिर गमांग की। कभी भाजपा के जानी दुश्मन रहे पिता व पुत्र इस बार जी जान से पूरे उड़ीसा में कमल खिलाने में जुटे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश में आम चुनाव हो रहे हैं। इस चुनावी दंगल को जीतने के लिए महारथियों की सेना तैयार है। इस चुनावी रण में कभी एक दूसरे के खिलाफ खड़े चेहरों में कइयों ने अब अपने पाले बदल लिए हैं। ऐसे में नजर ओडिशा के इस बड़े नायक पर जाती है। उस नायक ने कभी भाजपा को हराने का संकल्प लिया था, लेकिन आज बदले हालात में वह कमल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। क्या आप बता सकते हैं कि वह शख्स कौन है ?
एनडीए के लिए रोड़ा बने गिरधर गमांग
जी हां, बात हो रही है ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग और उनके बेटे शिशिर गमांग की। कभी भाजपा के जानी दुश्मन रहे पिता व पुत्र इस बार जी जान से पूरे ओडिशा में कमल खिलाने में जुटे हैं। लेकिन आज से 20 वर्ष पूर्व गिरधर गमांग ने दिल्ली के सिंहासन पर भाजपा का पहिया रोक दिया था। यदि आप अपनी याददाश्त पर जोर डाले तो 17 अप्रैल, 1999 को देश की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना घटित हुई थी। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 महीने की सरकार महज एक वोट से गिर गई थी। केंद्र में भाजपा सरकार को गिराने का श्रेय और किसी को नहीं बल्कि ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग को ही जाता है।
लोकसभा में हुई इस घटना ने सबको हैरान किया था। क्यों कि उस समय की एनडीए सरकार महज एक ही वोट से लाेकसभा में अविश्वास प्रस्ताव हार गई थी। इस राजनीतिक घटना के बाद पूरे देश में जो शख्स सबसे अधिक सुर्खियों में आया था, वह गिरधर गमांग ही थे। दरअसल, उस वक्त ओडिशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग थे। मुख्यमंत्री होते हुए भी गमांग लोकसभा में वोट देने पहुंचे थे। उन्होंने वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट दिया था।
सोनिया गांधी के अति प्रिय थे गमांग
गमांग करीब 45 साल तक कांग्रेस में रहे। कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं गिने जाने वाले गमांग एक समय सोनिया गांधी के बहुत निकट थे। दस जनपथ में उनकी राय को काफी अहमियत दी जाती थी। लेकिन 2015 में कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया। वह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के संपर्क में आए और जून, 2015 में ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरधर गमांग भाजपा में शामिल हो गए।
1998 के आम चुनाव में किसी दल को नहीं मिला था बहुमत
दरअसल, देश में 1998 के आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। एआइडीएमके के सहयोग से एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन 13 महीने बाद एआइडीएमके ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गईं। राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने को कहा। बसपा प्रमुख मायावती पहले इसमें वोटिंग में भाग लेने से इंकार कर दिया था, लेकिन आखिरी वक्त पर मायावती सदन में जाकर सरकार के खिलाफ वोट किया।