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MP Election 2018: सुषमा स्वराज का इंकार पीढ़ी परिवर्तन का संकेत तो नहीं

MP Election 2018 : कोई इसे प्रत्यक्ष चुनाव से सन्यास मान रहा है तो कोई इसे पीढ़ी परिवर्तन की शुरुआत के रूप में देख रहा है।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 09:59 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 07:47 AM (IST)
MP Election 2018: सुषमा स्वराज का इंकार पीढ़ी परिवर्तन का संकेत तो नहीं
MP Election 2018: सुषमा स्वराज का इंकार पीढ़ी परिवर्तन का संकेत तो नहीं

भोपाल। मोदी कैबिनेट में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अचानक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने के एलान ने भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सनसनी फैला दी है। सुषमा पिछले दो चुनाव से मध्यप्रदेश की लोकसभा सीट विदिशा से चुनाव जीत रही हैं। उनके एलान से लोगों के बीच कई तरह की चर्चा शुरू हो गई हैं।

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कोई इसे प्रत्यक्ष चुनाव से संन्यास मान रहा है तो कोई इसे पीढ़ी परिवर्तन की शुरुआत के रूप में देख रहा है। वे मप्र से राज्यसभा की सदस्य भी रही हैं। शिवराज सरकार ने उन्हें 2008 में ही एक सरकारी बंगला आवंटित कर दिया था, तब से वे मप्र की राजनीति में सक्रिय हैं। इसके बाद 2009 में वे पहली बार विदिशा से चुनाव लड़ीं।

उस समय उनके सामने कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं था। चर्चा तो यह थी कि उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए ही भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी का बी-फार्म समय पर जमा नहीं होने दिया। हालांकि बाद में कांग्रेस प्रत्याशी को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

सुषमा भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी खेमे की सबसे ताकतवर नेता हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी उनके मजबूत रिश्ते हैं। दिल्ली की राजनीति में वे शिवराज को मदद करती रही हैं पर अब सवाल जो राजनीति में तैरने लगा है, वह विदिशा सीट को लेकर है। ये एक ऐसे राष्ट्रीय महत्व की सीट है, जहां हमेशा ही बाहरी प्रत्याशी आते रहे हैं। 1971 से 1977 तक जनसंघ के टिकट पर रामनाथ गोयनका यहां से सांसद रहे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी विदिशा से जीत चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद यहां से लोकसभा के कई चुनाव जीत चुके हैं। सुषमा स्वराज ने सेहत खराब होने के कारण चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई है पर उन्होंने इंदौर जैसे शहर में यह बात कहकर कई राजनेताओं की नींद उड़ा दी है।

सुषमा खुद 25 साल की उम्र में हरियाणा से चुनाव जीती थीं और देवीलाल सरकार में सबसे कम उम्र की मंत्री भी बनीं। अपनी भाषणशैली के लिए मशहूर स्वराज का यह कथन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, थावरचंद गेहलोत और कई उम्रदराज नेताओं के लिए इशारा तो नहीं।

इशारा इस बात का हो सकता है कि युवाओं को मौका देने के लिए उम्रदराज नेता खुद ही पद छोड़ें। ऐसा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने किया भी है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और केंद्रीय मंत्री रहे सरताज सिंह से भी पार्टी ने किनारा किया है। ऐसे हालात में मप्र की राजनीति में इसे पीढ़ी परिवर्तन के रूप में भी देखा जा रहा है।


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