Move to Jagran APP

आंकडों की जुबानी भी बहुत कुछ बयां कर गए दिल्‍ली नगर निगम चुनाव के परिणाम

चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता अब सिर्फ काम चाहती है, कागजी अथवा खोखले वायदों पर उसे मूर्ख बनाने का समय चला गया।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 11:16 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 05:05 PM (IST)
आंकडों की जुबानी भी बहुत कुछ बयां कर गए दिल्‍ली नगर निगम चुनाव के परिणाम
आंकडों की जुबानी भी बहुत कुछ बयां कर गए दिल्‍ली नगर निगम चुनाव के परिणाम

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता] दिल्ली के तीनों नगर निगम का चुनाव परिणाम आंकड़ों की जुबानी भी बहुत कुछ बयां कर गया। मोदी लहर में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो फिसड्डी साबित हुईं ही, राष्ट्रीय राजनीति में अच्छा दखल रखने वाली क्षेत्रीय पार्टियां तो बह ही गईं।

जदयू, लोजपा, राकांपा एवं रालोद को जहां एक भी सीट नहीं मिली वहीं बसपा, सपा, इनेलो भी बस इज्जत बचा सकीं। चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता अब सिर्फ काम चाहती है, कागजी अथवा खोखले वायदों पर उसे मूर्ख बनाने का समय चला गया।

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में, जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल बिहार में, इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा में, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया व मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पश्चिम बंगाल में खासा रसूख रखती हैैं।

इन पार्टियों के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, मायावती, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ओमप्रकाश चौटाला, सीताराम येचुरी, डी. राजा, शरद पवार व उद्धव ठाकरे भी देश की राजनीति में भी बड़ा नाम हैैं। बावजूद इसके दिल्ली नगर निगम चुनाव में इनका कोई सिक्का नहीं चल पाया।

loksabha election banner

यह भी पढ़ें: MCD जीत पर बोले मनोज तिवारी-दिल्‍ली वालों को हक दिलाने के लिए एक कर देंगे दिन-रात

आम आदमी पार्टी नगर निगम चुनाव के मैदान में पहली बार उतरी थी। मगर 2015 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो पार्टी का मत फीसद 50 से अधिक रहा था। जबकि इन चुनावों में वह घटकर 26.33 फीसद रह गया। वहीं 2012 के मुकाबले भाजपा की सीटें 138 से बढ़कर 181 हो गई हैं। मगर मत फीसद कमोबेश समान ही रहा है। पिछली बार 36.74 फीसद था, जबकि इस बार 36.08 फीसद रहा है। कांग्रेस ने पिछली बार 30.54 मत फीसद के साथ 77 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार 21.09 मत फीसद के साथ सिर्फ 30 सीटें ही जीत पाई है।

राजनीति के जानकारों की मानें तो जनता अब जातीय, खोखले दावों, झूठे वायदों और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से उब चुके हैं। आज मतदाता विकास चाहता है। वह जनप्रतिनिधि के तौर पर ठोस निर्णय लेने की क्षमता रखने वाला नेता चुनने की इच्छा रखता है। आम आदमी पार्टी की हार का बड़ा कारण भी यही है। जनता ने आप पर पूरा भरोसा किया। मगर बाद में वह भी परंपरागत राजनीति करने लग गई। ऐसे में अन्य सभी पार्टियों को अब केवल चिंतन-मनन ही नहीं करना होगा, बल्कि अपनी राजनीति की दशा और दिशा भी बदलनी होगी।

2012 और 2017 में भाजपा एवं कांग्रेस की स्थिति

पार्टी 2012 2017
भाजपा 138-34.75 181-36.08
कांग्रेस 77-30.54 30-21.09

2012 और 2017 में क्षेत्रीय पार्टियों के जीते प्रत्याशियों और मत फीसद की स्थिति


पार्टी 2012 2017
बसपा 15-9.98 03-4.44
सपा 02-1.93 01-0.39
जदयू 01-0.7 0-0.65
राजद 0-0.14 0-0.5
शिवसेना 0-0.08 0-0.23
राकांपा 6-2.26 0-0.33
इनेलो 3-1.19 1-0.64
भाकपा 0-0.12 0-0.4
माकपा 0-0.15 0-0.13

निर्दलीय प्रत्याशियों की हालत भी खस्ता

-2012 में कुल निर्दलीय प्रत्याशी थे 1176 जबकि 14.22 मत फीसद के साथ जीते केवल 24 प्रत्याशी।
-2017 में कुल निर्दलीय प्रत्याशी थे 1174 जबकि 8.44 मत फीसद के साथ जीते केवल 6 प्रत्याशी।

यह भी पढ़ें: ...तो इन 5 कारणों से दिल्‍ली में AAP का जादू हुआ बेअसर, हार का करना पड़ा सामना


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.