झाबुआ में 56 साल में सिर्फ दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने चखा जीत का स्वाद
झाबुआ जिले में तमाम लहर और उथल-पुथल के बीच भी निर्दलीय उम्मीदवार 1957 से लेकर अब तक 56 सालों में दो बार ही जीत का स्वाद चख सके।
झाबुआ, नईदुनिया प्रतिनिधि। विधानसभा चुनावों में झाबुआ जिले में तमाम लहर और उथल-पुथल के बीच भी निर्दलीय उम्मीदवार 1957 से लेकर अब तक 56 सालों में दो बार ही जीत का स्वाद चख सके। 1957 के चुनाव में थांदला सीट पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से न तो निर्दलीय जीत सके न किसी को हरा या जिता सके थे। 56 साल बाद 2013 के चुनाव में जिले की तीन सीटों में से दो पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने खासा असर डाला। इस बार भी थांदला सीट पर ही निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की। जबकि झाबुआ में एक निर्दलीय ने हार-जीत के अंतर से अधिक वोट बटोरे। इसके पहले निर्दलीय दूसरे नंबर पर रह चुके हैं। लेकिन परिणामों को बदलने में कामयाब नहीं हुए।
2007 के पहले के झाबुआ-आलीराजपुर सम्मिलित जिले की पांचों विधानसभा सीटों और आलीराजपुर अलग होने के बाद झाबुआ जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर निर्दलीय 2013 के पहले कभी हावी नहीं हो सके। ऐसा नहीं है कि निर्दलीयों ने कोशिश नहीं की। कभी टिकट कटने तो कभी नहीं मिलने से वे चुनाव लड़ते रहे। थांदला में 2003 में भाजपा से विधायक बने कलसिंह भाबर 2008 में हार गए तो पार्टी ने 2013 में टिकट नहीं दिया।
वे निर्दलीय खड़े हो गए और भारी वोटों से जीते। कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही और भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। ऐसी कोशिश पूर्व में झाबुआ से एक कांग्रेसी विधायक ने टिकट कटने पर भी की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए थे। 2013 में झाबुआ में पहले कांग्रेस ने जिला पंचायत अध्यक्ष कलावती को टिकट देना तय किया। अचानक उनका टिकट काट दिया गया और 2008 के कांग्रेस विधायक जेवियर मेड़ा को दे दिया। कलावती निर्दलीय मैदान में उतर गईं। यहां से भाजपा के शांतिलाल बिलवाल जीते। कलावती जीत तो नहीं पाईं, लेकिन भाजपा की कांग्रेस पर जीत के अंतर से अधिक वोट लाई।
अब तक के हाल
- 1985 में झाबुआ सीट पर पांच निर्दलीय लड़े। सिर्फ एक निर्दलीय 3874 वोट लाए, बाकी सब तीन अंकों में सिमटे। कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई। इसी साल थांदला में चार निर्दलीय खड़े हुए। एक हजार के आसपास से ज्यादा वोट उन्हें नहीं मिले। कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया जीते। पेटलावद में भी चार निर्दलीय लड़े। यहां निर्दलीय बाबूलाल दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन जीत कांग्रेस की गंगाबाई की हुई।
- 1990 में और इसके बाद से लगातार 2013 तक सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के बीच ही लड़ाई सिमटकर रह गई। बागियों ने कोशिश की, लेकिन असर नहीं डाल पाए। जोबट में माधोसिंह डाबर निर्दलीय लड़े और दूसरे नंबर पर रहे।
- 1999 में आलीराजपुर उपचुनाव में निर्दलीय राजेंद्रसिंह पटेल खड़े हुए, लेकिन कांग्रेस को हरा नहीं पाए।
- 2008 में प्रत्याशियों की संख्या सबसे ज्यादा रही। झाबुआ में छह निर्दलीय सहित 12 प्रत्याशी थे। थांदला में 14 और पेटलावद में 13 लोगों ने चुनाव लड़ा।