MP Election 2018: मध्यप्रदेश में घटता जा रहा है मुस्लिमों का सियासी रसूख
MP Chunav 2018 सूबे के दो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ने इस बार मुस्लिमों को दिखावे के लिए टिकट दिए हैं।
भोपाल, नवदुनिया ब्यूरो। मुस्लिम अल्पसंख्यक क्या महज वोट बैंक हैं? क्यों इस वर्ग का सियासी रसूख लगातार घटता जा रहा है। ये सवाल इसलिए, क्योंकि लगभग दस फीसदी आबादी वाले इस वर्ग के प्रति हमदर्दी जताने वाली सियासी पार्टियां सियासत में उन्हें भागीदारी देने के मसले पर ईमानदार नजर नहीं आ रही हैं। सूबे के दो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ने इस बार मुस्लिमों को दिखावे के लिए टिकट दिए हैं। कांग्रेस ने जहां पूरे प्रदेश में दो मुस्लिमों को उम्मीदवारी दी है तो भाजपा ने महज एक मुस्लिम को मैदान में उतारकर रस्म अदायगी की है।
मध्य प्रदेश की सियासत में मुस्लिम समुदाय उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल की तरह भले ही राजनीतिक रसूख नहीं रखता है, लेकिन वोट बैंक के लिहाज से कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों के लिए इनका खासा महत्व है। चूंकि मप्र में बसपा, सपा, राजद या टीएमसी जैसी पार्टियां नहीं हैं, लिहाजा यहां मुस्लिमों के पास कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। हालांकि भाजपा ने पिछले एक दशक में मुस्लिमों के करीब आने की भरसक कोशिश की पर ये कोशिशें वोट में तब्दील हो पाईं हों, ऐसा लगता नहीं।
दिग्विजय सिंह ने दो को 6-6 माह के लिए मंत्री बनाया था
1993 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम जीत कर नहीं आ पाया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एजी कुरैशी, इब्राहिम कुरैशी को छह-छह माह के लिए मंत्री बनाया। 1998 में आरिफ अकील ने जीत दर्ज की। तब से वे लगातार विधायक चुने जाते रहे। 1962 में सबसे ज्यादा सात मुस्लिम विधायक बने थे। इसके बाद से लगातार मुस्लिम प्रतिनिधत्व घटता चला गया। 1972 में 6, 1957-1985 और 1998 में 5-5 और 1967, 1977 और 1990 में 3-3 मुस्लिम विधायक रहे। 1985 और 1990 में भाजपा के टिकट पर एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचा था। 1993 में भाजपा ने अब्दुल गनी अंसारी को टिकट दिया था, लेकिन वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। इसके बाद बीस साल बाद 2013 में भोपाल उत्तर से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे जीत नहीं दर्ज कर पाए। इस बार फिर भाजपा ने भोपाल उत्तर सीट से एक मुस्लिम उम्मीदवार पर दांव खेला है।
कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे रसूल अहमद सिद्दीकी की बेटी फातिमा सिद्दीकी बतौर भाजपा उम्मीदवार मैदान में हैं।इस सीट से उनके पिता विधायक बनने के बाद और कांग्रेस सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी पिता की राजनीतिक वसीयत को महफूज रख पाती है या नहीं।
दस फीसदी मुस्लिम मतदाता और एक विधायक
जब पूरे देश में आबादी में हिस्सेदारी के मान से राजनीतिक भागीदारी देने की मांग जोर पकड़ रही हो तब मुसलमानों को प्रमुख दलों द्वारा 230 सीटों के लिए मात्र तीन उम्मीदवार देना समझ से परे है। ये तीन भी भोपाल जिले की दो सीटों पर जोर आजमाइश कर रहे हैं। शेष प्रदेश मुस्लिम प्रत्याशी विहीन है। भोपाल उत्तर सीट से कांग्रेस के आरिफ अकील के मुकाबले भाजपा की फातिमा रसूल सिद्दीकी और भोपाल मध्य में कांग्रेस के आरिफ मसूद वे भाग्यशाली है जिन्हें टिकट मिल पाए। कहने को प्रदेश में लगभग दस फीसदी मुसलमान हैं, करीब दो दर्जन सीटें मुस्लिम बहुल हैं, एक दर्जन सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है। बावजूद इसके पिछले पंद्रह साल से राज्य विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व के नाम पर एक विधायक ही चुन कर जा पा रहा है। इस तथ्य से मुस्लिमों के राजनीतिक प्रभुत्व को समझा जा सकता है।
19 जिलों में बड़ी आबादी
आंकड़ों पर गौर करें तो सूबे के 51 जिलों में से 19 जिलों में मुस्लिम आबादी एक लाख से ज्यादा है। भोपाल में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। इसके बाद बुरहानपुर है। इंदौर-1, इंदौर-3, भोपाल मध्य, उज्जैन, जबलपुर, खंडवा, रतलाम, जावरा, ग्वालियर, शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा और उज्जैन दक्षिण सीट पर भी मुस्लिम वोटरों की संख्या अच्छी-खासी है लेकिन वोटों के ध्रुवीकरण के चलते बुरहानपुर और भोपाल उत्तर को छोड़ शेष किसी भी सीट पर ऐसा नहीं हुआ कि मुस्लिम मतदाता किसी उम्मीदवार की हार-जीत का कारण बने हों।
कांग्रेस ने काफी काम किया
कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए काफी काम किया है, लेकिन भाजपा की देखादेखी कर मुसलमानों की उपेक्षा करना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। विस चुनाव में सिर्फ दो टिकट देना मुसलमानों के साथ ज्यादती है। इसका असर मतदान में भी दिखेगा, हालांकि हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमान एक साथ कांग्रेस के पक्ष में आएं -
अजीज कुरैशी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता
कांग्रेस ने सिर्फ छला
कांग्रेस मुस्लिम वर्ग को कई सालों तक छलती रही। कांग्रेस ने हज हाउस का भी निर्माण नहीं करवाया, इस मांग को भाजपा ने पूरा किया। भोपाल उत्तर को छोड़कर जो भी मुस्लिम बहुल सीटें हैं, उन पर भाजपा का कब्जा है। इसका मतलब है कि भाजपा को मुस्लिमों का प्यार मिलता है। धर्म के आधार पर टिकट बांटने का मैं समर्थन नहीं करता - हिदायत उल्ला शेख, प्रवक्ता भाजपा