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सियासी दलों को आधी आबादी पर भरोसा नहीं, 10 फीसद से अधिक नहीं बढ़ाया कोटा

संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण की मांग का सियासी दल सार्वजनिक तौर पर समर्थन तो करते हैं, लेकिन धरातल पर इसकी पहल नजर नहीं आती।

By Prateek KumarEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 11:02 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 12:01 AM (IST)
सियासी दलों को आधी आबादी पर भरोसा नहीं, 10 फीसद से अधिक नहीं बढ़ाया कोटा
सियासी दलों को आधी आबादी पर भरोसा नहीं, 10 फीसद से अधिक नहीं बढ़ाया कोटा

 वैभव श्रीधर, भोपाल।  संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण की मांग का सियासी दल सार्वजनिक तौर पर समर्थन तो करते हैं, लेकिन धरातल पर इसकी पहल नजर नहीं आती। मध्य प्रदेश के पिछले छह विधानसभा चुनावों को देखें तो किसी भी दल ने आधी आबादी (महिलाओं) को 10 फीसद भी उम्मीदवार नहीं बनाया।

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2008 में सर्वाधिक 221 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं। 2013 में कांग्रेस, भाजपा, बसपा सहित अन्य दलों ने 200 महिला प्रत्याशी उतारे। इनमें से 30 के सिर जीत का सेहरा भी बंधा। इसमें उपचुनाव के नतीजों को भी शामिल कर लिया जाए तो 14वीं विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 32 हो गई है। इस बार भी भाजपा और कांग्रेस में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर टिकट के लिए दावेदारी तो पेश कर दी है, पर कितनी कामयाब होती हैं, यह देखना बाकी है।

 

राज्य में महिला और पुरुष मतदाताओं के बीच लगभग 20 लाख का अंतर है, पर टिकट के हिसाब से देखें तो खाई काफी गहरी है। किसी भी चुनाव में भाजपा हो या कांग्रेस, 10 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को उम्मीदवारी नहीं दी। जबकि, मध्य प्रदेश के निकायों (नगरीय निकाय और पंचायत) में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया गया है।

 भाजपा इसका क्रेडिट भी लेती है पर जब विधानसभा या लोकसभा चुनाव की बात आती है तो फॉर्मूला बदल जाता है। यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है।

2003 में 199 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में थीं। इनमें कुल 18 (14 भाजपा, तीन कांग्रेस और एक जनता दल युनाइटेड) ने जीत दर्ज की। 2008 में 221 उम्मीदवारों में से 21 (14 भाजपा, छह कांग्रेस, एक समाजवादी पार्टी) के सिर जीत का सेहरा बंधा।

वहीं, 2013 में 200 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। भाजपा ने सर्वाधिक 28 महिलाओं पर भरोसा जताया। इनमें से 22 ने जीत हासिल कर पार्टी के फैसले को सही साबित किया। बीच में देवास और नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव हुए।

इनमें पार्टी ने महिलाओं को ही उम्मीदवार बनाया और वे जीत कर आई। वहीं, कांग्रेस ने 23 महिला प्रत्याशी उतारे। इनमें छह ने जीत हासिल की। महिलाओं को टिकट देने में बसपा भी बाकी दलों के साथ कदमताल करती नजर आई। पार्टी ने 22 महिलाओं को सियासी मैदान में किस्मत आजमाने का मौका दिया और दो ने जीत दर्ज की।

 हर जिले में चाहिए एक टिकट
प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष मांडवी चौहान ने बताया कि 80 से ज्यादा बायोडाटा आए थे, जिन्हें संगठन को सौंप दिया गया है। हर जिले में कम से कम एक महिला को उम्मीदवार बनाने की मांग रखी गई है। वहीं, भाजपा महिला मोर्चा ने 40 से ज्यादा टिकट मांगे हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि पिछले चुनाव में 28 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था, जिसमें 22 जीती थीं।

 राजनीतिक दलों की हकीकत दर्शाते आंकड़े

वर्ष कुल प्रत्याशी महिला हिस्सेदारी (फीसद में)

1990 4216 150 3.56

1993 3729 164 4.40

1998 2510 181 7.21

2003 2171 199 9.17

2008 3179 221 6.95

2013 2583 200 7.74 


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