Maharashtra Elections 2019: गोपीनाथ मुंडे की विरासत पर परिवार में सियासत
Maharashtra Elections 2019. गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत पर कब्जे के लिए एक बार फिर उनके परिवार में ही घमासान शुरू हो गया है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। भाजपा के दिग्गज नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत पर कब्जे के लिए एक बार फिर उनके परिवार में ही घमासान शुरू हो गया है। चचेरे बहन-भाई पंकजा मुंडे और धनंजय मुंडे इस बार फिर परली विधानसभा सीट पर आमने-सामने हैं।
वर्ष 2014 में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के चंद दिनों बाद ही गोपीनाथ मुंडे दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए थे। इसके कुछ दिनों बाद ही हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनकी पुत्री पंकजा मुंडे पालवे एवं भतीजे धनंजय मुंडे आमने-सामने थे। मुंडे मराठवाड़ा के दिग्गज नेता थे। उनके जाने का दुख भी ताजा था। लिहाजा पंकजा ने लगभग एकतरफा जीत हासिल की। वह ढाई लाख मतों से जीतकर देवेंद्र फड़नवीस सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनीं। दूसरी ओर, मुंडे के निधन से खाली हुई बीड लोकसभा सीट पर उनकी छोटी बहन प्रीतम मुंडे चुनी गईं। यह बात न तो उनके भतीजे धनंजय को रास आई, न ही विरोधी दलों को।
मुंडे के जीवनकाल से ही धनंजय परिवार में बगावत का बिगुल बजा चुके थे। बीड की राजनीति में चाचा के कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने के बावजूद जब अगली पीढ़ी को सियासी मैदान में उतारने का मौका आया तो मुंडे ने भतीजे की बजाय बेटी को ही तरजीह दी थी। धनंजय ने इसे दिल पर ले लिया और परिवार में फूट पड़ गई। इसका फायदा राकांपा ने उठाया। मुंडे के रहते बीड में दाल न गलने से क्षुब्ध राकांपा नेता शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने धनंजय को बीड की राजनीति में आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। राकांपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव ढाई लाख मतों से हारने के बावजूद अजीत न सिर्फ धनंजय को विधान परिषद में ले आए, बल्कि नेता विरोधी दल का पद भी दिलवाया। धनंजय भी बीड में राकांपा को मजबूत करने का भरसक प्रयास करते रहे। उनके प्रयासों से राकांपा स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर देती रही। हालांकि, बीड का जनमानस पंकजा और प्रीतम मुंडे के साथ ही रहा।
लोकसभा चुनाव में प्रीतम मुंडे फिर से जीतीं और अब विधानसभा चुनाव में पंकजा मैदान में हैं। इस बार तो राकांपा ने कांग्रेस के साथ औपचारिक गठबंधन की घोषणा होने से पहले ही बीड के पांच उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। हालांकि, उसे बड़ा झटका तब लगा, जब पंकजा ने एक प्रत्याशी को भाजपा में शामिल करवा दिया। राकांपा ने इस बार फिर पंकजा के सामने धनंजय को ही उम्मीदवारी बनाया है। वर्ष 2014 में जहां गोपीनाथ मुंडे के न रहने की सहानुभूति लहर थी, वहीं इस बार पंकजा के विरुद्ध सत्ताविरोधी लहर भी हो सकती है। पंकजा पर पिछले पांच वर्षो में कई आरोप भी लगते रहे हैं। विधान परिषद में विरोधीदल के नेता होने के कारण उनके चचेरे भाई ही इन आरोपों को धार भी देते रहे हैं। देखना है कि इस बार धनंजय की यह धार काम आती है या गोपीनाथ मुंडे और पंकजा मुंडे द्वारा परली के लोगों के लिए किए गए काम।
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