MP Chunav 2018 : चुनावी चक्रव्यूह में उलझे शिव 'राज' के कद्दावर मंत्री
MP Chunav 2018 : जो नेता कभी सत्ता-संगठन के संकटमोचक थे अब खुद ही संकटों में घिरे हुए हैं। सियासी और जातीय समीकरण उलझने से उड़ी है नींद।
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तस्वीर और सरगर्मी अपने अंतिम दौर में दिन-ब-दिन रोचक होती जा रही है। जीत का परचम फहराने प्रत्याशियों ने ताकत झोंक दी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कैबिनेट सदस्य जयंत मलैया, गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह सहित 8 कद्दावर मंत्री चुनावी भंवर में ऐसे उलझे हैं कि पड़ोस की सीट पर प्रचार करने नहीं जा पा रहे हैं। वे अपनी सीट बचाने की जद्दोजहद में घिर गए हैं। क्षेत्रीय और जातीय समीकरण बदलने से कई सीटें फंस गई हैं।
सरकार और संगठन के संकट मोचक कहलाने वाले ये कद्दावर नेता चुनावी रण में बुरी तरह उलझ गए हैं। तीन-चार दशक से सियासत में सक्रिय ये नेता अपने ही क्षेत्र में सिमट कर रह गए हैं। दूसरी-तीसरी बार के कई विधायकों की भी कमोबेश यही स्थिति है।
प्रदेश के चुनावी परिदृश्य में मुख्यमंत्री चौहान ही एकमात्र ऐसे अपवाद हैं जो खुद चुनाव लड़ने के बावजूद अपनी सीट बुदनी को छोड़ प्रदेश की अन्य सीटों पर प्रचार में जुटे हैं। बुदनी क्षेत्र में प्रचार का जिम्मा उनकी पत्नी साधना सिंह, पुत्र कार्तिकेय और अन्य कार्यकर्ताओं ने संभाल रखा है। शिवराज हर दिन सुबह से रात तक प्रदेश में औसतन एक दर्जन चुनावी सभाएं संबोधित कर रहे हैं।
उलझे सियासी गणित
चुनावी रण में घिरे शिवराज के मंत्रियों में कुछ दिग्गज ऐसे भी हैं जो मानकर चल रहे हैं कि इसके बाद हो सकता है कि वे चुनाव न लड़े। यह बात वे अपने क्षेत्रीय मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करने के लिए कहने से भी नहीं चूकते, कहीं बागियों के चलते तो कहीं सियासी गणित उलझने से उनकी नींद उड़ गई है। इसके अलावा पार्टी में मौजूद राजनीतिक अदावत भी उनकी राह का रोड़ा बन रही है।
चुनावी चक्रव्यूह में हैं ये मंत्री
चुनावी चक्रव्यूह में घिरे कद्दावर मंत्रियों में गोपाल भार्गव रहली, जयंत मलैया दमोह, भूपेंद्र सिंह खुरई, गौरीशंकर बिसेन बालाघाट, उमाशंकर गुप्ता भोपाल दक्षिण पश्चिम, राजेंद्र शुक्ला रीवा, रामपाल सिंह सिलवानी एवं जयभान सिंह पवैया ग्वालियर भी शामिल हैं।
इस बार इनके सामने निर्वाचन क्षेत्र में पारंपरिक मतदाताओं के पुराने समीकरण ध्वस्त होने से चुनौतियां कम नहीं हो पा रहीं। सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी, कार्यकर्ताओं की उदासीनता, बागियों की मौजूदगी, क्षेत्रीय समस्याओं की अनदेखी से मतदाताओं में उपजा असंतोष और जातिगत गणित एकाएक बिगड़ने से यह नौबत आई है।
साख बचाने की चिंता
इन दिग्गजों को अब अपनी ही सीट और साख बचाने की चिंता सता रही है। भाजपा संगठन उनके प्रभाव क्षेत्र अथवा जिले की अन्य सीटों पर उनका उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं कर पा रहा। हालत यह है कि अपनी नैया पार लगाने के लिए वे स्वयं अपने क्षेत्र में मुख्यमंत्री अथवा पार्टी के स्टार प्रचारकों की सभाएं कराने की मांग कर रहे हैं।
मंत्री जो घर बैठ गए...
इस बार उम्र, जीत की संभावनाएं और सर्वे रिपोर्ट जैसे क्राइटेरिया के चलते भाजपा हाईकमान ने अपने 5 मंत्रियों को चुनावी दौड़ से पहले ही बाहर कर दिया था। इनमें माया सिंह, डॉ. गौरीशंकर शेजवार, कुसुम महदेले, हर्ष सिंह और सूर्यप्रकाश मीना शामिल हैं। छतरपुर से चुनाव लड़ती रहीं राज्यमंत्री ललिता यादव को इस बार जिले की दूसरी सीट बड़ा मलहरा भेजा गया है।
चुनावी जीत सभी नेताओं की प्राथमिकता
चुनाव अपने आप में बड़ी चुनौती है, भाजपा संगठन ने चुनाव में सभी कद्दावर नेता व मंत्रियों की भूमिका तय कर दी है। इनमें से जो चुनाव लड़ रहे हैं उनकी प्राथमिकता पहले अपनी विजय सुनिश्चित करना है। ये सभी अपनी जवाबदारी पूरी शिद्दत से निभा रहे हैं।
- दीपक विजयवर्गीय, मुख्य प्रवक्ता, मप्र भाजपा