MP Election 2018: जीते कोई भी, MLB तो हर चुनाव में हार रहा जिंदगी !
MP Election 2018- ईवीएम सुरक्षित रखने के लिए इस ऐतिहासिक इमारत के स्ट्रांग रूम में बड़े परिवर्तन किए गए हैं। इससे नुकसान पहुंतने की आशंका जताई जा रही है।
ग्वालियर। विधानसभा चुनावों में जीत-हार किसी की भी हो, ऐतिहासिक एमएलबी कॉलेज भवन की किस्मत में तो हर चुनाव के साथ जिंदगी के कुछ दिन और हारना तय सा हो गया है। इस बार के चुनाव में यहां ऊपरी मंजिल पर बेशकीमती पत्थर के खंभों को छेदकर ईवीएम की सुरक्षा के लिए लोहे की जालियां लगा दी गई हैं।
भवन के ऐतिहासिक महत्व को ताक पर रखकर और भी कई बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों की जानकारी कॉलेज शिक्षकों को इसलिए नहीं है, क्योंकि ईवीएम रखी होने के कारण वहां केवल जिला प्रशासन के अधिकारी ही आ-जा सकते हैं। चुनाव के बाद पता चलेगा कि भवन को चुनाव ने कितने जख्म दिए हैं ? ये भवन जिंदगी के कितने दिन और हार गया ? एमएलबी कॉलेज भवन का अधिग्रहण पहले भी चुनाव कार्य के लिए होता रहा है।
2013 से इस भवन का उपयोग विधानसभा व लोकसभा चुनावों के लिए भी हो रहा है। यह दूसरे विधानसभा चुनाव हैं, जब भवन का उपयोग ईवीएम सुरक्षित करने के लिए स्ट्रांग रूम की तरह भी हो रहा है। कॉलेज भवन विद्यार्थियों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए हवादार बनाया था, वहीं ईवीएम के लिए एक ऐसा स्ट्रांग रूम चाहिए था, जहां हवा भी न जा सके। यही कारण है कि कॉलेज की कक्षाओं को स्ट्रांग रूम बनाने व्यापक स्तर पर फेरबदल किए गए हैं।
जालियों से भारी नुकसान
ईवीएम सुरक्षित रखने जिला प्रशासन ने कक्षाओं को स्ट्रांग रूम में बदलने कितना फेरबदल किया है ? इसका खुलासा तो चुनाव के बाद तभी हो सकेगा, जब यहां से ईवीएम मशीनें हट जाएंगी। बहरहाल दूसरी मंजिल पर लगाईं गईं जालियां सभी को नजर आ रहीं हैं। इन जालियों को इस गरज के साथ लगाया गया है कि, कहीं कोई दूसरी मंजिल से ईवीएम मशीन नीचे न फेंक दे। ईवीएम की सुरक्षा के मद्देनजर जिला प्रशासन का यह निर्णय गलत नहीं ठहराया जा सकता, पर जालियां जिन पत्थर के खंबों को छेदकर लगाई गई हैं, उनकी भरपाई भी संभव नहीं है।
कारीगरी का अद्भुत नमूना है एमएलबी
एमएलबी कॉलेज भवन (तब नाम विक्टोरिया कॉलेज) की आधारशिला 1887 में महारानी विक्टोरिया की रजत जयंती की स्मृति में रखी गई थी। डिजाइन उस दौर के जाने-माने आर्किटेक्ट हैरिस एंड लेक ने तैयार किया था। इण्डो सेरसेनिक शैली में ग्वालियर के विशेष सेंड स्टोन पर सुंदर नक्कासी के साथ यह भवन बनाया गया था। लोकार्पण 30 नवम्बर 1899 में तत्कालीन गवर्नर जनरल एवं वाइसराय लॉर्ड कर्जन ने किया था।
क्या है ऐसे भवनों के उपयोग का नियम
ऐतिहासिक महत्व का यह कॉलेज भवन यदि महज एक कागजी अधिसूचना से राज्य या केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के अधीन हो जाता तो भवन में एक कील तक नहीं ठोकी जा सकती थी। प्रवेश तक पर कई तरह के नियम लग जाते।
उपयोग हो पर मनमानी नहीं
कॉलेज भवन को संरक्षित रखने के लिए लंबे समय तक प्रयास करते रहने वाले पूर्व प्राचार्य आरएस पंवार का कहना है कि कॉलेज भवन का उपयोग हो, पर मनमानी नहीं। वास्तव में यह भवन ग्वालियर के वैभवशाली शैक्षणिक इतिहास का नमूना है। इसलिए इसका उपयोग वैसा हो, जैसा कि राज्य पुरातत्व विभाग के अनुसार उचित हो। अन्य कामों के लिए मनचाहा उपयोग होने से कॉलेज भवन और क्षतिग्रस्त ही होगा।