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Madhya Pradesh Chunav 2018: टिमरनी में चाचा-भतीजे में रोचक मुकाबला, एक-दूसरे की खोली पोल

MP Chunav 2018: प्रचार के दौरान संजय शाह ने अपने 10 साल के कार्यकाल की उपलब्धियां बताईं। वहीं अभिजीत अपने चाचा की ही पोल खोलने में लगे रहे।

By Rahul.vavikarEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 04:01 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 04:01 PM (IST)
Madhya Pradesh Chunav 2018: टिमरनी में चाचा-भतीजे में रोचक मुकाबला, एक-दूसरे की खोली पोल
Madhya Pradesh Chunav 2018: टिमरनी में चाचा-भतीजे में रोचक मुकाबला, एक-दूसरे की खोली पोल

हरदा। हरदा की टिमरनी विधानसभा सीट का भी अलग किस्सा है। ये सीट राजनीतिक दलों के नाम से नहीं बल्कि चाचा-भतीजे के नाम से जानी जाती है। यहां दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों से चाचा-भतीजे ही आमने-सामने हैं। प्रचार के दौरान एक ही परिवार के ये दो सदस्य मतदाताओं के सामने एक-दूसरे की पोल खोलने से भी नहीं चूके। यहां भाजपा की ओर से दो बार के विधायक संजय शाह प्रत्याशी हैं जबकि उनके सामने कांग्रेस ने उनके भतीजे अभिजीत शाह को उतारा।

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1962 में अस्तित्व में आई टिमरनी विधानसभा सीट पर मकड़ाई रियासत के राजघराने के 2 सदस्य ही आमने-सामने हैं। चाचा संजय शाह (भाजपा) जहां राजनीति में अनुभवी हैं, वहीं भतीजे अभिजीत शाह (कांग्रेस) युवा हैं। प्रचार के दौरान संजय शाह ने अपने 10 साल के कार्यकाल की उपलब्धियां बताईं। वहीं अभिजीत अपने चाचा की ही पोल खोलने में लगे रहे।

टिमरनी आदिवासी बाहुल्य सीट है और इसका ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है। इसीलिए अन्य क्षेत्रों जैसी चुनावी हलचल पूरे क्षेत्र में नजर नहीं आई। दोनों ही दलों के कार्यकर्ता छोटे-छोटे समूह में गांव-गांव प्रचार करने पहुंंचे। अब ये मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाए, कहा नहीं जा सकता। वहीं विधानसभा के शहरी क्षेत्र के मतदाता शांत बने रहे। ऐसे में चाचा-भतीजे में से किसे मतदाता इस बार वोट करेंगे, कह पाना मुश्किल है।

ये रहे चुनावी मुद्दे

- खैल मैदान की कमी।

- व्यवस्थित बस स्टैंड नहीं।

- स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी।

- जांच की सुविधाएं नहीं।

- सरकारी स्कूलों में शिक्षकों व व्यवस्थाओं की कमी।

- ट्रेन स्टापेज की मांग।

आदिवासी वोट बैंक

टिमरनी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। चूंकि राजघराने से संबंध होने के कारण संजय शाह को कई सालों से आदिवासी वोट बैंक का फायदा मिलता रहा है। पर इस बार कांग्रेस ने भी इसी राजघराने के सदस्य को टिकट देकर मुकाबला रोचक बना दिया।

पहले निर्दलीय लड़े थे संजय शाह

2003 में भाजपा प्रत्याशी मनोहरलाल राठौर विधायक चुने गए थे। इसके बाद 2008 में संजय शाह को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते भी। हालांकि पूरे समय वे भाजपा के ही समर्थक बने रहे। साल 2013 में भाजपा ने संजय शाह को टिकट दिया और वे दोबारा विधायक बने। इस बार भी भाजपा ने उन्हीं पर दांव खेला। लेकिन भतीजे से टक्कर के बाद सीट का समीकरण रोचक हो गया है। अब देखना होगा कि बुधवार को चाचा और भतीजे में से किसे मतदाता का समर्थन मिलता है।


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