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मप्र में आठ विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में अफीम उत्पादक

मंदसौर-नीमच संसदीय क्षेत्र में तीन जिलों की आठ विधानसभा सीटों पर अफीम उत्पादक किसानों का खासा प्रभाव रहता है।

By Prashant PandeyEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 10:00 AM (IST)
मप्र में आठ विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में अफीम उत्पादक
मप्र में आठ विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में अफीम उत्पादक

कृष्णा शर्मा, नीमच। मंदसौर-नीमच संसदीय क्षेत्र में तीन जिलों की आठ विधानसभा सीटों पर अफीम उत्पादक कि सानों का खासा प्रभाव रहता है। लगभग सभी राजनीतिक दलों की निगाह इन पर रहती है। चुनाव के पहले वादों की लंबी फेहरिस्त इन किसानों के लिए राजनीतिक दलों के प्रत्याशी करते हैं। मप्र में रतलाम, मंदसौर और नीमच जिले में अफीम की खेती होती है। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की निगरानी में पट्टेदार कि सान अफीम की खेती करते हैं।

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अफीम उत्पादक कि सानों को इन क्षेत्रों में काफी प्रभावशाली माना जाता है। अफीम नीति जारी करने से पूर्व अफीम उत्पादक किसानों के हितों का विशेष ख्याल रखा जाता है, ताकि उन्हें कि सी भी तरह की परेशानी न हो। आचार संहिता लागू होने से पूर्व निर्वाचन आयोग ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में आशंका व्यक्त की थी कि मंदसौर जिले के तस्करों का पैसा चुनाव में नहीं लगे। इसके लिए पुलिस और प्रशासन के अधिकारी विशेष रूप से मॉनिटरिंग करें।

यहां किसानों का प्रभाव

नीमच, मनासा, जावद, मंदसौर, सुवासरा, गरोठ, मल्हारगढ़ व जावरा।

2017-18

अफीम नीति में पात्रता के मानक

- 56 किलो अफीम प्रति हेक्टेयर

- 5.9 किलो मार्फिन प्रति हेक्टेयर

लाइसेंसी किसान : मप्र-राजस्थान में करीब 55 हजार किसान

2018-19

- 52 किलो अफीम प्रति हेक्टेयर

- 4.9 किलो मार्फिन प्रति हेक्टेयर

लाइसेंसी किसान

मप्र-राजस्थान में करीब 70 हजार से अधिक कि सान (जानकारी सीबीएन के अधिकारियों व किसानों से चर्चा के अनुसार। आंकड़े संभावित में। वर्तमान में पट्टे जारी करने की प्रक्रिया भी चल रही है।)

किसानों की राजनीतिक दलों से अपेक्षाएं

- अफीम नीति किसान हितैषी हो।

- पट्टे मिलने से लेकर अफीम के तौल की प्रक्रिया आसान हो।

- सीबीएन व पुलिस कार्रवाई के नाम पर परेशान नहीं करें।

- अफीम नीति के संबंध में जनप्रतिनिधि उनकी बात रखें। सुझाव जिम्मेदारों तक पहुंचाएं।

भाजपा किसान हितैषी पार्टी

भाजपा शुरुआत से अब तक कि सान हितैषी पार्टी है। इसमें चाहे कोई भी कि सान हो, वह हमारे लिए अहम है। अफीम उत्पादक कि सानों के हितों का ख्याल रखने में भी भाजपा आगे है। इस बार की अफीम नीति भी कि सान हितैषी है। - हेमंत हरित, जिलाध्यक्ष भाजपा

भाजपा को किसानों की चिंता नहीं

अफीम उत्पादक किसान सभी सीटों पर प्रभाव रखते हैं, लेकि न भाजपा को किसानों से ज्यादा इससे जुड़े अवैध कारोबारियों की चिंता अधिक है। यही कारण है कि मप्र-राजस्थान में दो-तीन साल से आबकारी नीति में डोडा चूरा को शामिल नहीं किया जा रहा है। - अजीत कांठेड़, जिलाध्यक्ष कांग्रेस  


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