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Madhya Pradesh Chunav 2018: सारे मुद्दे गौण, चुनाव जातिगत समीकरणों पर केंद्रित हो गया

Madhya Pradesh Chunav 2018 अंचल की सभी विधानसभाओं में चुनाव पूरी तरह से जातिवाद समीकरणों पर केंद्रित हो गए हैं।

By Rahul.vavikarEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 09:13 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 09:13 PM (IST)
Madhya Pradesh Chunav 2018: सारे मुद्दे गौण, चुनाव जातिगत समीकरणों पर केंद्रित हो गया
Madhya Pradesh Chunav 2018: सारे मुद्दे गौण, चुनाव जातिगत समीकरणों पर केंद्रित हो गया

मुरैना, नईदुनिया प्रतिनिधि। चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले अंचल में एससीएसटी एक्ट जैसे मुद्दे काफी तेजी से उछले थे, लेकिन आचार संहिता लगने व प्रत्याशियों की घोषणा के बाद से ही अंचल की सभी विधानसभाओं में चुनाव पूरी तरह से जातिवाद समीकरणों पर केंद्रित हो गए हैं। अब एससीएसटी एक्ट व अन्य विकास के मुद्दे पूरी तरह से गायब हो गए हैं।

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प्रत्याशियों व उनके समर्थकों ने भी चुनाव को पूरी तरह से जातिवाद के रंग में रंग दिया है। ऐसे में जिले की अंबाह सीट को छोड़ दिया जाए तो सभी सीटों पर चुनाव जातिगत आधार पर हो गए हैं। मतदाता भी अपनी जाति के हिसाब से प्रत्याशियों के समर्थन में आगे आ गए हैं। साथ ही दलों ने भी अपने टिकट जातिगत समीकरणों के आधार पर दिए हैं।

राजनीतिक दलों ने जातिगत समीकरणों के आधार पर किस तरह दिए टिकट

सबलगढ़ -  भाजपा ने यहां से सरला रावत को प्रत्याशी बनाया है। चूंकि सबलगढ़ विधानसभा में रावत समाज के 30 हजार मतदाता हैं। ऐसे में यहां रावत समाज निर्णायक स्थिति में है। कांग्रेस ने भी यहां से कुशवाह समाज से प्रत्याशी उतारा है। क्योंकि यहां पर कुशवाह समाज के 17 हजार से अधिक मत हैं। बसपा ने मल्लाह समाज से प्रत्याशी उतारा है, क्योंकि मल्लाह समाज के इस सीट पर 10 हजार मतदाता हैं। हालांकि सबलगढ़ सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या 32 हजार है, लेकिन दलित वर्ग से किसी ने टिकट नहीं दिया।

जौरा- जौरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने राजपूत क्षत्रिय वर्ग से टिकट दिया है। यहां पर राजपूतों की संख्या 20 हजार के करीब है। जबकि कांग्रेस ने यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट दिया है। यहां पर ब्राह्मण भी 40 हजार से अधिक हैं। इसके अलावा बसपा ने धाकड़ समुदाय से टिकट दिया है। यहां पर धाकड़ां की वोटिंग 20 हजार के करीब है। वहीं इस सीट पर एक दो वर्गों को छोड़ दिया जाए तो सभी वर्गों से एक-एक प्रत्याशी उतरा है। यानी प्रत्याशी अपने अपने वर्ग के प्रत्याशीयों के वोट लेने के लिए खड़े हुए हैं।

सुमावली- सुमावली विधानसभा सीट पर क्षत्रिय राजपूतों के मत 35 हजार के करीब हैं। यहां पर बसपा ने राजपूत को टिकट दिया है। जबकि यहां दूसरे नंबर गुर्जर वर्ग के मतदाता हैं। इसलिए कांग्रेस ने भी गुर्जर समुदाय से टिकट दिया है। वहीं तीसरे नंबर पर कुशवाह वर्ग आता है। इसलिए यहां पर भाजपा ने कुशवाह वर्ग से अपना प्रत्याशी उतारा है। ऐसे में यहां की स्थिति आसानी से समझी जा सकती है।

मुरैना- मुरैना विधानसभा सीट पर सर्वाधिक मतदाता गुर्जर समुदाय के हैं। पूरी विधानसभा में गुर्जर समुदाय के 60 हजार के करीब मतदाता हैं इसलिए यहां पर भाजपा व कांग्रेस दोनों ने ही गुर्जर समुदाय के प्रत्याशीयों पर दांव लगाया है। इसके बाद दूसरे नंबर पर दलित वर्ग के मतदाता आते हैं। लेकिन यहां पर बसपा ने दलित व ब्राह्मणों के मतों को लेने के लिए ब्राह्मण वर्ग से प्रत्याशी उतारा है। ब्राह्मणों की संख्या मुरैना सीट पर 20 हजार से अधिक है।

दिमनी- दिमनी विधानसभा में क्षित्रय राजपूतों के सर्वाधिक मत हैं। इसी सीट पर करीब 60 हजार मतदाता राजपूत हैं। इसलिए भाजपा ने यहां से क्षत्रीय को ही प्रत्याशी बनाया है। साथ ही इन्हीं वोटों व दलित वोटों को लेने के लिए बसपा ने भी क्षत्रिय राजपूत को मैदान में उतारा है। इसके बाद विधानसभा में निर्णायक स्थिति में ब्राह्मण मतदाता हैं। इसलिए कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारा है।

अंबाह- अंबाह विधानसभा चूंकि आदिम जाति के लिए असुरिक्षत विधानसभा है। इसलिए यहां पर जातीय समीकरण काम नहीं करते। यहां पर दल व उसके प्रत्याशी की छवि काम करती है।

कांग्रेस से क्षत्रिय तो भाजपा से वैश्यवर्ग खफा

मुरैना श्योपुर लोकसभा में 8 सीटों पर करीब 5 लाख क्षत्रिय मतदाता हैं, लेकिन कांग्रेस ने श्योपुर से लेकर अंबाह तक किसी भी सीट पर एक भी क्षत्रिय प्रत्याशी को इस बार टिकट नहीं दिया है। ऐसे में क्षत्रिय मतदाताओं में खासा आक्रोश पनप रहा है। हालांकि कांग्रेस ने भाजपा की ही तरह किसी वैश्य वर्ग के व्यक्ति को मैदान में नहीं उतारा है। जबकि लोकसभा की आठों सीटों पर वैश्य वर्ग के भी करीब तीन लाख मतदाता हैं। ऐसे में वैश्यवर्ग दोनों ही दलों से खफा है। इसका असर चुनाव में देखने को मिल सकता है।


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