MP Election 2018: इस बार बिखर रहा पार्टियों का वोट बैंक, लगा रहे अपने-परायों का पता
MP Election 2018: बदलते चुनावी समीकरणों के बीच पहले जैसी स्थिति नहीं रहीं। अब उम्मीदवारों के हाथों से वो भी खिसकते नजर आ रहे हैं, जो सालों से साथ दे रहे थे।
भरत शर्मा, छतरपुर। अभी तक जो राजनीतिक चेहरे पुरखों की पसंद में शुमार थे, वे नई पीढ़ी को रास नहीं आ रहे। पुरखे अक्सर चेहरे को देखकर वोट देना पसंद करते रहे, लेकिन अब चेहरा नहीं, बल्कि कौन कितना जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगा यह देखकर बटन दबेगा। ऐसी ही सोच का असर पार्टियों के उस वोट बैंक पर पड़ा है, जिसे वह अपना मजबूत जनाधार मानती रही हैं। जिन जातियों को वोट बैंकों का नाम दिया जाता रहा है वो अब चिल्हर की तरह बिखरती नजर आ रहे हैं।
ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने उन आंकड़ों को खंगालना शुरू कर दिया है, जो बयां करते हैं कि किस जाति के कहां कितने वोट हैं। यह हालात इस बार सिर्फ छतरपुर विधानसभा ही नहीं जिले की सभी जगहों पर देखने मिल रहे हैं। इस बार मतदाता उन उम्मीदवारों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते रहे हैं जिनकों उन्होंने पूरी उम्मीद से चुना था।
बदलते चुनावी समीकरणों के बीच पहले जैसी स्थिति नहीं रहीं। अब उम्मीदवारों के हाथों से वो अपने भी खिसकते नजर आ रहे हैं, जो सालों से पार्टियों के नाम पर साथ दे रहे थे। छतरपुर, बड़ा मलहरा, राजनगर और महाराजपुर विस क्षेत्रों के चुनावी रण में सर्वाधिक जनाधार वाली जातियों को भाजपा और कांग्रेस अभी तक अपना मानती रही है वो अब पूरी तरह से उनकी नहीं लग रही हैं।
भले ही जातिगत चेहरे इस बार चुनावी मैदान में उतारे गए हैं, लेकिन इस बार जनता चेहरा नहीं बल्कि क्षेत्र में हुए विकास को देखकर चुनने की फिराक में हैं। इस सोच में उन प्रत्याशियों की उम्मीदों पर असर पड़ सकता है जो इस बार चुनावी मैदान में नए चेहरों के साथ उतरे हैं।
इस बार पार्टी नहीं चेहरा बनेगा पसंद
छतरपुर क्षेत्र में करीब 35000 ब्राह्मण, 18 से 20 हजार यादव वोटर हैं। इधर, मड़ामलहरा में करीब 33000 यादव और महाराजपुर में 32000 से ज्यादा एससी वोटर हैं। जिन्हें भाजपा और कांग्रेस अपना बनाने में जुटी हैं। जमीनी हकीकत कहती हैं कि परंपरागत वोटर रहे हैं वे इस बार पार्टी नहीं बल्कि चेहरे को देखकर चुनने की तैयारी कर बैठे हैं। छतरपुर में कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी और भाजपा की अर्चना सिंह के बीच संघर्ष है।
चुनाव को दो दिन बचे हैं, लेकिन अभी तक स्थिति साफ नहीं हो सकी है। पिछले चुनाव में हुई 2200 मतों से हार जीत को देखते हुए अब एक-एक मत उम्मीदवारों के लिए अहम हो गया है। कौन अपना और कौन पराया यह पता लगाने के लिए उम्मीदवारों ने अपने खुफिया मैदान में उतार दिए ह