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राघौगढ़ सीट : कांग्रेस का किला जीतने के लिए फिर जोर आजमाइश करेगी भाजपा

अब तक भाजपा तमाम कोशिशों के बाद भी इस किले का तिलिस्म तोड़ने में नाकाम ही रही है।

By Prashant PandeyEdited By: Published: Fri, 02 Nov 2018 07:43 AM (IST)Updated: Fri, 02 Nov 2018 07:43 AM (IST)
राघौगढ़ सीट : कांग्रेस का किला जीतने के लिए फिर जोर आजमाइश करेगी भाजपा
राघौगढ़ सीट : कांग्रेस का किला जीतने के लिए फिर जोर आजमाइश करेगी भाजपा

ध्रुव झा, गुना। राघौगढ़ सीट भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं है। पिछले चुनाव में स्थानीय उम्मीदवार पर खेला गया दांव 58204 मतों की करारी हार के रूप में सामने आया था। ऐसे में भाजपा अब बाहरी प्रत्याशी की दम पर कांग्रेस के गढ़ में जमीन की तलाश पूरी करने के मूड में दिख रही है। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह और किले का आज भी क्षेत्र में प्रभाव भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

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दरअसल, राघौगढ़ विधानसभा सीट पर किले का ही कब्जा रहा है। पहले दिग्विजयसिंह विधायक रहे, तो उनके बाद इस सीट पर किला समर्थित उम्मीदवार ही विधायक चुना गया।

भाजपा तमाम कोशिशों के बाद भी किले का तिलिस्म तोड़ने में नाकाम ही रही है। क्योंकि, 2003 के चुनाव में दिग्विजयसिंह के खिलाफ शिवराजसिंह चौहान राघौगढ़ से लड़ चुके हैं। लेकिन वे भी हारे थे। इसके बाद 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने मूलसिंह दादाभाई को उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने गुना से भूपेंद्रसिंह रघुवंशी को राघौगढ़ भेजा।

मगर उन्हें भी 7688 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। अब राघौगढ़ सीट पर किले की नई पीढ़ी का कब्जा है। 2013 के चुनाव में दिग्विजयसिंह के पुत्र जयवर्धनसिंह को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। उनसे मुकाबला करने स्थानीय भाजपा नेता राधेश्याम धाकड़ मैदान में उतरे। लेकिन किले का प्रभाव और पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र होने के साथ ही युवा चेहरा रहे जयवर्धन सिंह ने राधेश्याम धाकड़ को 58204 मतों के बड़े अंतर से हराया।

अब भाजपा फिर सीट हथियाने की कोशिश में है, जिसके लिए एक बार फिर बाहरी नेता राघौगढ़ भेजा जा सकता है। हालांकि, इस बार का चुनाव कांग्रेस-भाजपा के लिए काफी कठिन होगा। क्योंकि, एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन और आरक्षण का मुद्दा, सपाक्स संगठन लोगों की जुबां पर बनाए हुए है। इसका असर भी कई क्षेत्रों में दिखाई भी देता है।

रोजगार के नहीं खुल सके अवसर

क्षेत्र में गेल-एनएफएल जैसे बड़े औद्योगिक संस्थान तो हैं, लेकिन स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर विकसित नहीं हो सके हैं। खिलाड़ियों के मैदानों की जरूरत भी बनी है। हालांकि, विपक्ष का विधायक होने का असर भी दिखाई देता है। लोगों का कहना है कि कई जरूरतों के लिए विभागों के चक्कर काटने के बाद भी जूझना पड़ा।


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