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विदर्भ ने भी नहीं दिया फडणवीस का साथ, कांग्रेस-एनसीपी पर दिखाया भरोसा

2014 में विदर्भ ने 44 सीटें भाजपा को चार शिवसेना को 10 कांग्रेस को और सिर्फ एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दी थी।

By Manish PandeyEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 08:13 PM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 08:13 PM (IST)
विदर्भ ने भी नहीं दिया फडणवीस का साथ, कांग्रेस-एनसीपी पर दिखाया भरोसा
विदर्भ ने भी नहीं दिया फडणवीस का साथ, कांग्रेस-एनसीपी पर दिखाया भरोसा

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटों में आई कमी में भूमिका विदर्भ क्षेत्र की रही, जहां से स्वयं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी चुनकर आते हैं। इसके अलावा कांग्रेस-एनसीपी का गढ़ रहे पश्चिम महाराष्ट्र ने भी इस बार भाजपा-शिवसेना का साथ देने के बजाय कांग्रेस-एनसीपी के साथ ही रहना बेहतर समझा।

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62 सीटों वाले विदर्भ की खासियत रही है कि यह जिसके साथ जाता है, एकतरफा जाता है। 2014 में विदर्भ ने 44 सीटें भाजपा को, चार शिवसेना को, 10 कांग्रेस को और सिर्फ एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दी थी। इस बार भाजपा के खाते में सिर्फ 27 सीटें जाती दिखाई दे रही हैं। दूसरी ओर कांग्रेस को 17, एनसीपी को छह और शिवसेना को फिर से चार ही सीटें मिली हैं। यदि भाजपा को विदर्भ ने पिछली बार जितनी ही सीटें दी होतीं, तो भाजपा कुल सीटों में भी पिछली बार के आंकड़े तक पहुंचने में कामयाब हो सकती थी। भाजपा नेताओं का दावा रहा है कि केंद्र और राज्य में भाजपानीत सरकार के कार्यकाल में कृषि संकट से जूझ रहे विदर्भ के लिए काफी काम किया गया है, लेकिन किसानों की आत्महत्याएं न रुकने से विपक्ष को सरकार के इस दावे पर सवाल खड़ा करने का मौका मिला। अब भाजपा की सीटों में आई कमी ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

कांग्रेस और एनसीपी से अनेक दिग्गज नेताओं की मेगा भर्ती कर चुकी भाजपा को उम्मीद थी कि इस बार कांग्रेस-एनसीपी के गढ़ पश्चिम महाराष्ट्र में उसे बहुत अच्छी सफलता मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पश्चिम महाराष्ट्र में पिछली बार भाजपा-शिवसेना को अलग-अलग लड़कर भी कुल 37 सीटें मिली थीं। इस बार गठबंधन में लड़ने के बावजूद इस क्षेत्र में 26 सीटों पर सिमट गई हैं। खासतौर से इस क्षेत्र में एनसीपी को अच्छा फायदा हुआ है। इसी क्षेत्र में एनसीपी और कांग्रेस छोड़कर आए उदयनराजे भोसले एवं हर्षवर्धन पाटिल जैसे नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर हार गए हैं। इसी प्रकार उत्तर महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना की सीटें घटी हैं। पिछली बार इस क्षेत्र से भाजपा को 14 और शिवसेना को सात सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा को 13 और शिवसेना को पांच सीटें मिली हैं।

बहरहाल मराठवाड़ा और कोंकण में गठबंधन कुछ फायदे में दिख रहा है। मराठवाड़ा में पिछली बार भाजपा 15 और शिवसेना 11 सीटों पर जीती थी जबकि इस बार भाजपा को 16 और शिवसेना को 13 सीटें मिली हैं। इसी क्षेत्र की परली सीट से पंकजा मुंडे की हार ने मराठवाड़ा की उपलब्धि को उदासी में बदल दिया है। पूरे राज्य में गठबंधन के बावजूद कोंकण में शिवसेना-भाजपा कुछ सीटों पर आमने-सामने लड़ी। इसके बावजूद इस क्षेत्र में भाजपा अपने पिछले आंकड़े 10 पर कायम रही, तो शिवसेना पिछली बार के 14 से बढ़कर 17 पर पहुंचने में सफल हुई। आमने-सामने लड़ी गई सीटों में ही एक सीट कणकवली की थी, जहां भाजपा प्रत्याशी ने शिवसेना प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की।

भाजपा की सीटें मुंबई में भी बढ़ी हैं। पिछली बार मुंबई में भाजपा सिर्फ 15 सीटों पर जीती थी जबकि इस बार उसे 16 सीटें हासिल हुई हैं जबकि शिवसेना यहां घाटे में दिखाई दे रही है। पिछली बार की तुलना में उसे मुंबई ने दो सीटें कम दी हैं, लेकिन मुंबई की वरली सीट से शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य की भारी मतों से जीत से शिवसेना खुश है।


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